सिगरेट पीने से ज़्यादा ख़तरनाक हो गया है भारत के इन शहरों में साँस लेना
एअर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (Air Quality Life Index) 2022 की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है. ख़राब हवा लोगों की उम्र के पाँच साल छीन रही है, दिल्ली जैसे शहर में तो लोग इसे कारण दस साल काम जी रहे हैं.
दिल्ली की हवा में साँस लेने वाले जानते हैं कि साँस लेना भी कितना कठिन काम है. सालों से हम सुन रहे हैं देख रहे हैं और अपने फेफड़ों में ले कर देख रहे हैं कि हवा कितनी ख़तरनाक कितनी ज़हरीली हो गयी है. दिल्ली बदनाम हो गया लेकिन भारत के ज़्यादातर बड़े शहर दिल्ली से कम नहीं हैं प्रदूषण के मामले में. लखनऊ, कामपुर, लुधियाना, जोधपुर जैसे शहर दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित पचास शहरों में आते हैं. एअर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (Air Quality Life Index) 2022 की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है. पूरी दुनिया में पिछले दस साल में जितना प्रदूषण बढ़ा है उसमें लगभग आधा [44%] भारत के कारण बढ़ा है.
भारतीयों की जीवन संभाव्यता (Life Expectancy) वायु के प्रदूषित होने के कारण 5 वर्ष घट जाती है. वहीँ भारत की राजधानी, दिल्ली में तो वायु प्रदूषण से लगभग १० साल आयु घट जाती है, रिपोर्ट के मुताबिक. भारत में वायु प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत फॉसिल-फ्यूल एमिशन, गाड़ियों के ट्रैफिक, कोयला द्वारा चलाये जाने वाले पॉवर प्लांट्स, फसलों को जलाने से उत्पन्न ज़हरीला धुंआ, ईट-भट्टियां और कारखाने हैं.
ग्लोबल रिपोर्ट के मार्फ़त बताया गया है कि दुनिया के 82 प्रतिशत लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ की हवा वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (World Health Organization) के साफ़ हवा के गाइडलाइन्स से बहुत नीचे हैं यानि साँस लेने लायक़ नहीं है. दक्षिण एशिया के चार देश, बांग्लादेश, इंडिया, नेपाल, और पाकिस्तान दुनिया के सारे देशों में इस मामले में सबसे आगे हैं.
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उत्तरी भारत, गंगा के मैदानी भाग, में लगभग 51 करोड़ लोग रहते हैं जो देश की आबादी के लगभग 40 प्रतिशत है. अगर प्रदूषण जस-का-तस बना रहा, दिल्ली से बंगाल तक के निवासियों की उम्र लगभग 9 साल घटने की आशंका जताई गयी है. प्रदूषण स्तर कम नहीं होने के कारण लखनऊ के निवासियों की उम्र 9.5 वर्ष घट सकती है.
रिपोर्ट में स्थिति की भयावहता की तरह ध्यान दिलाते हुए यह बताया गया है कि जीवन पर ख़तरे के मामले में वायु प्रदूषण स्मोकिंग, ड्रग्स, शराब, HIV/AIDS जैसी गंभीर बीमारियों, और आंतकवाद से भी ज्यादा खतरनाक है.
पार्टिकुलेट प्रदुषण सबसे खतरनाक है क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है. सिगरेट पीने से ग्लोबल लाइफ-एक्स्पेकटेंसी 1.9 साल कम होती है, वहीं शराब से 9 महीने, गन्दा पानी पीने और सैनिटेशन के अभाव में 7 महीने कम होते हैं, HIV/AIDS से 4 महीने, मलेरिया से 3 महीने, आतंकवाद से 7 दिन. स्मोकिंग या शराब पीना छोड़ा जा सकता है, बीमारियों के लिए ट्रीटमेंट ली जा सकती है, पर अगर हवा ही साफ़ नहीं है तो हमारे पास कोई चारा ही नहीं बचता है. हम सांस लेंगे तो ज़हरीली हवा ही अन्दर जायेगी.
हवा को साफ़ करने के लिए क्या कर रहे हैं हम?
भारत सरकार ने 2019 में “वॉर ऑन पॉल्यूशन” घोषित करते हुए “नेशन क्लीन एयर प्रोग्राम” (Nation Clean Air Programme) की पॉलिसी अपनाई है जिसके तहत साल 2024 तक मौजूदा प्रदुषण लेवल से 20-30 प्रतिशत कमी लाने की कोशिश की जायेगी.
300 करोड़ की लागत का यह प्रोग्राम भारत के 23 राज्यों के 102 शहरों में किया जाएगा जिनका एअर क्वालिटी नेशनल एम्बिएंट एअर क्वालिटी स्टैण्डर्ड डाटा 2011-2015 की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ख़राब है. इस लिस्ट में महारष्ट्र के 17 शहर हैं, उत्तर प्रदेश के 15 और अन्य शहर झारखण्ड, तमिलनाडु, मेघालय और वेस्ट बंगाल से हैं. गौरतलब है कि मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, केरल, गोवा और हरयाणा के कोई शहर इस लिस्ट में नहीं हैं.
इस प्रोग्राम को विभिन्न क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स के कोलाबोरेशन की तरह चलाया जाएगा. इसमें शामिल रहेंगे मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवेज, मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस, मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी, मिनिस्ट्री ऑफ हैवी इंडस्ट्री, मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर, मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ, NITI आयोग और सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड.