साइरस मिस्त्री को लगा झटका, टाटा संस को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के कार्यकारी चेयरमैन के पद से हटाने को सही ठहराया।
"सुप्रीम कोर्ट ने मिस्त्री फर्मों और शापूरजी पल्लोनजी मिस्त्री के खिलाफ टाटा संस में अपने शेयरधारिता की सुरक्षा के खिलाफ पूंजी जुटाने, गिरवी रखने, शेयरों के संबंध में कोई हस्तांतरण या कोई और कार्रवाई ना करने का आदेश दिया है। आपको बता दें, कि 5 सितंबर को टाटा संस ने शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप को टाटा संस में रखे गए शेयरों को गिरवी रखने से रोकने की मांग की गई थी।"
टाटा संस को एक बड़ी जीत मिली है। गौरतलब है, कि 24 अक्टूबर 2016 को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से सायरस मिस्त्री को हटा दिया गया था, जिसके बाद दिसंबर 2016 में कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में इसके खिलाफ याचिका दायर की। जुलाई 2018 में एनसीएलटी ने मिस्त्री की याचिका को खारिज कर दिया और टाटा सन्स के फैसले को सही बताया। इसके बाद साइरस मिस्त्री ने एनसीएलएटी का सहारा लिया और दिसंबर 2019 में मिस्त्री को फिर से टाटा सन्स का चेयरमैन बनाने का आदेश दिया। टाटा सन्स ने जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की।
आज सुप्रीम कोर्ट ने टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में साइरस मिस्त्री को हटाने का समर्थन किया और कंपनी कानून न्यायाधिकरण के आदेश को अलग कर दिया, जिसने उसे बहाल किया था।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि साइरस मिस्त्री को हटाने का फैसला सही था। न्यायाधीशों ने कहा, "कानून के सभी सवाल टाटा समूह के पक्ष में हैं।"
नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने 18 दिसंबर, 2019 को श्री मिस्त्री को समूह के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बहाल किया था।रतन टाटा ने एक बयान में कहा कि इस आदेश ने उन मूल्यों और नैतिकता को मान्य किया है, जिन्होंने हमेशा टाटा समूह का मार्गदर्शन किया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रतन टाटा भावुक हो गए। कोर्ट के फैसले पर रतन टाटा ने ट्वीट किया और फैसले की सराहना की।
उन्होंने लिखा,
"यह जीत और हार की बात नहीं थी। मेरे ग्रुप की ईमानदारी और नैतिकता को लेकर लगातार हमले किए गए। यह फैसला इस बात को साबित करता है कि टाटा संस अपने सिद्धांतों और मूल्यों पर हमेशा अडिग रहा है। ट्वीट में रतन टाटा ने यह भी लिखा कि ये हमारी न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को प्रदर्शित करता है।"
सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप ने तब सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि अक्टूबर 2016 में हुई बोर्ड मीटिंग में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाना एक "ब्लड स्पोर्ट" और "एंबुश" की तरह था और कॉरपोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों का पूरी तरह से उल्लंघन था।
टाटा समूह ने आरोपों का घोर विरोध किया और कहा कि बोर्ड श्री मिस्त्री को हटाने के अपने अधिकार में है।
इसमें एक और व्यावसायिक लड़ाई शामिल है जिसमें आर्थिक रूप से बंधे हुए शापूरजी पल्लोनजी समूह ने धन जुटाने के लिए टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी की प्रतिज्ञा करने की मांग की। टाटा ग्रुप ने इस पर आपत्ति जताई और सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया।
टाटा ग्रुप का कहना है कि विवाद को खत्म करने में मदद के प्रस्ताव के तहत मिस्त्री परिवार की हिस्सेदारी सबसे बड़ी माइनॉरिटी शेयरहोल्डर के पास है। आपको बता दें कि एक मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से मिस्त्री परिवार की टाटा सन्स में 18.4% की हिस्सेदारी है। वो टाटा ट्रस्ट के बाद टाटा सन्स में दूसरे सबसे बड़े शेयर होल्डर्स हैं।
टाटा सन्स में टाटा ट्रस्ट की हिस्सेदारी 66% है। मार्च 2020 तक टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों का रेवेन्यू 7.92 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा था। जबकि, इनकी मार्केट कैपिटल मार्च 2019 तक 11.09 लाख करोड़ रुपए थी।
गौरतलब है, कि सायरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप ने टाटा सन्स के चेयरमैन पद से 24 अक्टूबर 2016 को हटा दिया था और उनकी जगह रतन टाटा को अंतरिम चेयरमैन बनाया गया था। जिस पर टाटा सन्स का कहना था कि मिस्त्री के कामकाज का तरीका टाटा ग्रुप के काम करने के तरीके से मेल नहीं खा रहा था और इसके बाद टाटा ग्रुप ने एन चंद्रशेखरन को टाटा सन्स का चेयरमैन बनाया गया था।
दिसंबर 2012 को रतन टाटा ने टाटा सन्स के चेयरमैन पद से रिटायरमेंट लिया था और फिर साइरस मिस्त्री चेयरमैन बनाया गया था। साइरस टाटा ग्रुप के छठे चेयरमैन थे।