महिला तीन महीने प्रेग्नेंट है तो बैंक में नौकरी नहीं पा सकती- इंडियन बैंक
बैंक के ये नए नियम-कायदे प्रेग्नेंसी और डिलिवरी को ऐसे ट्रीट कर रहे हैं, मानो वो कोई सामान्य मानवीय बदलाव न होकर कोई बीमारी हो. महिला प्रेग्नेंट है तो नौकरी के लिए अयोग्य हो गई. डिलिवरी के बाद वापस साबित करो कि नौकरी करने के योग्य हो.
भारतीय स्टेट बैंक के बाद एक और बैंक इंडियन बैंक ने अपने नए भर्ती नियमों का सर्कुलर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि तीन महीने से अधिक की गर्भवती महिलाएं बैंक में नौकरी पाने के लिए "अस्थायी रूप से अयोग्य" हैं.
इंडियन बैंक ने हाल ही में बैंक में नौकरी पाने के लिए शारीरिक फिटनेस और योग्यता को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए. अन्य निर्देशों के साथ-साथ इसमें गर्भवती महिलाओं को भी नौकरी पाने के लिए अस्थाई रूप से अयोग्य बता दिया गया.
साथ ही इस निर्देश में यह भी कहा गया कि बच्चे के जन्म के चार महीने बाद एक बार फिर से यह परीक्षा होगी कि अमुक महिला बैंक में नौकरी करने के लिए शारीरिक रूप से योग्य है. इसके लिए डिलिवरी के बाद सर्टिफाइड मेडिकल प्रैक्टिशनर का सर्टिफिकेट देना होगा.
बैंक के ये नए नियम-कायदे प्रेग्नेंसी और डिलिवरी को ऐसे ट्रीट कर रहे हैं, मानो वो कोई सामान्य मानवीय बदलाव न होकर कोई बीमारी हो. महिला प्रेग्नेंट है तो नौकरी के लिए अयोग्य हो गई.
डिलिवरी के बाद वापस साबित करो कि नौकरी करने के योग्य हो.
इस नियम का अर्थ यह भी है कि तीन महीने प्रेग्नेंट होने पर महिला को नौकरी पाने के लिए आगे एक साल तक इंतजार करना पड़ेगा. उसकी एक साल की नौकरी जाएगी, एक साल की सीनिएरिटी जाएगी और भारत सरकार ने सभी महिलाओं को जो छह महीने के मातृत्व अवकाश की सुविधा दी है, वह उससे वंचित होगी.
यह साला खेल दरअसल महिलाओं को कानून द्वारा दी गई मैटरनिटी लीव की सुविधा देने से बचने की कवायद है.
आश्चर्य नहीं कि इंडियन बैंक के इस फैसले की चौतरफा आलोचना हो रही है.
वैसे इंडियन बैंक का यह सर्कुलर इस तरह का पहला सर्कुलर नहीं है. इसके पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भी ऐसा नियम बना चुका है और भारी फजीहत होने पर उसे अपना वह नियम वापस लेना
पड़ा है.
इसी साल जनवरी में सार्वजानिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने भी नए भर्ती नियमों के तहत ऐसे ही दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिसमें तकरीबन वही बातें कही गई थीं जो अभी इंडियन बैंक के सर्कुलर में कही गई हैं. तीन महीने से अधिक की गर्भवती महिला 'अस्थायी रूप से अयोग्य' होगी. डिलिवरी के चार महीने बाद वह बैंक में भर्ती हो सकती हैं.
लेकिन स्टेट बैंक के इस फैसले की खूब आलोचना हुई. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने ट्वीट करके कहा कि “स्टेट बैंक का यह फैसला न सिर्फ भेदभावपूर्ण बल्कि गैरकानूनी है. इसका उनकी मैटरनिटी लीव पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा. वह अधिकार, जो उन्हें कानून
ने दिया है.”
तीखी आलोचना के बाद बैंक ने नियम वापस तो ले लिया, लेकिन उसे वापस लेने की जो वजह बताई, वो और रिएक्शनरी थी. बैंक ने अपने स्टेटमेंट में कहा कि पब्लिक सेंटिमेंट (जन भावनाओं) को देखते हुए हम यह नियम वापस ले रहे हैं. भर्ती की प्रक्रिया में अभी भी पुराने नियमों के अनुसार ही
काम होगा.
स्टेट बैंक ने यह नहीं माना कि नए नियम वास्तव में भेदभावपूर्ण और गैरकानूनी थे. वजह जनभावना को बताकर बैंक ने अपने नैतिक दायित्व से पल्ला झाड़ लिया.
इंडियन बैंक के नए नियमों की खबर तो अभी मार्केट में आई ही है. उम्मीद है कि स्टेट बैंक की तरह जल्दी ही इंडियन बैंक को भी समझ में आए जाएगा कि उसने क्या गलती की है. माफी की उम्मीद नहीं है. बस जनभावनाओं का ख्याल रखकर ही यह भेदभावपूर्ण और गैरकानूनी नियम वापस ले लें तो गनीमत होगी.