जब देहाड़ी मजदूर बन गया किसान, फिर पसीने की सिंचाई और लगन की खाद से खड़ी कर दी मुनाफे की खेती
रूपाली और उनके पति सूर्य मंडी ने काम छूट जाने के बाद खेती में अपने हाथ आजमाएं और अपनी कड़ी मेहनत और परिश्रम के दम पर आज हजारों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं।
‘मेहनत उसकी लाठी है, मजबूत जिसकी काठी है, खून जलाकर जो रोटी कमाता है, मिट्टी को वह सोना बनाता है हर बाधा को करता दूर है, दुनियां उसको कहती मजदूर है।’ कोरोना महामारी के कारण देश के सभी राज्यों में लगे लॉकडाउन ने दुनियाभर के मजदूरों की कमर तोड़कर रख दी थी जिसके बाद हजारों प्रवासी मजदूरों को अपने घर-गांव वापसी करनी पड़ गई थी। उन्हीं मे से एक हैं रूपाली और उनके पति सूर्य मंडी। इस दंपति ने काम छूट जाने के बाद खेती में अपने हाथ आजमाएं और अपनी कड़ी मेहनत और परिश्रम के दम पर आज हजारों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं।
मजदूरी करके चलाते थे घर
झारखंड राज्य के रहने वाले ये दंपति कड़ी मेहनत करके अपना जीवनयापन करते थे। जहां एक ओर रूपाली दिन में आठ से दस घंटे ईट भट्टे में काम करती थीं। वहीं, उनके पति घर से करीब 2 हजार किमी दूर कर्नाटक के बेंगलुरू में मजदूरी का काम करते थे और बच्चों का पालन-पोषण करते थे। लेकिन, तभी पूरे देश में लॉकडाउन लग गया और काम-धंधा बंद हो जाने के कारण जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतरने लगी।
दो बीघा जमीन से की थी खेती की शुरुआत
कोरोना का प्रसार बढ़ते ही सूर्य मंडी भी अपने घर वापस आ गए। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा मोड साबित हुआ जहां से उन्हें कुछ नया करने की सीख मिली।
एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि, “लॉकडाउन मेरे लिए वरदान की तरह था, क्योंकि मैं गांव लौटा और धान के अलावा कई तरह की फसलों की खेती की।"
कैसे आया मिश्रित करने का विचार
इससे पहले सूर्य के गाँव के अधिकतर किसान अपने खेतों में पुराने ढर्रे में चलते हुए केवल धान आदि की पारंपरिक खेती किया करते थे। लेकिन, उन्होंने इस पैटर्न में बदलाव करते हुए कुछ नया करने की ठानी। इसके बाद उन्होंने खेत के एक बड़े हिस्से में दैनिक रूप से प्रयोग में आने वाली सब्जियों का उत्पादन शुरु कर दिया।
एक इंटरव्यू के दौरान सूर्य कहते हैं, “इन सब्जियों को बेचकर लॉकडाउन से पहले की कमाई का दोगुना कमाने में मदद मिलती है। दो साल से हम ब्रोकली, गोभी, मटर, करेला, कद्दू, तरबूज और दूसरी मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं। अब हम अपने खेत के कुछ हिस्से में ही धान की खेती करते हैं जो परिवार के एक साल के लिए चावल की जरूरत को पूरा करता है।”
Edited by Ranjana Tripathi