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साम-दाम-दंड-भेद से रियासतों का विलय कराने वाले सरदार वल्‍लभभाई पटेल

भारत के पहले गृह मंत्री के रूप में पटेल ने रियासतों के एकीकरण के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

साम-दाम-दंड-भेद से रियासतों का विलय कराने वाले सरदार वल्‍लभभाई पटेल

Thursday December 15, 2022 , 5 min Read

आज सरदार वल्‍लभभाई पटेल की पुण्‍यतिथि है. भारत के पहले गृहमंत्री और पहले उप-प्रधानमंत्री. आजादी के बाद स्‍वतंत्र रियासतों का देश में विलय करवाने वाले और एक अखंड एकीकृत भारत की राह प्रशस्‍त करने वाले सरदार पटेल. 

भारत के पहले गृह मंत्री के रूप में पटेल ने रियासतों के एकीकरण के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आज भी पटेल को देश को एक करने वाले व्‍यक्ति के रूप में याद किया जाता है. कई बार उनकी तुलना ओटो वॉन बिस्मार्क से भी की जाती है, जिन्होंने 1871 में कई जर्मन राज्यों को एकीकृत करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

 

आजादी के समय भारत में 565 से ज्‍यादा स्‍वतंत्र रियासतें थीं. इन रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया था. भारतीय राष्ट्रवादियों और जनता के बड़े हिस्से को यह डर था कि अगर इन राज्यों का विलय नहीं हुआ तो देश कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाएगा. 

इसलिए कोशिश यह थी कि किसी तरह इन रियासतों को भारत के साथ शामिल होने के लिए मना लिया जाए. कांग्रेस के साथ-साथ वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारियों को भी लगता था कि सरदार पटेल इस काम के लिए सबसे सही व्‍यक्ति हैं. पटेल का व्यवहारिक कौशल, संकल्प और ईमानदारी की पूरे कांग्रेस में भी कोई मिसाल न थी. गांधी ने पटेल से कहा था, "राज्यों की समस्या इतनी कठिन है कि सिर्फ आप ही इसे हल कर सकते हैं"

पटेल ने यह जिम्‍मा उठाया और वरिष्‍ठ अधिकारी वीपी मेनन को अपना दाहिना हाथ बनाने का आग्रह किया. पटेल ने साम, दाम, दंड, भेद, जहां जिस भी चीज की जरूरत पड़ी, उसे अपनाया और रिकॉर्ड समय में इस काम को अंजाम दिया.

आजादी से पहले जो अस्‍थायी सरकार बनी थी, पटेल उसमें रियासती विभाग के कार्यवाहक थे. उन्‍होंने रियासतों के राजकुमारों से मुलाकात शुरू की. उस दौरान अकसर ही पटेल के दिल्‍ली स्थित घर में किसी न किसी रजवाड़े के मुखिया से मुलाकात का कार्यक्रम होता. कुछ लोग आसानी से मान गए थे और कुछ लोगों के साथ गंभीर रणनीतिक दांवपेचों का इस्‍तेमाल करना पड़ा था.

जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी. भोपाल भारतीय संघ में शामिल होने वाली आखिरी विरासत थी. जूनागढ़ ने घोषणा की थी कि वो पाकिस्तान में मिल जाएगा और कश्मीर ने स्वतंत्र बने रहने की इच्‍छा जाहिर की थी.

indian lawyer, political leader, barrister and statesman sardar vallabhbhai patel

माउण्टबेटन ने नेहरू के सामने जो प्रस्ताव रखा था, उसमें ये प्रावधान था कि भारत के रजवाड़ों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में विलय का विकल्‍प दिया जाएगा. वे चाहें तो स्‍वतंत्र रहना भी चुन सकते हैं. इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे.

यह सरदार पटेल के प्रयासों का ही नतीजा था कि भारत के हिस्से में आए अधिकांश रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. इसका सारा श्रेय पटेल और वीपी मेनन को जाता है.

इस प्रक्रिया में सरदार पटेल के सामने तीन रियासतें ही चुनौती बनकर खड़ी थीं. जूनागढ़, हैदराबाद और कश्‍मीर.

हैदराबाद कैसे बना भारत का हिस्‍सा

हैदराबाद बहुत बड़ी और समृद्ध रियासत थी, जो पूरे दक्कन पठारों तक फैली हुई थी. यहां आबादी तो हिंदू बहुल थी, लेकिन शासक एक मुसलमान निजाम मीर उस्मान अली थे. शुरू में निजाम मीर अली ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया और स्वतंत्र राज्य होने की मांग की थी. पटेल और मेनन की बातचीत की सारी कोशिशें जब विफल हो गईं तो सैन्‍य शक्ति के द्वारा हैदराबाद पर आधिपत्‍य स्‍थापित किया गया.

13 सितंबर, 1948 को ‘ऑपरेशन पोलों’ के तहत भारतीय सैनिकों ने हैदराबाद पर हमला किया. 4 दिनों तक सशस्त्र संघर्ष चला और लड़ाई के अंत में हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया. निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया पर उसे हैदराबाद का गवर्नर बनाया गया.

जनमत संग्रह से बना जूनागढ़ भारत का हिस्‍सा

गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रियासत जूनागढ़ 15 अगस्त तक भी भारत में शामिल नहीं हुई थी. वहां की अधिकांश आबादी हिंदू और शासक एक मुसलमान था, जिनका नाम था नवाब मुहम्मद महाबत खानजी. उन्‍होंने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय किया और तर्क दिया कि जूनागढ़ समंदर के रास्‍ते पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है.  

हालांकि जूनागढ़ रियासत के अंतर्गत आने वाले कुछ राज्‍य इस फैसले से सहमत नहीं थे. वह भारत के साथ ही रहना चाहते थे. जब उन्‍होंने नवाब का विरोध करना चाहा तो सैन्‍यबल का प्रयोग कर नवाब ने विरोध को दबा दिया. उन राज्‍यों ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई. सरकार को भी पता था जूनागढ़ के पाकिस्‍तान में विलय का अर्थ था सांप्रदायिक दंगों का भड़कना और भारत की कूटनीतिक, सैन्‍य स्थिति का और कमजोर पड़ जाना.

पटेल जानते थे कि नवाब का फैसला जो हो, जनता भारत के साथ ही रहना चाहती है. उन्‍होंने जनमत संग्रह करवाने का प्रस्‍ताव रखा और अंतत: जनमत संग्रह में भारी बहुमत से जनता ने भारत के साथ रहने के पक्ष में मतदान किया. इस तरह पटेल की कूटनीति और समझदारी ने जूनागढ़ को भारत का हिस्‍सा बना दिया.

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कश्मीर

हैदराबाद और जूनागढ़ के उलट कश्‍मीर रियासत की कहानी बिलकुल अलग है. कश्‍मीर की बहुसंख्यक आबादी मुसलमान थी और राजा हिंदू. कश्‍मीर के राजा हरि सिंह आजादी के समय तक यह फैसला नहीं कर पाए थे कि वे किस देश के साथ विलय चाहते हैं. उन्‍होंने भारत और पाकिस्‍तान दोनों के ही विलय पत्र पर हस्‍ताक्षर नहीं किए थे.

पाकिस्‍तान कश्‍मीर को अपने देश में मिलाना चाहता था. इसीलिए पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया. महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्‍तानी सेना का मुकाबला किया और भारत सरकार से मदद की अपील की. महाराजा ने राजा ने शेख अब्दुल्ला को अपना प्रतिनिधि बनाकर मदद के लिए दिल्ली भेजा.

उसके बाद 26 अक्तूबर, 1947 को राजा हरि सिंह ने भारत के साथ ‘विलय पत्र’ पर हस्ताक्षर कर दिये. 


Edited by Manisha Pandey