कुशीनगर में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए बाधाओं से लड़ रहा है यह निडर गर्ल गैंग
आलोचना पर ध्यान न देते हुए पिंकी, रिंकू, निशा और पुनीता उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने का काम कर रही हैं। उन्होंने स्कूल नामांकन अभियान और स्वयं सहायता समूह शुरू किए हैं, और अधिकारों और आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता पैदा कर रही हैं।
बीस वर्षीय पिंकी अपनी पढ़ाई और घर के कामों को निपटा चुकी थीं कि किसी ने अचानक जोर से उनके घर का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा कि कुछ ग्रामीण खड़े थे। उन लोगों ने पिंकी को बताया कि पास में एक बाल विवाह हो रहा है।
बिना समय गंवाए, पिंकी अपनी बहनों निशा और रिंकू सहित अपने दल के साथ 'घटनास्थल' पर पहुंच गईं, और वही किया जो ग्रामीण इलाकों की ज्यादातर महिलाएं करने की हिम्मत नहीं करती थीं- आवाज उठाने की।
फिल्मों के विपरीत, हमारे समाज में अनादि काल से प्रचलित अनुचित प्रथाओं को रोकने के लिए साहस से थोड़ा अधिक करने की आवश्यकता होती है। अधिकांश लोगों ने लड़कियों के उग्र हस्तक्षेप को अच्छी तरह से नहीं लिया; उन्हें फटकार लगाई गई, इसके बाद उन्हें डराया और धमकाया गया।
बाल विवाह के दुष्परिणाम बताते हुए लड़कियों ने पहले छोटा रास्ता अपनाया। लेकिन, जब वह आगे बढ़ने में विफल रहीं, तो पिंकी ने सबूत के लिए तस्वीरें लीं, सरपंच और वरिष्ठ सदस्यों से समर्थन लिया और 100 डायल किया।
और इस तरह से दो लोगों की (शायद और भी) जान बच गई।
यह कहानी पिंकी जैसी लड़कियों को दुनिया के सामने लाने और उन्हें सेलिब्रेट करने का एक प्रयास है, जिनके पास खोने के लिए सब कुछ है, लेकिन फिर भी साहस दिखाती हैं, अपने और अन्य लड़कियों के लिए बेहतर जीवन जीने की कोशिश करती हैं, और निस्वार्थ रूप से अपने आसपास के लोगों की मदद करती हैं।
YourStory ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले की चार बहादुर लड़कियों - पिंकी, रिंकू, निशा और पुनीता के साथ बातचीत की, ताकि इन निडर लड़कियों की कहानियों को दुनिया के सामने लाया जा सके, और उम्मीद है कि वे अधिक लोगों को प्रेरित करेंगी।
पुनीता कहती हैं, “जो लोग पहले हमें धमकाते थे, वे अब हमसे डरते हैं क्योंकि हमने झुकने से इनकार कर दिया था। लगभग सभी ने शुरू में हमें और हमारे परिवारों को धमकाने की कोशिश की; उन्होंने हमारे चरित्र पर उंगली उठाई और हमें पहचानने से इनकार कर दिया। लेकिन हम सब इस मानसिकता से लड़ने के लिए एक साथ आए। अब, वे स्कूल में नामांकन से लेकर नागरिक मुद्दों तक, हमारे पास गांव में काम करने के लिए आते हैं।”
पुनीता कहती हैं कि "अब बिलकुल डर नहीं लगता।"
21 वर्षीय पुनीता एक स्थानीय कॉलेज से आर्ट (बीए) में स्नातक की पढ़ाई कर रही है, और कुशीनगर जिले के शाहपुर खालवा पट्टी गांव में रहती हैं।
छोटी सी शुरुआत
लिंग असमानता में निहित एक प्रथा यानी बाल विवाह से लड़ना, इस लड़की गिरोह के लिए रोजमर्रा का काम है। इस गैंग ने 10-11 साल की उम्र में ही एक संगठन (स्वयं सहायता समूह) ज्वाइन किया था।
पुनीता रानी लक्ष्मी बाई किशोरी संगठन नामक एक युवा महिला समूह का हिस्सा हैं, जबकि बहन तिकड़ी रमाबाई किशोरी संगठन की सदस्य हैं।
गांवों में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) महिलाओं द्वारा संचालित समूह हैं जो आपस में बचत का एक छोटा सा पूल बनाकर एक-दूसरे की मदद करते हैं। इस धन का इस्तेमाल समूह के एक या अधिक सदस्य कुछ व्यवसाय स्थापित करने के लिए कर सकते हैं। वे एक दूसरे को सशक्त बनाते हैं और स्थानीय महिलाओं के स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा आदि में सुधार के उपाय करते हैं।
एक स्थानीय कॉलेज से बीए कर रही है, और मिश्रोली गांव में रहने वाली पिंकी कहती हैं, "यहां लड़कियों के लिए एक ही विकल्प है कि कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाए। यह कई लोगों के लिए पूरे दिन खेतों में काम नहीं करने का एक बच निकलने का रास्ता है। इसे बदलने की जरूरत है, और शिक्षा के साथ-साथ साहस ही एकमात्र रास्ता है।”
अन्य महिलाओं को सशक्त बनाना
पिछले 10 वर्षों से, लड़कियों ने खुद से सीखा है और इन समूहों के माध्यम से सिलाई, किचन गार्डनिंग, कम्पोस्ट बनाने जैसी विभिन्न गतिविधियों में प्रशिक्षिण लिया। वे अब अपने कॉलेज के बाद सिलाई की कक्षाएं लेती हैं, और स्थानीय महिलाओं को अपना किचन गार्डन विकसित करने में मदद करती हैं।
पिंकी कहती हैं, “यह अब आस-पास के गांवों में महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। हमारा उद्देश्य उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। हमारे गांव की कुछ महिलाएं स्थानीय स्तर पर सब्जियां बेच रही हैं, सिलाई कर रही हैं, शिल्प आदि सिखा रही हैं।”
21 साल की निशा को लगता है कि महिलाएं बेहतर फाइनेंशियल प्लानर होती हैं।
वे कहती हैं, "कई पुरुष शराब की लत से पीड़ित हैं और उनके इससे परिवारों पर एक भयानक प्रभाव पड़ता है। स्वयं को सशक्त बनाना, एक होना और शिक्षा के मूल्य को सीखना ही हमारे बचने का एकमात्र रास्ता है। हमें कार्यभार संभालने और पुरुषों को जिम्मेदारी सिखाने की जरूरत है।” निशा पुनीता के साथ शाहपुर खालवा पट्टी गांव में रहती है, और बीए के दूसरे वर्ष की छात्रा हैं।
समूह अपने गांवों में विभिन्न गतिविधियों को हैंडल करता है, जिसमें बुनियादी नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता की जांच, मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता के बारे में चिंताएं या विभिन्न कार्यक्रमों के तहत सब्सिडी की उपलब्धता में देरी, वृक्षारोपण और स्वच्छता अभियान, और महिलाओं की स्वच्छता और सामाजिक मुद्दों पर छोटे सेमिनार आयोजित करना।
वे स्कूल छोड़ने वालों को उनके पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बिठाने के लिए फ्री ट्यूशन भी देते हैं, और मासिक धर्म स्वच्छता के आर्थिक बोझ को कम करने और सुरक्षा और स्वच्छता में सुधार के लिए गांव की लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन बनाते हैं।
स्कूल नामांकन अभियान
ग्रामीण भारत में स्कूल छोड़ना आम बात है और कोरोना महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया है। गाँव की अधिकांश लड़कियों ने घर के कामों और भाई-बहनों की देखभाल को प्राथमिकता बताते हुए स्कूल छोड़ दिया।
लड़कियों ने माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए मनाने के वास्ते घर-घर जाकर अपने समूह की मदद से स्कूल नामांकन अभियान शुरू करने का फैसला किया। वे कुछ महीनों की अवधि में लगभग 80-50 बच्चों का नामांकन कराने में सफल रहीं, और सक्रिय रूप से ऐसा करना जारी रखा।
लड़कियों ने स्थानीय जनमत नेताओं के समर्थन में रैली की और अपने गांवों में शिक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया।
कक्षा 12 की छात्रा 17 वर्षीय रिंकू कहती हैं, “हम बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराते हैं और ड्रॉपआउट्स को मदद करते हैं। यदि उन्हें एडमिशन संबंधी किसी भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो हम इसे हल करने के लिए उनके माता-पिता और शिक्षकों से बात करते हैं। यह स्कूल चलो अभियान के माध्यम से भी किया जाता है।”
इस अभियान ने 10 गांवों के 1,500 परिवारों को संवेदनशील बनाया है और 166 बच्चों के स्कूल में नामांकन में योगदान दिया है।
2020 में, डिजिटल मीडिया प्रोडक्शन हाउस, पीपल पावर्ड डिजिटल नैरेटिव्स द्वारा समूह से संपर्क किया गया, और उनके सोशल मीडिया समुदाय, हरअक्षर का हिस्सा बन गया।
संगठन हाशिए की पृष्ठभूमि की युवा लड़कियों के साथ काम करता है और उन्हें मोबाइल वीडियो के माध्यम से कहानी सुनाने का प्रशिक्षण देता है।
प्लूक.टीवी के संस्थापक और सीईओ तमसील हुसैन कहते हैं, “लड़कियों की कहानियां पहले उनके गाँवों, मिश्रोली और शाहपुर खालवा पट्टी तक ही सीमित थीं। कहानी सुनाने के माध्यम से, वे देश के विभिन्न हिस्सों में अधिक लड़कियों और उनके जैसे युवाओं को शिक्षा और समानता को अलग तरह से देखने के लिए प्रेरित करने में सक्षम हैं।”
लड़कियों के काम को 2021 में एक डॉक्यूमेंट्री, 'गर्ल्स ऑन ए मिशन' के रूप में लॉन्च किया गया था। वे इस तरह के वीडियो और भी बना रही हैं, जो कई लोगों के लिए प्रेरणा का काम करते हैं।
वे कहते हैं, “हम बड़े शहरों में रहने का लक्ष्य नहीं रखते हैं। हमारा उद्देश्य लड़कियों को शिक्षित करने, आत्मनिर्भर बनने, उनके अधिकारों के लिए बोलने, आय का एक स्रोत होने, निडर होने और सम्मान के साथ व्यवहार करने के लिए सशक्त बनाना है।”
Edited by रविकांत पारीक