भारत में अब बनेगा अपना खुद का कार्बन क्रेडिट मार्केट, भवन निर्माण के भी बदलेंगे नियम
लोक सभा ने हाल ही में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 को पारित किया जिसका उद्देश्य देश में नवीन ऊर्जा को बढ़ावा देना और ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहित करना है. इस विधेयक के प्रावधानों में घरेलू और व्यवसायिक बड़े भवनों में अनिवार्य रूप से स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग करने की बात भी कही गई है.
लोक सभा में हाल ही में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 पारित हुआ. अगस्त 10 को पारित इस विधेयक में स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के कई उपाय किये गए हैं. इसमें ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया को बढ़ावा देने की भी बात की गई है. यह संशोधन विधेयक 2001 में पारित ऊर्जा संरक्षण अधिनियम का ही विस्तार लग रहा है. 2001 में आए अधिनियम में बदलाव कर कुछ और प्रावधान जोड़ कर इससे और व्यापक बनाने की कोशिश होती दिख रही है.
इस पुराने अधिनियम के माध्यम से देश में ऊर्जा संरक्षण को लेकर बहुत से कदम उठाए गए थे एवं इस विधेयक के माध्यम से ही देश में ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) का भी गठन हुआ था. यह संस्था देश में ऊर्जा के एवं उसमें इस्तेमाल की जाने वाले चीजों के मानकों और नियमों के निर्धारण एवं प्रवर्तन का काम करती है.
अब इस नए संशोधित विधायक में बड़े घरेलू और व्यवसायिक भवनों में एक निर्धारित मात्रा में गैर जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करना अनिवार्य कर दिया गया है. इस विधेयक के अनुसार ऐसे किसी भी भवन जिसकी लोड क्षमता 100 किलोवाट या उससे अधिक है उन्हें इस्तेमाल होने वाले पूरी ऊर्जा में से कुछ निर्धारित ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करना होगा. इस विधेयक में देश में स्थापित भवनों से जुड़े नियमों में बदलाव करने की भी बात कही गई है जबकि राज्यों को ऐसे नियम बनाने के लिए आज़ादी भी दी गई है. इस विधेयक में नियमों को नहीं मानने पर 10 लाख रुपये तक के दंड का भी प्रावधान रखा गया है.
इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि इस संशोधित नियमों के कारण भवनों के निर्माण में लग रहा खर्च बढ़ सकता हैं क्योंकि स्वच्छ ऊर्जा के सयंत्रों को लगाने में अधिक खर्च आता है जैसे सोलर पैनल आदि. ओडिशा के भुवनेश्वर में रह रहे शहरी योजनाकार पीयूष रंजन राऊत ने इस विधेयक का स्वागत किया लेकिन इसके कारण आने वाले दिनों में होने वाले चुनौतियों की भी बात की. “इन प्रावधानों के कारण अपार्टमेंट और बड़े भवनों मे स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल करना अब अनिवार्य हो जाएगा. हालांकि स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल के लंबे समय में अच्छे फायदे मिलेंगे लेकिन जब भवनों का निर्माण होगा तो यह बिल्डरों और ग्राहकों के लिए थोड़ा महंगा हो जाएगा. क्योंकि स्वच्छ ऊर्जा के उपकरण और पुर्जों को लगाने में अतिरिक्त खर्च आएगा,” राऊत ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
राऊत का कहना है कि जब इस विधेयक के कारण भवनों के निर्माण में खर्च बढ़ने की आशंका है तो सरकार को चाहिए कि वो इसके लिए कुछ अनुदान की व्यवस्था करे. ऐसा होने पर भवनों के मालिक और बिल्डर स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे.
आंकड़ों की माने तो भारत अभी भी तेल, प्राकृतिक गैस और दूसरे ईंधनों के लिए दूसरे देशों से होने वाले आयतों पर निर्भर है. हालांकि इस विधेयक में ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन देश के नवीन ऊर्जा के मंत्री आरके सिंह ने इस विधेयक को लोक सभा में पेश करते हुआ कहा कि इस विधेयक की सहायता से देश में ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के उत्पादन पर भी ध्यान दिया जाएगा ताकि देश में ऊर्जा के लिए आयात पर निर्भरता कम की जा सके.
शांतनु श्रीवास्तव जो की इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) में ऊर्जा फ़ाइनेंस के विश्लेषक हैं कहते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन की ओर ध्यान देने की बात करना भारत के ऊर्जा क्षेत्र के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है. इससे देश में कार्बन उत्सर्जन को रोकने में मदद मिल सकती है जिसके लिए सरकार ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर रखा है.
“ग्रीन हाइड्रोजन भारत के भविष्य के लिए अच्छा है क्योंकि यह नवीन ऊर्जा का एक साधन बन सकता है. यह इसलिए विशेष है क्योंकि समान्यतः सीमेंट और स्टील उद्योगों में जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है और नवीन ऊर्जा के दूसरे स्रोत जैसे सौर ऊर्जा ओर पवन ऊर्जा का प्रयोग भी मुश्किल है. ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन ऐसे जगह पर प्रभावशाली तरीके से काम कर सकता है क्योंकि इसमे अधिक गर्मी उत्पन्न करने की क्षमता होती है. इतना ही नहीं, ग्रीन हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन से अधिक ताकतवर भी होता है. इसका भविष्य आने वाले दिनों में सुनहरा है ओर इसमें होने वालें निवेश के भी अच्छे संकेत है,” श्रीवास्तव ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
स्थानीय कार्बन क्रेडिट का बाज़ार
ऊर्जा संरक्षण का यह विधेयक न केवल बीईई में अधिक लोगों की जरूरत पर बल देता है बल्कि इससे देश में अपनी एक नई कार्बन क्रेडिट बाज़ार को तैयार करने का भी प्रावधान है. इसमें भारत सरकार या इसके द्वारा अधिकृत किसी विभाग को कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट देने का प्रावधान भी रखा गया है.
कार्बन क्रेडिट की बात 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल के समय की गई थी जहां कार्बन के व्यवसाय की बात जलवायु परिवर्तन के इस ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में की गई. 2015 के पेरिस समझौते में भी इस बात पर जोर दिया गया. अब पूरे विश्व में कार्बन क्रेडिट की खरीद बिक्री होती है जो विश्व में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को रोकने में प्रयोग किया जाता है. कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट से विश्व की कई उत्सर्जन करने वाली कंपनियां एक सीमित सीमा तक उत्सर्जन कर सकती हैं और इसके बदले अपने अधिक उत्सर्जन करने की स्थिति में नवीन ऊर्जा या किसे ऐसे परियोजना में निवेश करती हैं जिससे पर्यावरण में हो रहे उत्सर्जन से लड़ने में सहायता मिले जैसे बड़े स्तर में पेड़ लगाना. यह निवेश विश्व के कई देशों में किया जा सकता है और ऐसे निवेश को पैसों से कार्बन क्रेडिट के नाम से खरीद सकते हैं.
पिछले कुछ दशकों से भारत ने कई कार्बन क्रेडिट संग्रह किए और कई विदेशी कंपनियों को निर्यात किया है. हालांकि अब सरकार कार्बन क्रेडिट के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बारे में सोच रही है और उसे सिर्फ अपने देश में इस्तेमाल करने की योजना बना रही है ताकि नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में और उत्सर्जन से लड़ने की प्रणाली को बल दिया जा सके. हालांकि इस बात का जिक्र विधेयक में नहीं है लेकिन नवीन ऊर्जा के मंत्री आर.के.सिंह ने संसद में इस विधेयक पर चर्चा करते हुये यह बात कही.
“हमनें यह निर्णय लिया है कि अब हम कार्बन क्रेडिट का निर्यात नहीं करेंगे. इसपर कोई प्रश्न नहीं है. यह इसलिए है क्योंकि हमनें एनडीसी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कुछ लक्ष्य बनाए है. जबतक हम वो लक्ष्य नहीं पा लेते है हम कार्बन क्रेडिट का निर्यात नहीं करेंगे. हम अपने देश में अपनी खुद की कार्बन क्रेडिट बाज़ार बनाना चाहते है ताकि हम नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को और बढ़ा सके,” सिंह ने लोक सभा में अपने वक्तव्य में कहा.
उन्होंने यह भी कहा कि देश में कार्बन क्रेडिट की तरह ही एक मॉडल पहले से ही है और इस विधेयक के माध्यम से सरकार इसमें इन सबको एक दूसरे से जोड़ना चाहती है और इस मामले में और पारदर्शिता लाना चाहती है. “हमारे देश में ऊर्जा दक्षता के लिए सर्टिफिकेट दिये जाते है. जो कंपनियां ऊर्जा संरक्षण में अपनी न्यूनतम सीमा से अधिक काम करती है वो इन सर्टिफिकेट को ऐसे कंपनियों को बेच सकती है जो अपने सीमा से वंचित रह गए हो. उसी तरह नवीन ऊर्जा के सर्टिफिकेट भी उसी तरह से काम करते है. हमलोग इस विधेयक के माध्यम से इन सबको जोड़ कर एक आम कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट की परिकल्पना कर रहे हैं जिससे अधिक पारदर्शिता आ सके,” सिंह ने लोक सभा में दिए अपने बयान में कहा.
कार्बन क्रेडिट के बाज़ार में काम कर रहे विशेषज्ञों ने बताया कि अपने देश में कार्बन क्रेडिट के बाजार को सरकार द्वारा संचालित करना ठीक उसी प्रकार होने की आशंका है जैसे कई दूसरे देशों में हुआ है. मध्य प्रदेश के इंदौर में मनीष दबकारा, ईकेआई एनर्जी के मुख्य प्रबंध निदेशक है जो भारत के चुनिन्दा ऐसे कंपनियों में से है जो कार्बन क्रेडिट के व्यापार में है. दबकारा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि इस विधेयक के माध्यम से देश में एक विकसित कार्बन क्रेडिट बाजार का निर्माण हो सकेगा जिससे देश में उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलेगी. उन्होने यह भी कहा कि सरकार के कार्बन क्रेडिट के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट के व्यापार को प्रभावित नहीं करेगा.
“कार्बन क्रेडिट के निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा दूसरे देशों मे चल रहे कार्बन क्रेडिट बाजार के नियमों की तरह ही है जैसे हमनें यूरोपीय संघ, कोरिया और दूसरे जगहों पर देखा है. यह पाबंदियां देश और आंचलिक कार्बन क्रेडिट के बाजार पर लागू होती है. स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट व्यवसायों पर नहीं. उल्टा यह स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट के बाज़ार को इससे फायदा ही होगा क्योंकि इससे लोगों की भागीदारी बढ़ने की संभावना है. देश में खुद के कार्बन क्रेडिट बाज़ार होने से इसकी गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होगी जोकि खरीदार और बेचने वाले दोनों के लिए लाभकारी होगा,” दबकारा ने बताया.
दबकारा हालांकि यह भी कहते है कि देश में कार्बन क्रेडिट मार्केट को लेकर अभी तक कुछ खास नियम कानून नहीं है जो की आने वाले दिनों में जरूरी होगा. एक विकसित कार्बन क्रेडिट बाजार में अच्छे नियम, एक राष्ट्रीय कार्बन रजिस्ट्री की भी जरूरत पड़ेगी और इसके अलावा निजी बाजार की भागदारी और सरकार की अंतररार्ष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट बाजार से जुड़ने के लिए रजामंदी भी जरूरी होगी, दबकारा ने बताया.
ऊर्जा संरक्षण संशोधन विधायक फिलहाल सिर्फ लोक सभा में पारित हुआ है और इसे एक सशक्त कानून बनाने में अभी इसे राज्य सभा में भी पारित होने की जरूरत है जिसके बाद इसके प्रावधानों के आधार पर सटीक नियम बनाने की उम्मीद है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस विधेयक के पारित होने के बाद ही केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कोई और विभाग इससे जुड़े प्रावधानों के आधार पर नए नियम बना सकेंगे जिसके आधार पर कार्बन बाजार और दूसरे आयामों को लेकर पारदर्शिता आ पाएगी.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: झारखंड के बेरमों के कोयले की ख़ान के पास के सड़कों पर अक्सर कोयले के धूल की मोटी परत आस-पास के गाड़ियों और, दुकानों और आवासों पर दिखती है. तस्वीर - मनीष कुमार/मोंगाबे