क्यूँ बार बार लगता है प्लास्टिक बैन और बार बार असफल होता है?
1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की तैयारी है. लेकिन यह केंद्र या राज्य स्तर पर पहली बार नहीं हो रहा है. अब तक क्यूँ नहीं हुए हैं बैन सफल?
भारत ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट (अमेंडमेंट) रूल्स {Plastic Waste Management (Amendment) Rules} 2021 के तहत 1 जुलाई से प्लास्टिक प्रोडक्ट्स पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाने का आदेश जारी किया है. यह अधिसूचना यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट असेंबली (United Nations Environment Assembly) 2021 में पारित हुए उस प्रस्ताव की पालना में है जिसके तहत 2025 तक धरती से सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह से ख़त्म किया जाना है. इस प्रस्ताव का अमेरिका ने विरोध किया था लेकिन भारत ने इस संकल्प के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया.
बैन लगाना भारत में नीति निर्धारकों के लिए कोई नयी बात नहीं है. सिक्किम सरकार ने भारत में पहली बार प्लास्टिक बैन 1998 में किया था. पिछले एक दशक में 22 से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्लास्टिक कैरी बैग को पूरी तरह से या आंशिक तरीके से प्रतिबंधित किया है. प्लास्टिक पर बैन एक सबसे ज्यादा चलने वाला या यू कहें पर्यावरण के प्रति अपनी सजगता दिखाने के लिए एक हॉट टॉपिक बन गया है.
प्लास्टिक उत्पादन को नियंत्रित करने वाले नियम-कानून सरकारों के लिए एक लोकप्रिय और कारगर राजनितिक टूल रहे हैं जबकि कंपनियों के लिए एक अभिशाप. प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी को लेकर सरकार और कंपनियों के बीच हमेशा रस्साकशी रही है. इसीलिए जब-जब प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध की घोषणा हुई है तब-तब कंपनियों ने इसका खुलकर विरोध किया है. नतीजनन, प्लास्टिक मैनेजमेंट बैन लगाने और फिर उसमे ढील दिए जाने से आगे कभी बढ़ नहीं पाया.
इंडिया का पहला प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट कानून सितम्बर 1999 में बना था जिसका मुख्य उद्देश्य प्लास्टिक कैरी बैग और रीसायकल प्लास्टिक में फूड पैकेजिंग को रोकना था. 2003 में इन नियमों में संशोधन करके कैरी बैग पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी गयी.
आगे के सालों में प्लास्टिक वेस्ट में बढ़ते अनुपात को देखते हुए साल 2011 में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स लाये गए. और पहली बार एक राष्ट्र व्यापी बैन गुटखा, पान मसाला और तंबाकू के प्लास्टिक पैकेजिंग मटेरियल पर लगाया गया. लेकिनहर बार की तरह 2011 की अधिसूचना का अनुपालन कागजों तक सिमट कर रह गया.
स्वच्छ भारत अभियान की उद्घोषणा के साथ प्लास्टिक वेस्ट और कचरे पर सरकार और लोगों का ध्यान फिर से गया. 16 मार्च, 2016 को लाए गये केंद्रीय पर्यावरण मिनिस्ट्री के प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स (Plastic Waste Management Rules) ग्लोबल साउथ (Global South) में पालिसी मेकिंग का बेंच मार्क बन गये. इसके तहत अनेक प्रगतिवादी कदम उठाये गए जैसे कि ‘पौल्यूटर्स पे’ (Polluter’s pay), ‘एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पोंसिबिलिटी’ (Extended producers’ responsibilities). यह 2 साल का प्लान था जिसके अंतर्गत पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना. 2 साल के बाद ही यह नियमावली भी वैसे भुला दी गयी जैसे कभी बनी ही ना हो.
इस रवैये को देखते हुए एक सवाल उठता है: क्या प्रतिबन्ध हमारे देश में काम करता है?
नीति निर्धारकों की राय में बैन लगाना सबसे आसान होता है. बैन लगाना या प्रतिबन्ध लगाना गुड गवर्नेंस का आभास तो देता है लेकिन असल में यह कोई पॉलिसी नहीं है. प्रतिबन्ध काम करते हैं, जैसे ड्रग्स और बन्दूकों पर प्रतिबन्ध लगाना एक हद्द तक कारगर रहा है लेकिन ऊँची रसूख या पहुँच वाले लोगों के लिए इन्हें हासिल करना मुश्किल नहीं रहा है.
केंद्रीय प्रदूषण कण्ट्रोल बोर्ड और स्टेट पोल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड के पास पर्यावरण सम्बंधित इतने मुद्दे हैं कि सिर्फ एक दिशा में या एक मसले का समाधान ढूँढने से बात नहीं बनेगी. बैन इसलिए काम नहीं करते क्योंकि सरकार के सारे तंत्र एक साथ और गंभीरता से इसके पीछे काम नहीं करते हैं. प्रतिबन्ध का पालन हो रहा है या नहीं यह उनके कार्यों की सूची के आखिर में होता है. दिल्ली, तमिलनाडू, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने कई सालों से प्लास्टिक यूज बैन कर रखा है पर असलियत इससे अलग है.
पर्यावरण के मुद्दों पर भारत के पास नियम और कानून की कमी नहीं है, कमी है उसे लागू करने के लिए प्रतिबद्धता की. पिछले आदेशों का हश्र देखते हुए यह बात दोहराने की जरुरत है कि नए नियमों को सफल करने के लिए और पर्यावरण संकट से लड़ने के लिए जरुरत है पोलिटिकल विल की और रिसोर्सेज की.
पूरी तरह से प्रतिबन्ध के बजाय प्लास्टिक का बदल ढूंढना होगा. प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग कम्पनियों में काम कर रहे लोग और कूड़ा-कचरा बीनने वाले लोगों को दुसरे जॉब्स मिलने की गारंटी करनी होगी. व्यापारियों और दुकानदारों को जुर्माना भरने के बजाय प्लास्टिक वेस्ट में कमी करने के लिए या सस्टेनेबल प्रोडक्ट्स बनाने के लिए उन्हें रिवार्ड्स या इंसेंटिव देने की तरफ सोचना होगा.