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देश का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरिअर INS Vikrant नौसेना में शामिल हुआ, दो फुटबाल फील्ड से भी है बड़ा

INS विक्रांत पोत 20,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित और अत्याधुनिक स्वचालित यंत्रों से लैस युद्धपोत है. यह 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है. इसका मतलब है कि इसका फ्लाइट डेक दो फुटबाल फील्ड से भी बड़ा है. इस पोत का वजन 45,000 टन है. इसकी अधिकतम गति 28 नॉट है.

देश का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरिअर INS Vikrant नौसेना में शामिल हुआ, दो फुटबाल फील्ड से भी है बड़ा

Friday September 02, 2022 , 6 min Read

भारत के समुद्री इतिहास में अब तक के सबसे बड़े जहाज और Make In India के तहत निर्मित पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत (IAC-1) भारतीय नौसैन्य जहाज विक्रांत (INS Vikrant) को शुक्रवार को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने यहां कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) में एक समारोह में 20,000 करोड़ रुपये की लागत से देश में ही निर्मित जहाज को नौसेना के बेड़े में शामिल किया. SAIL ने Atmanirbhar Bharat अभियान के तहत इसके लिए 30000 टन स्टील की आपूर्ति की है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज INS विक्रांत ने देश को एक नए विश्वास से भर दिया है, देश में एक नया भरोसा पैदा कर दिया है. INS विक्रांत के हर भाग की अपनी एक खूबी है, एक ताकत है, अपनी एक विकासयात्रा भी है. ये स्वदेशी सामर्थ्य, स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है. इसके एयरबेस में जो स्टील लगी है, वो स्टील भी स्वदेशी है.

उन्होंने आगे कहा कि इंडियन नेवी ने अपनी सभी शाखाओं को महिलाओं के लिए खोलने का फैसला किया है. जो पाबन्दियां थीं वो अब हट रही हैं. जैसे समर्थ लहरों के लिए कोई दायरे नहीं होते, वैसे ही भारत की बेटियों के लिए भी अब कोई दायरे या बंधन नहीं होंगे. 

देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत (IAC-1) को INS विक्रांत के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. इसके साथ ही भारत- अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के समूह में शामिल हो गया जो कि विमानवाहक पोत डिजाइन करने और उसे निर्मित करने में सक्षम हैं.

18 फ्लोर ऊंचा, 20 विमान एक साथ आ सकते हैं

INS विक्रांत पोत 20,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित और अत्याधुनिक स्वचालित यंत्रों से लैस युद्धपोत है. यह 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है. इसका मतलब है कि इसका फ्लाइट डेक दो फुटबाल फील्ड से भी बड़ा है. इस पोत का वजन 45,000 टन है. इसकी अधिकतम गति 28 नॉट है.

18 फ्लोर की ऊंचाई वाले विक्रांत में करीब 2,400 कंपार्टमेंट हैं, जो इसके चालक दल के करीब 1,600 सदस्यों के लिए हैं जिनमें महिला अधिकारी और नाविक भी शामिल हैं. पोत पर तीन रसोई होंगी जो इसके चालक दल के 1,600 सदस्यों के भोजन की जरूरतों को पूरा करेंगी. इसकी एक ऐसी इकाई भी है जो प्रति घंटे 3,000 रोटियां बनाती है. एविएशन हैंगर दो ओलंपिक आकार के पूल जितना बड़ा है जिसमें लगभग 20 विमान आ सकते हैं.

इसके मेडिकल कॉम्प्लेक्स में मॉड्यूलर इमरजेंसी ऑपरेशन थिएटर, फिजियोथेरेपी क्लिनिक, इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU), पैथोलॉजी सेट अप, सीटी स्कैनर के साथ रेडियोलॉजी विंग और एक्स-रे मशीन, एक डेंटल कॉम्प्लेक्स, आइसोलेशन वार्ड और टेलीमेडिसिन सुविधाओं के साथ 16 बेड का अस्पताल है.

इस पोत का डिजाइन नौसेना के वारशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है और इसका निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है. इसे यहां कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड में रखा गया है, जहां इसे निर्मित किया गया है. विक्रांत ने पिछले साल 21 अगस्त से अब तक समुद्र में परीक्षण के कई चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है.

INS विक्रांत (R11) को श्रद्धांजलि

आईएनएस विक्रांत का नाम नौसेना के एक पूर्व जहाज ‘आईएनएस विक्रांत (R11)’ के नाम पर रखा गया है, जिसने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभायी थी. आईएनएस विक्रांत (R11) को साल 1957 में ब्रिटेन से खरीदा था. उस INS विक्रांत को साल 1961 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था. नए आईएनएस विक्रांत की तुलना में पुराने की क्षमता आधी थी. वहीं, नए आईएनएस विक्रांत के 260 मीटर की तुलना में 210 मीटर का था.

R11 ने 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसमें पूर्वी पाकिस्तान का समुद्री रास्ता बंद कर दिया था. इसे 36 सालों की सेवा के बाद 1997 में नौसेना के बेड़े से रिटायर कर दिया गया था. इसके बाद इसे 15 सालों तक म्यूजियम शिप के रूप में रखा गया और फिर 2012 में इस तोड़ने के लिए बेच दिया गया.

स्वदेशी डिजाइन और निर्माण

एक स्वदेशी विमानवाहक बनाने का विचार 1990 के दशक में शुरू हो गया जब R11 को नौसेना के बेड़े से रिटायर करने की योजना शुरू हो गई थी. R11 के रिटायर होने के बाद भारत आईएनएस विराट (INS Viraat) पर निर्भर हो गया जो कि पिछले 10 सालों से भारतीय नौसेना में सेवारत है. इससे पहले 25 सालों तक यह ब्रिटेन की रॉयल नेवी में HMS हर्म्स के रूप में सेवारत था.

इस बीच, जनवरी, 2003 में स्वदेशी विमानवाहक पोत-1 (IAC-1) की डिजाइन और कंस्ट्रक्शन को मंजूरी दी गई. इस विमानवाहक पोत को बनाने की जिम्मेदारी जहाजरानी मंत्रालय के तहत आने वाली सार्वजनिक क्षेत्र जहाज बनाने वाली कंपनी कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) को सौंपी गई. सीएसएल के लिए यह पहला युद्धक पोत बनाने का प्रोजेक्ट था.

SAIL के 30000 टन स्टील से बना

देश की सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न स्टील उत्पादक कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) ने देश के पहले स्वदेशी रूप से निर्मित एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत के लिए सारी डीएमआर ग्रेड स्पेशियलिटी स्टील की आपूर्ति की है.

कंपनी ने इस बड़ी उपलब्धि को हासिल करने के साथ “आत्मनिर्भर भारत” के निर्माण की दिशा में भागीदारी निभाते हुए, भारतीय नौसेना के इस पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण के लिए करीब 30000 टन डीएमआर ग्रेड स्पेशियलिटी स्टील की आपूर्ति की है.

इस स्वदेशी परियोजना के लिए सेल द्वारा आपूर्ति किए गए स्टील में विशेष डीएमआर ग्रेड प्लेट्स शामिल हैं. इन डीएमआर ग्रेड प्लेट्स को सेल ने भारतीय नौसेना और डीएमआरएल के सहयोग से विकसित किया है. इस युद्धपोत के पतवार और पोत के अंदरूनी हिस्सों के लिए ग्रेड 249 ए और उड़ान डेक के लिए ग्रेड 249 बी की डीएमआर प्लेटों का उपयोग किया गया.

इस युद्धपोत के लिए बल्ब बार को छोड़कर, स्पेशियलिटी स्टील की पूरी आपूर्ति कंपनी के एकीकृत इस्पात संयंत्रों - भिलाई, बोकारो और राउरकेला द्वारा की गई है. आईएनएस विक्रांत के निर्माण में उपयोग किया गया यह विशेष ग्रेड स्टील - डीएमआर प्लेट आयात में कमी लाने में मददगार है.

कितना स्वदेशी है INS Vikrant

INS विक्रांत को मेक इन इंडिया के तहत बनाया गया है और यह स्वदेशी बताया जा रहा है. हालांकि, यह 76 फीसदी ही स्वदेशी है. इस विमानवाहक पोत में 24 फीसदी पुर्जे विदेशों से खरीदकर लगाए गए हैं. इनमें कई रडार, वेपन सिस्टम और दूसरे उपकरण शामिल हैं.

आईएनएस विक्रांत के लिए कई वेपन सिस्टम और उपकरणों का निर्माण भारत की डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन ने खुद किया है. इसमें डीआरडीओ का साथ नेवल डिजाइन ब्यूरो (NDB), भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BEL), भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL), प्राइवेट कंपनियां जैसे- किर्लोस्कर, एलएंडटी, केल्ट्रॉन, जीआरएसई और वार्टसिला इंडिया ने भी अहम योगदान दिया है.


Edited by Vishal Jaiswal