जेंडर भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए Infosys पर मुदकमा दर्ज, पूर्व कर्मचारी ने खटखटाया कोर्ट का दरवाजा
इंफोसिस पर जेंडर भेदभाव का यह पहला केस नहीं है. 2021 में भी चार महिलाओं ने कंपनी पर आरोप लगाया था भेदभाव का आरोप.
आईटी क्षेत्र की देश की जानी-मानी मल्टीनेशनल कंपनी इंफोसिस पर अमेरिका में मुकदमा दर्ज हुआ है. इंफोसिस पर आरोप है कि वह रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया में महिलाओं के साथ भेदभाव करता है. इंफोसिस पर आरोप है कि कंपनी बहुत सिस्टमैटिक तरीके से भर्ती प्रक्रिया में महिलाओं के साथ भेदभाव कर रही है.
यह आरोप लगाने वाली कोई और नहीं, बल्कि इंफोसिस की पूर्व रिक्रूटर और टैलेंट इक्विजिशन डिपार्टमेंट की वाइस प्रेसिडेंट जिल प्रेजॉन हैं. जिल प्रेजॉन ने इंफोसिस के पूर्व सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और कसंल्टिंग हेड मार्क लिविंग्सटन और पूर्व पार्टनर डैन अलब्राइट व जेरी कर्ट्ज पर मुकदमा दर्ज करवाया है.
इंफोसिस ने कहा कि जिल प्रेजॉन के सारे आरोप बिलकुल निराधार हैं और न्यायालय से अपील की कि प्रेजॉन आरोपों को खारिज कर दिया जाए, जिसे यूनाइटेड स्टेट्स डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के न्यूयॉर्क के साउदर्न डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने खारिज कर दिया. साथ ही कोर्ट ने इंफोसिसस कंपनी समेत सभी आरोपियों को अपना जवाब और सफाई पेश करने के लिए 21 दिन का समय दिया है.
2018 में इंफोसिस से जुड़ी थीं जिल प्रेजॉन
जिल प्रेजॉन ने 2018 में इंफोसिस के साथ काम करना शुरू किया. इसके पहले वो अमेरिका की जानी-मानी आईटी कंपनियों के साथ बतौर रिक्रूटर काम कर चुकी थीं. इस बार उन्हें कंपनी के टैलेंट इक्विजिशन डिपार्टमेंट में वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया था. उन्हें कंपनी के लिए कई लीडरशिप पदों पर नियुक्तियां करनी थीं.
कंपनी की हायरिंग की जरूरतों को क्राइटेरिया को समझने के लिए उनकी कंपनी के आला अधिकारियों और पार्टनर्स के साथ मीटिंग होती रहती थी. इन मीटिंग्स के बाद उन्हें समझ में आया कि कंपनी महिलाओं, शादीशुदा और बच्चों वाली महिलाओं के साथ बहुत सिस्टमैटिक तरीके से भेदभाव कर रही है.
उन मीटिंग्स में जिल के सामने इनडारेक्ट तरीके से जो क्राइटेरिया पेश किए गए, उनमें ये था कि 50 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं और बच्चों वाली महिलाओं को हायरिंग की प्रक्रिया से बाहर रखा जाए. इतना ही नहीं, कंपनी भारतीय मूल के लोगों के साथ भी भेदभाव कर रही थी, जिन्हें साफतौर पर हायरिंग में प्राथमिकता न दिए जाने की बात कही गई.
जिल प्रेजॉन को समझ में आया कि कंपनी उम्र और जेंडर के आधार पर सुनियोजित तरीके से भेदभाव कर रही थी, जो अमेरिकी कानून के मुताबिक न सिर्फ गलत, बल्कि एक दंडनीय अपराध भी है. प्रेजॉन ने यह भी पाया कि अलब्राइट और कर्ट्ज जैसे कुछ चंद कर्मचारी खासतौर पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे और कंपनी की लिखित पॉलिसी के खिलाफ जाकर बहुत ज्यादा भेदभाव कर रहे थे. यही कारण है कि जिल के केस में कंपनी के साथ-साथ विशेष तौर पर अलब्राइट और कर्ट्ज का नाम है.
भेदभाव का विरोध करने पर जिल के साथ हुआ भेदभाव
दिसंबर, 2018 में मार्क लिविंगस्टन ने बतौर वाइस प्रेसिडेंट कंपनी ज्वॉइन की. मार्क की तरफ से जिल पर लगातार ये दबाव बनाया जाने लगा कि वो महिलाओं और उम्रदराज महिलाओं को हायर न करें. जब जिल ने इस प्रैक्टिस को गैरकानूनी बताते हुए इसका विरोध करने की कोशिश की तो खुद जिल को भेदभाव और हैरेसमेंट का शिकार होना पड़ा. मार्क लिविंगस्टन ने जिल को नौकरी से निकालने की धमकी दी.
कंपनी की गलत नीतियों पर सवाल उठाने का नतीजा ये हुआ कि इंफोसिस ने बिना कोई कारण बताए जिल प्रेजॉन को नौकरी से निकाल दिया. जिल ने अब न्यूयॉर्क डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में कंपनी के खिलाफ कई धाराओं में मुकदमा दर्ज करवाया है. मुकदमे को खारिज करने की मांग को कोर्ट ने नकार दिया है और अब इंफोसिस के पास अगले 20 दिन का वक्त है अपनी सफाई पेश करने के लिए.
हालांकि जेंडर भेदभाव का यह आरोप इंफोसिस पर पहली बार नहीं लगा है. इसके पहले 2021 में भी चार महिला कर्मचारियों ने कंपनी पर आरोप लगाया था कि कंपनी में बहुत बारीक स्तर पर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है और महत्वपूर्ण पदों, कामों और प्रोजेक्ट्स के लिए पुरुष कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाती है.
कहानी इंफोसिस की
आज से 41 साल पहले 1981 में इंफोसिस की शुरुआत हुई. एन.आर. नारायण मूर्ति और नंदन नीलकेणी समेत पांच लोग इसके संस्थापक थे. 1999 में इंफोसिस अमेरिकन स्टॉक मार्केट नैस्डेक (National Association of Securities Dealers Automated Quotations) में लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी थी. साल 2012 में फोर्ब्स में इंफोसिस को दुनिया की इनोवेटिव कंपनियों की सूची में शुमार किया. यह 7 लाख करोड़ के मार्केट कैप तक पहुंचने वाली चौथी भारतीय कंपनी है. 2022 में कंपनी का कुल रेवेन्यू 16 बिलियन यूएस डॉलर था.
Edited by Manisha Pandey