पर्यावरण इंडेक्स 2022 में भारत पहली बार सबसे नीचे; सरकार ने जताई असहमति
एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स-2022 (EPI-2022) की रैंकिंग में भारत पहली बार अंतिम पायदान पर है. यह देश में पर्यावरण की स्थिति और सस्टेनेबल विकास के बारे में एक टिप्पणी. भारत सरकार ने हालाँकि अध्ययन पर सवाल उठाते हुए उससे असहमति जताई है.
हाल में प्रकाशित एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स-2022 (EPI-2022) में 180 देशों में भारत का स्थान सबसे नीचे है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, म्यानमार भी इस इंडेक्स में भारत से आगे है. दुनिया की महाशक्तियों का भी प्रदर्शन काफ़ी ख़राब है. चीन का स्थान जहां 161वाँ हैं वहीं रूस 112वे पर और अमेरिका 43वे रैंक पर है.
कौन करता है यह रैंकिंग और किस आधार पर
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम (World Economic Forum), येल सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल लॉ एंड पॉलिसी (Yale Centre for Environmental Law and Policy) और कोलम्बिया यूनिवर्सिटी फॉर इन्टरनेशनल अर्थ साइंस इन्फोर्मेशन नेटवर्क (Columbia University for International Earth Science Information Network) के द्वारा 2002 में शुरू किया गया यह सर्वे 11 मुद्दों पर एनवायरनमेंट और सस्टेनबिलिटी पर प्रदर्शन के आधार पर देशों की रैंकिंग करता है. एनवायरनमेंट के अंतर्गत ही सैनिटेशन, स्वच्छ और पीने योग्य पानी, वायु प्रदूषण, कचरा प्रबंधन, स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मानकों पर रैंकिंग तय की जाती है. इंडिया इन सारे मानको EPI स्कोर 18.9 के साथ सबसे नीचे है.
यूनाइटेड नेशंस (United Nations) की क्लाइमेट चेंज को लेकर की गयी पहल यूनाइटेड नेशंस रिजोल्यूशन 2030 का मकसद दुनिया को सस्टेनबल बनाना है और यह रिपोर्ट सस्टेनबिलिटी गोल्स (Sustainable Development Goals) को ध्यान में रखकर निकाली जाती है.
किन देशों से सीख सकते हैं हम?
इस सर्वे में यह देखा जाता है कौन-से देश सस्टेनबिलिटी लक्ष्यों को गंभीरता से लेते हुए उन पर कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. डेनमार्क (EPI score 77.90) इस रैंकिंग में पहले पायदान पर है. यूनाइटेड किंगडम (EPI score 77.70) दूसरे और फिनलैंड (EPI score 76.50) तीसरे स्थान पर.
रिपोर्ट में बताया गया है की डेनमार्क, यूके जैसे देश पॉलिसी के लेवल पर पर्यावरण के मुद्दे को हल करने की दिशा में हैं. इन देशों ने ग्रीन हाउस गैस इमिशन को कम करने की कोशिश की है, इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर को डी-कार्बोनाईज किया है. और बड़े पैमाने पर आम लोगों में पर्यावरण और कलाइमेट चेंज को लेकर जागरूकता विकसित की है. दरसल यही देश क्लाइमेट चेंज के प्रति सबसे ज़िम्मेदार देश हैं जैसा कि उनकी रैंकिंग से भी दिखता है.
एशिया के बारे में रिपोर्ट में लिखा गया है कि कम स्कोर और निचली रैंकिंग पर आने वाले देशों को लॉन्ग-टर्म प्लान के साथ इकोलॉजी को सरंक्षित करने, कार्बन- इमिशन घटाने, बायो-डायवर्सिटी को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे.
EPI 2022 के मुताबिक़, चीन, इंडिया, अमेरिका और रूस अगर अपने नज़रिए में बदलाव नहीं लाते हैं तो साल २०२५ तक दुनिया के ग्रीनहाउस गैस इमिशन का 50 प्रतिशत इन चार देशों की वजह से होगा.
क्या कहना है भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रलाय का?
भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रलाय ने रिपोर्ट को “अवैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित” और अधूरा बताते हुए ख़ारिज कर दिया है. मिनिस्ट्री का कहना है कि भारत जैसे देश में जहाँ जंगल और वेटलैंड ज्यादा हैं वहां कार्बन सिंक बड़े पैमाने पर हो जाता है. इस बात को इस रिपोर्ट ने अपने GHG इमिशन 2050 के दायरे में रखा ही नहीं है. इसके इतर मिनिस्ट्री ने इंडेक्स के चुनाव पर भी सवाल खड़े किये हैं यह कहते हुए कि जिन मानकों पर भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है उनका वजन घटा दिया गया है.
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब भारत का प्रदर्शन इस इंडेक्स पर असंतोषजनक रहा है. EPI की पिछले सालों की रिपोर्ट पर नज़र दौडाएं तो भारत की की बेस्ट रैंकिंग 2006 में 118 थी लेकिन तब 133 देशों ही इसमें शामिल थे. 2018 में भारत 177वें और 2020 में 168वें स्थान पर था.