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अपनी माइक्रो-फॉरेस्ट पहल के जरिए खोई हुई हरियाली को वापस लाने के मिशन पर है पंजाब का यह आईआरएस अधिकारी

अपनी माइक्रो-फॉरेस्ट पहल के जरिए खोई हुई हरियाली को वापस लाने के मिशन पर है पंजाब का यह आईआरएस अधिकारी

Thursday November 21, 2019 , 3 min Read

रोहित एक जापानी वृक्षारोपण प्रक्रिया को फॉलो कर रहे हैं जिसे मियावाकी (Miyawaki) कहा जाता है। उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए एक प्राचीन भारतीय वृक्षारोपण पद्धति 'वृक्ष आयुर्वेद' को भी अपनाया है। इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करके भूमि की एक छोटे से टुकड़े में एक अच्छी संख्या में एक साथ पेड़ उगाए जाते हैं।

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रोहित मेहरा

मुंबई का आरे जंगल हाल ही में खबरों में था क्योंकि वहां से गुजरने वाली मुंबई की अगली मेट्रो लाइन के लिए कई पेड़ काटे जा रहे थे। कई विरोधों के बावजूद, राज्य द्वारा संचालित मेट्रो प्राधिकरण किसी तरह जंगल में 1,000 से अधिक पेड़ों को काटने में सफल रहा।


हर कोई जानता है कि ग्रीन कवर कम होने का मतलब है बढ़ता तापमान और कम बारिश। जहां भारत और पूरे विश्व में घटते हरे आवरण यानी की हरियाली कम होते देखना चिंताजनक है, वहीं पंजाब के इस व्यक्ति ने पर्यावरण को बचाने और हरित आवरण (green cover) को बढ़ाने के लिए एक अनूठी योजना बनाई है।


रोहित मेहरा, एक भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी (IRS) हैं। वे अपनी पहल 'माइक्रो जंगल्स’ के माध्यम से लुधियाना शहर में वनीकरण ड्राइव का नेतृत्व कर रहे हैं।


रोहित एक जापानी वृक्षारोपण प्रक्रिया को फॉलो कर रहे हैं जिसे मियावाकी (Miyawaki) कहा जाता है। उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए एक प्राचीन भारतीय वृक्षारोपण पद्धति 'वृक्ष आयुर्वेद' को भी अपनाया है। इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करके भूमि की एक छोटे से टुकड़े में एक अच्छी संख्या में एक साथ पेड़ उगाए जाते हैं।





रोहित के माइक्रो जंगल में उगने वाले कुछ पेड़ों में नीम, आंवला, बरगद, पीपल, और अशोक शामिल हैं, जिन्हें रोहित के अनुसार, पंचवटी के रूप में जाना जाता है। ये मुख्य पेड़ होते हैं इसके बाद अन्य किस्मों जैसे टीक, चमेली और हरिशंकरी के पेड़ भी उगाए जाते हैं। पेड़ों को एक दूसरे के बीच 2.5 फीट की दूरी पर लगाया जाता है, और पत्ती की खाद का उपयोग करके उगाया जाता है।


ट्रिब्यून इंडिया के मुताबिक रोहित कहते हैं,

“हम वृक्ष आयुर्वेद में वर्णित तकनीकों का उपयोग करके उन किस्मों का उगा रहे हैं जो तेजी से बढ़ती हैं और घनी होती हैं। छोटे जंगल उगाने के लिए हमारे पास उपलब्ध भूमि के आसपास जो भी कृषि से निकला हुआ कचरा मिलता है, उसका उपयोग मिट्टी को फर्टीलाइज करने के लिए किया जाता है जहां पौधे लगाए जाते हैं।"
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दो साल की अवधि में, रोहित ने 27 से अधिक माइक्रो जंगलों का निर्माण किया है, जो कि 10 गुना तेजी से बढ़ने, 30 गुना घनी और 10 गुना अधिक जैव विविधता होने की उम्मीद है।


अब तक, उन्होंने अमृतसर, लुधियाना, सूरत, गुरुग्राम और वडोदरा आदि में 20 से अधिक माइक्रो जंगलों का निर्माण किया है। इन वनों का निर्माण विभिन्न सार्वजनिक संस्थानों और स्थानों में किया गया है। इसके अलावा, रोहित 'ग्रीन गेट टुगेदर' का भी नेतृत्व कर रहे हैं, जिसके माध्यम से वह अधिक से अधिक लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, और शहर में टोल प्लाजा पर सीड बॉल (seed balls) का वितरण कर रहे हैं। रोहित को लगता है कि पर्यावरण को बचाने में लोगों की भागीदारी भी बहुत महत्वपूर्ण है, और इसलिए वे जनता को माइक्रो जंगलों के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।


द लॉजिकल इंडियन से बात करते हुए, रोहित कहते हैं,

“जब मैं बच्चा था तो मुझे गर्मियों की छुट्टियां बहुत पसंद थीं क्योंकि यह एक राहत भरा ब्रेक होता था। अब, मेरे बेटे की शहर में बढ़ते प्रदूषण के कारण छुट्टियां हैं। हमें अपनी छुट्टियों को एजॉय करना चाहिए नाकि; उन्हें बाहर की अपमानजनक हवा से बचाने में खर्च करना चाहिए।”