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300 लोगों की जान लेने के बाद ईरान सरकार ने लगाया मोरैलिटी पुलिस पर प्रतिबंध

अहंकार और धार्मिक कट्टरता की गहरी नींद में सो रही ईरान सरकार को जगाने के लिए 300 लोगों को अपनी जान देनी पड़ी.

300 लोगों की जान लेने के बाद ईरान सरकार ने लगाया मोरैलिटी पुलिस पर प्रतिबंध

Monday December 05, 2022 , 5 min Read

ईरान में मोरैलिटी पुलिस को खत्म करने का फैसला लिया गया है. 16 सितंबर पुलिस की हिरासत में हुई 22 वर्षीय छात्रा महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में भारी विरोध हुआ, जिसमें करीब 300 लोगों की जान चली गई. हजारों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया.   

 

ईरान के प्रॉसिक्यूटर जनरल अटॉर्नी मोहम्मद जफर मोंताजेरी ने एक धार्मिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अब ईरान में मोरैलिटी पुलिस यानी धार्मिक पुलिस को भंग कर दिया गया है. मॉरैलिटी पुलिसिंग का ज्यूडिशियरी से कोई ताल्लुक नहीं है. इस कारण से हम इसे खत्म कर रहे हैं. जफर ईरान की राजधानी तेहरान में एक धार्मिक सभा को संबोधित कर रहे थे.

वर्ष 2006 में तत्‍कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अहमदीनेजाद ने इस मोरेलिटी पुलिसिंग की शुरुआत की थी, जिसे ईरान में ‘गश्त-ए-एरशाद’ कहा जाता है. जब हसन रूहानी देश के राष्‍ट्रपति थे, तब इन नियमों में महिलाओं को थोड़ी ढील दी गई थी. वो जींस पहन सकती थीं, हिजाब भी कई रंगों के हो सकते थे.

लेकिन जब जुलाई में इब्राहिम रईसी ईरान के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अयातोल्‍लाह खुमैनी के दौर वाले बेहद सख्‍त इस्‍लामिक नियमों को फिर से लागू कर दिया. ‘गश्त-ए-एरशाद’ भी पहले से कहीं ज्‍यादा सख्‍त और मुस्‍तैद हो गई. इस्‍लामिक नियमों का पालन न करने वाले लोगों को हिरासत तें लेने और सजा देने की संख्‍या रातोंरात कई गुना बढ़ गई.  

और इस सिलसिले में एक दिन एक 22 साल की लड़की महसा अमीनी की जान चली गई.

  

महसा अमीनी की मौत ने ईरान में उस चिंगारी का काम किया, जिसकी उस देश को जरूरत थी. पितृसत्‍ता, मर्दवाद, रूढि़वाद और पुरातनपंथी ख्‍यालों को जलाने के लिए. जिसके खिलाफ एक दबा- छिपा गुस्‍सा बहुत समय से था. जिसे बाहर आने की कीमत एक 22 साल की लड़की को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी.

मोरैलिटी पुलिस ने कैसे एक 22 साल की लड़की की जान ले ली 

तारीख थी 13 सितंबर, साल 2022. बस तीन महीने पुरानी बात है. ईरान के कुर्दिस्‍तान की रहने वाली महसा अमीनी अपने परिवार से मिलने तेहरान  आई थी. 13 तारीख की शाम वो अपने भाई के साथ बाहर घूमने लगी. उसने एक लंबा सा ओवरकोट पहन रखा था और सिर पर बेतरतीबी से एक दुपट्टा डाल रखा था. उसे हिजाब पहनने की आदत नहीं थी. पता था, इस देश में सार्वजनिक जगहों पर लड़कियों के लिए सिर ढंकने की अनिवार्यता है. जो उसने एक दुपट्टा सिर पर यूं ही डाल लिया.

घूमते हुए जैसे ही वो शहीद हेगानी रोड पर पहुंची तो कहीं से  ‘गश्त ए इरशाद’ के सिपाही पहुंच गए. ‘गश्त ए इरशाद’ ईरान की मॉरल पुलिस है, जिसका काम घूम-घूमकर सिर्फ ये चेक करना है कि लोग शरीया के नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं. कहीं कोई इस्‍लामिक कानून का उल्‍लंघन करता पकड़ा जाए तो उसे पकड़कर सजा देना  ‘गश्त ए इरशाद’ वालों का काम है.

तो बीच सड़क पर अचानक  ‘गश्त ए इरशाद’ ने महसा को पकड़ लिया और सिर करीने से न ढंकने के लिए उसके साथ अभद्रता की. उन्‍होंने उसे हिरासत में ले लिया. रास्‍ते में उसके साथ मारपीट की गई. उसके कपड़े खींचे, फाड़े. वो लोग महसा को डीटेंशन सेंटर में ले गए, जहां दोबारा उसके साथ हिंसा हुई. इस मारपीट के दौरान महसा के सिर में चोट लगी और उसे आंखों से दिखना बंद हो गया. कुछ घंटों बाद वो बेहोश हो गई. जब काफी देर तक उसे होश नहीं आया तो पुलिस उसे अस्‍पताल लेकर गई, जहां वो दो दिनों तक कोमा में पड़ी रही. फिर उसकी मौत हो गई.

महसा की मौत मानो जंगल की आग बन गई

महसा की मौत मानो जंगल में लगी एक चिंगारी हो, जो देखते ही देखते भयानक आग में तब्‍दील हो गई. ये आग सिर्फ तेहरान और ईरान के कुछ बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं रही. आग पूरे देश में फैल गई. लाखों की संख्‍या में हर गांव-शहर में लोग ईरान की इस्‍लामिक सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. भारी संख्‍या में विरोध प्रदर्शन हुए और इन प्रदर्शनों में औरत-मर्द सब शामिल थे.

लड़कियां सार्वजनिक तौर पर अपने हिजाब जला रही थीं, अपने बाल काट रही थीं. इस्‍लामिक रूढिवाद के खिलाफ, 1979 की इस्‍लामिक क्रांति के बाद औरतों पर बहुत सालों से और बहुत सिस्‍टमैटिक ढंग से थोपे गए क्रूर मर्दवादी नियमों के खिलाफ ये गुस्‍सा जाने कब से उनके दिलों में उबल रहा था. महसा की मौत ने उसे चिंगारी दे दी.

छोटे- मोटे प्रदर्शन तो पहले भी होते रहते थे. विरोध की आवाजें पहली भी उठती थीं, लेकिन उसकी धमक इतनी तेज नहीं थी कि पूरी दुनिया में सुनाई देने लगे.

फीफा वर्ल्‍ड कप में भी ईरान का विरोध

कतर में चल रहे फुटबॉल वर्ल्‍ड कप के दौरान भी जब ईरान की राष्‍ट्रगान बजा तो ईरानी खलिाडि़यों और नागरिकों ने सम्‍मान में उठने से इनकार कर दिया. ये ईरानी सरकार के खिलाफ लोगों की नाराजगी थी. अपना प्रतिरोध दर्ज करने का एक तरीका था. सरकार चारों ओर से घिर चुकी थी. अब ईरानी सरकार के खिलाफ कोई और रास्‍ता नहीं बचा था कि वो ‘गश्त ए इरशाद’ को वापस ले ले.

अमेरिका ने गत 23 सितंबर को 'गश्त-ए-इरशाद' को अपने यहां ब्लैकलिस्ट कर दिया था. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि महसा अमीनी की मौत के लिए मोरैलिटी पुलिस ही जिम्मेदार है. 

हालांकि ईरान के अटॉर्नी जनरल की घोषणा की अभी कानून लागू करने वाली देश की संस्‍था ने आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की है. लेकिन इंटरनेशनल मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार यह घोषणा जल्‍द ही हो सकती है.

आखिर ईरानी सरकार के खिलाफ अब कोई रास्‍ता नहीं बचा है. जब देश की पूरी आधी आबादी किसी जाहिलियत भरे कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर आए, जान देने और जेलों में ठूंसे जाने पर आमादा हो जाए तो सरकार के पास कोई रास्‍ता नहीं बचता.