बीते 29 सालों से डिस्लेक्सिया वाले बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाने में मदद करती हैं डॉ भुवना वासुदेवन
डॉ भुवना उन बच्चों की जिंदगी में प्रकाश भरने का काम कर रही हैं, जिन्हें उनके मां-पिता ने भी भाग्य के सहारे छोड़ दिया है। वह डिस्लेक्सिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हजारों बच्चों को ब्रिज लार्निंग से पढ़ाती हैं।
ज्ञान एक ऐसा चिराग होता है जो इंसान को दुनिया देखने का नजरिया देता है और ऐसे हजारों चिराग जलाने का काम कर रही हैं पुडुचेरी की डॉ. भुवना वासुदेवन। डॉ भुवना उन बच्चों की जिंदगी में प्रकाश भरने का काम कर रही हैं, जिन्हें उनके मां-पिता ने भी भाग्य के सहारे छोड़ दिया है। वह डिस्लेक्सिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हजारों बच्चों को ब्रिज लार्निंग से पढ़ाती हैं।
अक्सर ऐसा होता है कि स्कूल के किसी टीचर ने हमें कोई विषय इस तरह पढ़ा दिया होता है कि बड़े होते-होते वही सब्जेक्ट हमारा पसंदीदा बन जाता है और हम उसी में अपनी आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं। इस महिला टीचर के पास भी कुछ ऐसी ही पढ़ाने की कला है जो दिव्यांग बच्चों को भी इतनी गहराई से समझ आता है जिसे भुला पाना मुश्किल होता है।
डॉ भुवना अब तक ऐसे ही करीब पांच से छ: लाख मानसिक विकार वाले बच्चों को शिक्षित कर चुकी हैं। इनमें से कई छात्र आज डाक्टर और इंजीनियर बन चुके हैं जो आज अपने करियर का पूरा श्रेय उन्हें ही देते हैं। उनका मानना है कि आज वे जो कुछ भी हैं यह सब डॉ भुवाना मैम के समर्पण और अतिरिक्त प्रयासों की ही देन है।
कई वर्षों से लगातार जारी है उनका यह प्रयास
डॉ भुवाना वासुदेवन साल 1993 से लगातार इस काम में लगाी हुई हैं। वह शिक्षक के साथ-साथ मनोचिकित्सक भी हैं।
अपने एक साक्षात्कार में वह बताती हैं,“स्कूल में शिक्षक होने के अलावा मैं घर पर बच्चों के लिए निजी ट्यूशन लेती थी। ऐसी कक्षाओं के दौरान मैंने गौर किया कि कई बार छात्र पढ़ाई गई चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझ नहीं पाते थे या किसी विशेष सबजेक्ट को समझने में उन्हें अक्सर परेशानी महसूस होती थी। कभी-कभी उन्होंने अपना सिर तो हिलाया होता था लेकिन वे विषय को समझ या आत्मसार नहीं कर पाए होते थे। यह उनके पढ़ने, लिखने और सीखने की क्षमताओं से स्पष्ट था।”
साथ ही वह कहती हैं, "मुझे महसूस हुआ कि अभी उनकी शब्दावली, लेखन शैली और याद करने रखने की क्षमता में सुधार लाने की जरूरत है। फिर इसके लिए क्यों न मुझे कुछ घंटे अतिरिक्त काम करना पड़े। मैंने ऐसे छात्रों की पहचाना शुरू किया। उस वक्त इंटरनेट और यूट्यूब जैसे साधनों की इतनी सुलभता भी नहीं हुआ करती थी, जिससे स्टूडेंट्स को आसानी से पढ़ाया जा सके। इसके लिए मुझे पूरी तरह से किताबों पर ही निर्भर रहना होता था।"
रिसर्च कर बदला पढ़ाने का तरीका
डॉ भुवना ने मानसिक रूप से कमजोर छात्रों को खोज कर उन पर रिसर्च करनी शुरू की। इसके लिए उन्होंने कक्षा 7 में पढ़ने वाले करीब 15 से 20 स्टूडेंट्स की केस स्टडी तैयार की। फ़ाइलें बनाई और बच्चों के आंकड़े दर्ज करने शुरू किए। इससे उन्हें पता चल कि इन छात्रों का प्रदर्शन आम बच्चों के मुकाबले कम था जिस कारण उन्हें अपनी पारंपरिक शिक्षण पद्धति में बदलाव करना पड़ा।
किस वर्ष हुई विद्यालय की शुरुआत
वर्ष 1998 में डॉ भुवना ने डिस्लेक्सिया, एडीएचडी जैसे अन्य डेवलपमेंट व अन्य विकारों से ग्रसित बच्चों के लिए ब्रिज लर्निंग विद्यालय की शुरुआत की।
वह कहती हैं, "हमारा स्कूल उन छात्रों को भी स्वीकार करता है जिनमें व्यावहारिक कमी होती है, बचपन के आघात और धीमी गति से सीखने और डेवलपमेंट डिसऑर्डर जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हो। इसके अलावा हमारे स्कूल में पुलिस विभाग द्वारा भी कुछ छात्रों को भेजा जाता है जो बालश्रम के चलते उनकी निगरानी में हैं।”
वह कहती हैं, हमने ऐसे छात्रों के लिए नई पैडोगॉगी ईजाद की। ताकि ऐसे स्टूडेंट्स को भी आसानी से पढ़ाया जा सके। इसके लिए हम नए टीचर्स भी तैयार करते हैं।
करीब 25 वर्षों से इस विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। इस स्कूल से निकले कई छात्र -छात्राएं प्रतिष्ठित कंपनियों में काम कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ स्टूडेंट्स डॉक्टर और इंजीनियर भी हैं। डॉ भुवना की इस पहल से अब तक लगभग 6000 से भी अधिक बच्चों को शिक्षित किया जा चुका है।
Edited by Ranjana Tripathi