नवीन ऊर्जा का वित्तीय संकट: बढ़ रहा है टैक्स, घटती जा रही है सब्सिडी
CEEW और IISD की हाल की एक संयुक्त अध्ययन में सामने निकल कर आया है कि भारत के नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में सब्सिडी पिछले पांच साल में 59 प्रतिशत तक कम हो गई है. उधर सरकार ने नवीन ऊर्जा के स्रोतों पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने सौर उपकरणों पर पिछले साल ही टैक्स बढ़ाए थे.
भारत के नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में अब निवेश बढ़ता दिख रहा है. कोरोना महामारी के बाद अब इस क्षेत्र के बाज़ार में फिर से उछाल देखने को मिला है. लेकिन हाल ही में आए कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन में इस क्षेत्र के वित्तीय समस्याओं की ओर ध्यान भी आकर्षित किया गया है. अगर समय रहते इन चुनौतियों पर काम नहीं किया गया तो स्वच्छ ऊर्जा के विकास में बाधा पैदा हो सकती है.
इन अध्ययन में सामने निकल कर आया है कि नवीन ऊर्जा से जुड़ी सब्सिडी धीरे धीरे कम होती जा रही है जबकि इस क्षेत्र से जुड़े टैक्स में बढ़ोत्तरी हो रही हैं. सौर परियोजनाओं के लिए आयात होने वाले उपकरण भी बढते कस्टम ड्यूटी के कारण महंगे दामों में मिल रहें हैं. हाल के सेंटर ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट अंड वॉटर (सीईईडबल्यू) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) की एक संयुक्त रिसर्च बताती है कि पिछले पांच सालों में नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में मिलने वाली सब्सिडी 59 प्रतिशत तक कम हो गई. इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि जिस स्तर का निवेश सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों को स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए करना चाहिए, उसके हिसाब से निवेश हो नहीं रहा है.
भारत सरकार ने 2030 तक देश में 450 गीगावाट तक की नवीन ऊर्जा की क्षमता को हासिल करने की घोषणा की थी ताकि देश में कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके. वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में 2070 तक भारत को नेट जीरो (उत्सर्जन मुक्त) बनाने की भी घोषणा की है. भारत में अभी के समय में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 111.39 गीगावाट तक की स्वच्छ ऊर्जा की क्षमता स्थापित हो चुकी है. भारत ने 2021-22 में 15.5 नवीन ऊर्जा का विकास किया जबकि इसी समय में 11338.8 करोड़ रुपये का निवेश भी इस क्षेत्र में देखा गया. सीईईडबल्यू और आईआईएसडी की रिपोर्ट कहती है कि 2017 में इस क्षेत्र में 16,132 करोड़ रुपये की सब्सिडी सरकार द्वारा दी गई जबकि 2021-22 में यह सब्सिडी कम होकर 6,767 करोड़ रुपये तक आ गई. हालांकि उसी समय में इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी लगभग तिगुनी हो गई. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ ऊर्जा की परियोजनाओं को अधिक वित्तीय सहायता गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफ़सी) और कुछ निजी बैंकों के द्वारा मिली. जबकि सरकारी बैंकों का अधिक निवेश कोयला या दूसरे जीवाश्म ईंधन के स्रोत से जुड़ी परियोजनाओं पर हुआ.
इस रिपोर्ट से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि सब्सिडी के कम होने से सरकार द्वारा बनाए गई महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने में दिक्कत आ सकती है. उनका कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा को और सब्सिडी की जरूरत है. इस क्षेत्र के दूसरे वित्तीय समस्याओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
“अगर हम देश में सौर ऊर्जा उत्पादन, ग्रीन हाइड्रोजन, विकेंद्रीकृत परियोजना और दूसरे तकनीकों को बढ़ाना चाहते हैं तो हमें सब्सिडी बढ़ानी होगी. इसके अलावा सरकार को निवेश, स्वच्छ ऊर्जा को ग्रिड से जोड़ने, नवीन ऊर्जा के स्रोतों का बैटरी के संचय द्वारा बढ़ावा देने, इसके ट्रान्समिशन को प्रबल बनाने पर भी ध्यान देना जरूरी है,” सीईईडबल्यू के प्रोग्राम एसोशिएट प्रतीक अग्रवाल ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
उन्होंने यह भी बताया कि इस क्षेत्र में और अधिक निवेश की जरूयत पड़ेगी जिसे बहुत से वित्तीय संस्थानों की मदद से पूरा किया जा सकता है. क्योंकि इसमें ऋण की जरूरत पड़ेगी. उन्होंने बताया कि सीईईडबल्यू की एक रिपोर्ट बताती है कि स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में ही देश में लगभग 15,630 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी. एनबीएफ़सी और बैंकों द्वारा देश के कुल ऊर्जा क्षेत्र को मिलने वाली वित्तीय सहायता अभी के समय में केवल 12,504 करोड़ रुपये है.
“ऐसी जरूरतों को पूरा करने के लिए अभी के समय में बैंक और एनबीएफ़सी के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है. इसके लिए बॉन्ड मार्केट से पर्याप्त निवेश (जो की लगभग 75 ,984 करोड़ की है) के लिए इस क्षेत्र में सब्सिडी वाले ऋण को बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी.,” अग्रवाल ने बताया.
यह रिपोर्ट बताती है कि 2021-22 में इस क्षेत्र को सब्सिडी, पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम) और वित्तीय संस्थानों से कुल 540,000 करोड़ रुपये की सहायता मिली. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकिंग संस्थानों की इस क्षेत्र में दी जाने वाले आर्थिक सहायता में पारदर्शिता की कमी रहती है. सुधार की जरूरत
ऐसी स्थिति में क्या भारत के रिजर्व बैंक का कुछ योगदान हो सकता हैं? इस सवाल पर इस रिपोर्ट को बनाने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि इन चीजों को नीतिगत तरीके से चलाने में आरबीआई और सरकार दोनों की भूमिका है. स्वस्ती राइज़दा, जो आईआईएसडी में एक नीति सलाहकार है, ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि भारत के सार्वजनिक बैंको में वार्षिक ऋण देने में ‘ग्रीन’ एलिमंट की कमी है.
“चूंकि सार्वजनिक बैंक बहुत से क्षेत्रों में निवेश करते हैं इनके स्वच्छ ऊर्जा का सही रिपोर्टिंग नहीं होने के कारण यह बताना मुश्किल हो जाता है है कि कुल ऊर्जा क्षेत्र में से कितना अंश स्वच्छ ऊर्जा को दिया गया. ऐसी स्थिति में आरबीआई के हस्तक्षेप की जरूरत है ताकि वित्तीय संस्थानों को यह निर्देश मिले कि स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहन देने को लेकर बैंक आगे आयें.स्वच्छ ऊर्जा को वित्तीय सहायता देने के लिए लक्ष्य निर्धारित होने चाहिए,” राइजदा ने बताया. आरबीआई ने पहले ही ऊर्जा क्षेत्र को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋण का दर्जा दिया है.
भारत में पीएसयू ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान निभाती हैं. . देश के बहुत से ऊर्जा के स्रोतों जैसे-कोयला, पेट्रोल, प्रकृतिक गैस आदि के विकास इत्यादि में इनके प्रमुख भूमिका रहती है. यह रिपोर्ट पीएसयू के लिए निर्धारित रोडमैप और लक्ष्य की बात करती है जिससे देश में नवीन ऊर्जा का विकास अपेक्षित गति से हो पाए. ताकि देश में कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके.
“भारत के पीएसयू को अपने चल रहे व्यापार के अलावा स्वच्छ ऊर्जा के दूसरे तकनीक को भी अपनाने की जरूरत है. उन्हे स्वच्छ ऊर्जा पर निवेश करने के लिए भी लक्ष्य बनाने की जरूरत है. यह इस लिए भी जरूरी है क्योंकि उनके पास मौजूद पूंजी का स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहित करने में योजनागत तरीके से इस्तेमाल हो सके,” राइजदा ने बताया.
हालांकि सब्सिडी की कमी ही नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में इकलौता वित्तीय संकट नहीं है. कुछ अध्ययनों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कि बैंकों द्वारा स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को दिया जाना वाला ऋण अधिक ब्याज पर दिया जाता है. स्वच्छ ऊर्जा के प्रोत्साहन के लिए इकट्ठा पैसे दूसरे क्षेत्रों पर भी खर्च होता है. महंगे ऋण की वजह से देश में स्वच्छ ऊर्जा की परियोजना में होने वाला निवेश भी महंगा हो जाता है.
कोयला बनाम स्वच्छ ऊर्जा
देश में हाल ही मे आए ऊर्जा संकट से ऊर्जा सुरक्षा और कोयले के जरूरत पर भी चर्चा तेज हैं. सरकार, शोधकर्ता, पर्यावरणविद अब इस विषय को लेकर चिंतित हैं कि कैसे अर्थव्यवस्था को ठेस पहुंचाए बिना स्वच्छ ऊर्जा का विकास हो सके.
सेंटर फॉर स्टडी ऑन साइन्स, टेक्नालजी एण्ड पॉलिसी (सीएसटीईपी) के हाल ही में प्रकशित एक रिपोर्ट के अनुसार अगर जीवाश्म ईंधन की जगह हम स्वच्छ ऊर्जा का विकास अधिक करे तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. यह रिपोर्ट कहती हैं कि स्वच्छ ऊर्जा पर निवेश करने पर देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ सकता है. इस रिपोर्ट की माने तो ज्यादा स्वच्छ ऊर्जा के प्रकल्प लगाने पर प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2172 रुपये तक बढ़ सकती है. इस रिपोर्ट में भी इस क्षेत्र में सब्सिडी बढ़ाने की वकालत की गई है.
कृतिका रविशंकर जो सीएसटीईपी में एक समीक्षक है, ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “नवीन ऊर्जा में निवेश और सब्सिडी जीवाश्म ईंधन पर टैक्स लगाने से बेहतर विकल्प है. जब हमारे देश में जीवाश्म ईंधन के सामने सस्ती और पर्याप्त नवीन उर्जा का विकल्प मौजूद होगा तब जीवाश्म ईंधन पर टैक्स लगाना सही रहेगा,” रविशंकर ने बताया.
सीएसटीईपी के रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोयले से बनने वाली ऊर्जा को कम करना पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि उद्योगों के लिए इसकी मांग आने वाले दिनों में बढ्ने की आशंका है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोहा और सीमेंट उद्योग को भी कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने के लिए समुचित प्रयास करने की जरूरत है.
स्वच्छ ऊर्जा पर बढ़ते टैक्स
देश में नवीन ऊर्जा से जुड़ी सब्सिडी का कम होने के अलावा, दूसरी समस्या सौर और पावन ऊर्जा में इस्तेमाल उपकरणों पर बढ़त टैक्स भी है. उदाहरण के लिए पिछले साल सितम्बर के महीने में सरकार ने सौर पैनल पर जीएसटी 5 प्रतिशत से बढ़ा के 12 प्रतिशत कर दिया. इससे इस क्षेत्र में होने वाला निवेश प्रभावित हो सकता है.
उसी तरह सौर ऊर्जा के घरेलू उत्पादको के तथाकथित संरक्षण के लिए सरकार ने इस साल से सौर पैनल और सौर मॉड्यूल के आयात पर कस्टम ड्यूटी भी बढ़ा दी है. सौर पैनल के लिए 25 प्रतिशत ड्यूटी रखी गई है जबकि सौर मॉड्यूल के लिए 40 प्रतिशत. नवीन और नवीकरणीय मंत्री आर के सिंह ने इस प्रस्ताव को वापस ना लेने का भी ऐलान किया है.
हालांकि आयात कर टैक्स बढ़ाने से घरेलू उत्पादक खुश हैं. लेकिन सौर परियोजना विकसित करने वाले बहुत से लोगों के लिए यह सिर दर्द बन गया है क्योंकि इससे उनके परियोजना में लग रहे उपकरण महेंगे हो जाएंगे. ऐसे तब हो रहा है जब आज भी देश बहुत से सौर उपकरों के लिए आयात पर निर्भर है.
भारत की नेशनल सोलर एनर्जी फ़ैडरेशन ऑफ इंडिया (एनएसईएफ़आई) ने आर के सिंह को इस विषय में पत्र लिख का चिंता भी जताई है जिसमें कहा गया है कि ऐसे करने से सौर परियोजना में आने वाला खर्च बढ़ सकता है.
क्रिसिल भारत में एक रेटिंग एजेंसी है. उनका कहना है कि सौर पैनल पर बढ़े हुये जीएसटी लगाने पर सौर परियोजना में लगना वाला खर्च बढ़ जाएगा. फिर बिजली की दरें बढ़ सकती हैं और उपभोक्ताओं पर इसका पड़ेगा.
इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंसियल एनालिसिस (आईईईएफ़ए) के जून 9 की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी के बाद देश में स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश बढ़ा है. 2020-21 के मुक़ाबले 2021-22 में इसमें निवेश 125 प्रतिशत तक बढ़ा है जबकि 2019-20 के समय के मुक़ाबले यह वृद्धि 72 प्रतिशत है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021-22 में इस क्षेत्र में 11,33,59 करोड़ रुपये का निवेश हुआ लेकिन अगर भारत को इसके 2030 के लक्ष्य को पाना है तो प्रति वर्ष लगभग इसके दोगुने निवेश की जरूरत पड़ेगी.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: NRDC