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[इंटरव्यू] हमें मुंबई के तटीय इकोसिस्टम को लेकर अधिक चर्चा करने की जरूरत क्यों है

मुंबई को बेहतर बनाने के लिए दिलचस्प इनोवेशंस के पीछे के लोग अपने विजन को साझा करने के लिए एक साथ आए. आप भी पढ़िए इस इंटरव्यू के संपादित अंश...

[इंटरव्यू] हमें मुंबई के तटीय इकोसिस्टम को लेकर अधिक चर्चा करने की जरूरत क्यों है

Sunday September 04, 2022 , 10 min Read

वर्सोवा क्रीक (मढ़ कोलीवाड़ा, वर्सोवा कोलीवाड़ा, धारावली गांव) के किनारों पर रहने वाले कोली (मछुआरे) और वारली (जनजाति/ आदिवासी) समुदाय का मुंबई और इसके तटों के साथ अनूठा रिश्ता है. इस स्थानीय संस्कृति और शहर, जो पीढ़ियों से इन स्वदेशी समुदायों का घर है, के अनूठे ताने-बाने को सेलिब्रेट करने के लिए, 'संवाद खदीचा' (या 'खाड़ी की बातचीत') नामक एक विशेष चार दिवसीय प्रदर्शनी और फेस्टिवल में उनकी संस्कृति, इतिहास और शहर की खाड़ियों को बचाने की जरूरत पर प्रकाश डाला गया.

इस कार्यक्रम का आयोजन एक इनोवेटिव और एक्सपेरिमेंटल अर्बन सॉल्यूशंस थिंक टैंक बॉम्बे61 स्टूडियो (बी61), और मुंबईकर यूथ की रचनात्मक और सामाजिक शक्ति को रिप्रेजेंट करने वाले एक कलेक्टिव, मिनिस्ट्री ऑफ मुंबईज मैजिक (एमएमएम) ने रिसर्च एंटिटी टेपेस्ट्री प्रोजेक्ट के सहयोग से किया. इवेंट में कोली और वारली समुदायों और मुंबई के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के बीच के संबंधों को सेलिब्रेट किया गया. शहर के बीचों-बीच आयोजित होने वाले इस फेस्टिवल में पारंपरिक तरीके से मछली पकड़ने के अतीत, वर्तमान और भविष्य को प्रतिबिंबित करने के लिए खाड़ियों पर आश्रित समुदायों के हालात से जुड़ी अनेक तरह की तस्वीरें, पारंपरिक आर्टवर्क, स्टोरीटेलिंग, आर्ट वर्कशॉप्स, साझा भोजन और साइक्लिंग टूर्स प्रदर्शित की गईं.

इसके केंद्र में एक कम्युनिटी-लेड इंस्टालेशन, 'न्यू कैच इन टाउन' था जो क्रीक इकोसिस्टम को रिस्टोर करने के लिए कोली समुदाय के पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करता है जिससे कि मुंबई अपने अतिप्रभावित समुदायों के लिए सस्टेनेबल और रहने योग्य बन सके. यह स्वदेशी आविष्कार खाड़ियों में फेंके गए ठोस कचरे को फँसाता है. खाड़ियां तटीय क्षेत्रों में समृद्ध समुद्री पारिस्थितिकी के लिए एक आवश्यक स्रोत हैं. 'न्यू कैच इन टाउन' को मछली पकड़ने वाले समुदाय के पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके डिजाइन किया गया है. केवल तीन दिनों में, सरल इनोवेशन की मदद से केवल एक क्रीक आउटलेट (काव्टया खाड़ी) से 500 किलोग्राम ठोस कचरे को साफ करने में कामयाबी मिली और एक महीने में लगभग 5000 किलोग्राम कचरे के प्रदूषित आउटलेट से छुटकारा पाया जा सकता है.

मुंबई को बेहतर बनाने के लिए इन दिलचस्प इनोवेशंस के पीछे के लोग अपने विजन को साझा करने के लिए एक साथ आए -

पहले पढ़िए मिनिस्ट्री ऑफ मुंबईज मैजिक (MMM) की हरप्रीत भुल्लर से हुई YourStory हिंदी की बातचीत के अंश:

हरप्रीत भुल्लर, मिनिस्ट्री ऑफ मुंबई मैजिक

हरप्रीत भुल्लर, मिनिस्ट्री ऑफ मुंबई मैजिक

YourStory हिंदी [YSH]: कोली समुदाय को मदद पहुंचाने में MMM की क्या भूमिका है?

हरप्रीत भुल्लर [HB]: रचनात्मक, कलात्मक और सहभागी दृष्टिकोणों के माध्यम से तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में कोली समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एमएमएम नए रास्ते तैयार कर रहा है. पिछले साल, पार्टिसिपेटरी प्लेसमेकिंग एक्टिविटीज, सांस्कृतिक गतिविधियों और इस समुदाय के बारे में ऐतिहासिक और सामाजिक आख्यानों पर एक डिजिटल प्रदर्शनी के जरिए कोलियों के बारे में मुंबई वासियों की व्यापक धारणा में बदलाव लाना तय किया गया था. इस साल, कम्युनिटी-लेड सॉल्यूशन पर उनके साथ काम करके हम समुदाय के साथ अपने जुड़ाव को उच्च स्तर पर ले गए हैं. समुदाय आधारित सांस्कृतिक उत्सव, फोटो प्रदर्शनी, पारंपरिक भोजन और कला जैसे सांस्कृतिक इमर्सन एक्टिविटीज के जरिए हम जलवायु नीति पहल और एक्शन में स्वदेशी समुदायों की इक्विटी और उनको शामिल करने की आवश्यकता को हाइलाइट करने के लिए युवाओं की रचनात्मक शक्ति को जगाते हैं. हम शहर के युवाओं को तटीय स्वदेशी समुदायों का मददगार बनने के लिए सशक्त बनाने का भी प्रयास कर रहे हैं ताकि नीति-बनाने वालों के लिए उनके विषयों को प्राथमिकता दी जा सके.

YSH: इस प्रदर्शनी की खास हाइलाइट्स क्या थीं?

HB: प्रदर्शनी चार विषयों के इर्द-गिर्द केंद्रित है - खाड़ी को लेकर समकालीन कहानियां, तटीय समुदायों की ऐतिहासिक भूमिका और आर्काइवल फोटोग्राफ्स के माध्यम से तटीय पर्यावरण और तीन गांवों से फोटो कहानियां, खाड़ी का क्षरण और न्यू कैच इन टाउन का स्वदेशी समाधान. प्रदर्शनी में समुदाय द्वारा ली गई तस्वीरों, वारली आर्ट का ट्राइबल आर्टवर्क, कोली समुदाय की कलाकृति, बिगड़ता क्रीक पर्यावरण के तकनीकी विश्लेषण को दर्शाने वाले अर्बन डिजाइन वर्क, समुद्र तट को बदलने और न्यू कैच इन टाउन के इंस्टॉलेशन के एक वास्तुशिल्प मॉडल के जरिए इन महत्वपूर्ण नरेटिव्स को दर्शाया गया है.

YSH: इसको लेकर औसत मुंबईकर की क्या प्रतिक्रिया थी?

HB: प्रतिक्रिया अब तक बहुत अच्छी रही है. शहर की खाड़ियों से ठोस कचरा इकट्ठा करने और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए एक कम्युनिटी-लेड सॉल्यूशन, न्यू कैच इन टाउन के लिए हमें फेस्टिवल ऑडियंस का पूरा सपोर्ट है. हमें वर्सोवा, मड के आस-पास के लोग, क्रिएटिव इंडस्ट्री के यंग प्रोफेशनल्स और सस्टेनेबल और जलवायु से जुड़े विषयों पर काम करने वाले लोग मिले हैं. स्थानीय समुदाय के सदस्य और समुदाय आधारित संगठनों के प्रतिनिधि इस सॉल्यूशन को डिसीजन-मेकर्स तक ले जाने के इच्छुक हैं.

YSH: इस प्रोजेक्ट का विचार कैसे आया या इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए किस बात ने ट्रिगर किया?

HB: हम अपने स्ट्रेटजिक पार्टनर, बॉम्बे 61 के माध्यम से कोली समुदाय के साथ दो साल से अधिक समय से काम कर रहे हैं. उनके बारे में व्यापक धारणाओं को बदलने के लिए हमने समुदाय की पारंपरिक भूमिका को लेकर जागरूकता पैदा करते हुए शुरुआत की. इस साल हम शहर की सस्टेनेबिलिटी और क्लाइमेट चेंज एडाप्टेशन के सॉल्यूशंस तैयार करने में उनकी अपार क्षमता के बारे में बात करते हुए प्रभावित समुदायों की भागीदारी की आवश्यकता को हाइलाइट करना चाहते थे.

इसी विषय और प्रदर्शनी के बारे में YourStory हिंदी ने बॉम्बे61 की को-फाउंडर केतकी भड़गांवकर से भी बात की. पढ़िए उनके साथ हुई बातचीत के अंश:

केतकी भड़गांवकर, बॉम्बे61 की को-फाउंडर

केतकी भड़गांवकर, बॉम्बे61 की को-फाउंडर

YSH: इस प्रदर्शनी के लिए आपने खाड़ियों के संरक्षण का विषय चुना, क्यों ?

केतकी भड़गांवकर [KB]: जब आप समुद्र तटों पर बहुत सारा कचरा जमा होते देखते हैं तो हम देखते हैं कि समुद्र और महासागरों या समुद्र तटों को लेकर बहुत बातचीत हो रही है. साथ ही समुद्र तटों पर बहुत से सफाई अभियान चलाए जाते हैं. लेकिन हमारे क्रीक इकोसिस्टम के बारे में बहुत कम बात हुई है. और यह तब हुआ जब 2005 में आई बाढ़ के कारण मीठी नदी की ओर ध्यान ले जाया गया. इसलिए वास्तविकता यह है कि हमारी खाड़ियाँ और नदियाँ कचरे से पट गई हैं. और यह वह कचरा है जो अंततः समुद्र में बह जाता है जो समुद्र तटों पर आज हम देखते हैं. हमने सोचा कि क्रीक इकोसिस्टम के बारे में भी बात करना शुरू करना जरूरी है. प्रदर्शनी का फोकस सिर्फ खाड़ी ही नहीं था, बल्कि यह उन स्वदेशी समुदायों के बारे में भी बात कर रहा था जो इन खाड़ियों पर रह रहे हैं और पीढ़ियों से वे उन पर निर्भर हैं.

उदाहरण के लिए, वर्सोवा कोलीवाड़ा के कोली क्रीक(खाड़ी) में मछली पकड़ते थे और उन्हें मछली पकड़ने के लिए कभी समुद्र में नहीं जाना पड़ता था. इन खाड़ियों में इतनी प्रचुर मात्रा में मछलियां थीं कि वे न सिर्फ खुद के गुजर-बसर के लिए मछलियाँ पकड़ सकते थे, बल्कि उन्हें बाजार में बेच भी सकते थे. उस दौर में कोली समुदाय बहुत फल-फूल रहा था. लेकिन समय के साथ, मछलियों की उपलब्धता में इस स्तर पर गिरावट हुई है कि अब उन्हें मछली पकड़ने के लिए गहरे समुद्र में जाना पड़ता है. जो सस्टेनेबल नहीं है, और मछली की उपलब्धता में गिरावट या समुद्री पारिस्थितिकी के विनाश का मुद्दा कुछ ऐसा है जो अभी भी कायम है और इस तरफ ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है. इस तरह हमने सोचा कि क्रीक इकोसिस्टम्स के बारे में बातचीत शुरू करना महत्वपूर्ण है.

YSH: खाड़ी के मैंग्रोव को बचाने में कोली समुदाय किस तरह मददगार रहा है?

KB: हम जिस हस्तक्षेप के बारे में बात कर रहे हैं उसको यह समुदाय लीड कर रहा है. यह बहुत सी पार्टिसिपेटरी प्लानिंग प्रोसेसेज के माध्यम से शुरू किया गया था, जहाँ समुदाय के साथ बहुत सारी कार्यशालाएँ और बैठकें आयोजित की गईं ताकि यह समझा जा सके कि हम इस घटते पारिस्थितिकी तंत्र से कैसे निपट सकते हैं. हम हमेशा सुनते हैं कि कोली मछली पकड़ने के लिए खाड़ी में जाते हैं तो मछलियों की तुलना में उनके जाल में अधिक प्लास्टिक फंसता है. इसलिए हमने इस बारे में कोलियों से बातचीत की कि इस मामले में क्या किया जा सकता है.

और नेट फिल्टर्स लगाना हमारी एक मीटिंग के दौरान प्रस्तावित एक आइडिया था जिसको आगे बढ़ाया गया. यह समुदाय के स्वदेशी ज्ञान और पारंपरिक मछली पकड़ने की तकनीक पर आधारित है जिसका वे उपयोग करते थे. यह एक डोल नेट सिस्टम था, जिसे प्लास्टिक को पकड़ने के लिए नाले में स्थापित किया जाता है. इसकी मदद से खाड़ी में जमा प्लास्टिक को निकाला जाता है, और शेष ज्वार के प्रवाह के कारण स्थिर रहता है. उच्च और निम्न ज्वार कचरे को धकेलता और खींचता रहता है. निश्चित रूप से इस कचरे का कोई रास्ता नहीं है और अगर यह समुद्र में भी जा रहा है तो भी यह बहुत हानिकारक है.

अधिकांश प्लास्टिक मैंग्रोव में उलझ जाता है और बाहर निकलने का रास्ता नहीं खोज पाता. हमने सोचा कि न्यू कैच इन टाउन सिस्टम कुछ ऐसा है जो न सिर्फ पानी से कचरे को साफ करेगा, बल्कि भारी ज्वार के प्रवाह के साथ यह मैंग्रोव से कचरे को भी बाहर निकाल सकता है. यह कचरा कहीं न कहीं मैंग्रोव के विकास और मछली के प्रजनन को भी प्रभावित कर रहा है जो कि मैंग्रोव की जड़ों में होता है. मैंग्रोव मछलियों के लिए सबसे अच्छा प्रजनन स्थल हैं, जहां वे अपने अंडे देती हैं. और क्योंकि यह बहुत खराब हो गया है और हालत इतनी खराब है, मछलियाँ यहां नहीं आतीं और अपने अंडे नहीं देती हैं. इसलिए सिस्टम की सफाई से निश्चित रूप से समुद्री पारिस्थितिकी और क्रीक के मैंग्रोव जंगलों को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी.

YSH: इस संबंध में दूसरे शहर कैसा कर रहे हैं?

KB: इसको लेकर हम श्योर नहीं हैं कि अन्य शहर इससे कैसे निपट रहे हैं. लेकिन हर तटीय शहर को इन परेशानियों का सामना करना पड़ता है. और हम मानते हैं कि मुंबई में कचरे का परिमाण हमारे देश के किसी भी अन्य शहर की तुलना में बहुत अधिक है. इसलिए, अगर हम यहां न्यू कैच इन टाउन सॉल्यूशन इंस्टॉल कर सके और अगर इसे हमारे पायलट एक्सपेरिमेंट में सफलता मिली, तो इसे किसी भी तटीय शहर में कहीं भी लागू किया जा सकता है क्योंकि यह एक बेहद सिंपल डिजाइन है. यह मॉड्यूलर भी है, इसलिए जहां इसे इंस्टॉल करने की जरूरत है, वहां इसे स्थिति के आधार पर बढ़ाया या घटाया जा सकता है. और बहुत से अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं जो शहर में इसी तरह के इंस्टॉलेशन को इंस्टॉल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या होता है कि जैसा कि मैंने पहले बताया है, मुंबई शहर में कचरे की मात्रा बहुत अलग है और शायद अन्य शहरों की तुलना में बहुत बड़ी है.

इसलिए विभिन्न कंपनियों द्वारा बनाई गईं ये डिज़ाइंस, खाड़ियों में बहने वाले कचरे का भार उठाने में सक्षम नहीं हैं और वे इसे बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं. हमने खुद कुछ उदाहरण देखे हैं जहां डिजाइन असफल रहा और अंदर बह रहे प्लास्टिक के वजन को सहन नहीं कर पाया. इसलिए यह सिस्टम मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों पर आधारित है, और अधिक मजबूत है और यह आने वाले वजन के दबाव को सहन कर सकने के लिए पीढ़ीगत ज्ञान से आता है.

(Special Thanks: Upasana Verma)


Edited by रविकांत पारीक