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जापान की पत्रकार ने जीता हाई प्रोफाइल ‘मी टू’ केस, आरोपी को मुआवजे में देने होंगे 30 हजार डॉलर

जापान की पत्रकार ने जीता हाई प्रोफाइल ‘मी टू’ केस, आरोपी को मुआवजे में देने होंगे 30 हजार डॉलर

Thursday December 19, 2019 , 2 min Read

"जापान की राजधानी टोक्यो की एक अदालत ने बुधवार को पत्रकार शिओरी इतो को ‘मी टू’ के हाई प्रोफाइल मामले में 30,000 डॉलर मुआवजा देने का आदेश दिया।"

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फोटो क्रेडिट: shethepeople

पत्रकार ने जापान में चले ‘मी टू’ अभियान के दौरान टीवी के एक पूर्व रिपोर्टर पर बलात्कार का आरोप लगाया था।


इस दीवानी मामले ने जापान और विदेशों में सुर्खियां बटोरी थीं क्योंकि 2017 के एक सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक, जापान में बलात्कार पीड़िताओं का अपराध की सूचना पुलिस को देना असाधारण बात है। सर्वेक्षण के मुताबिक, यहां केवल चार प्रतिशत महिलाएं अपने साथ हुए बलात्कार की शिकायत दर्ज कराती हैं।


इतो (30) जापान में ‘मी टू’ अभियान की मुखर आवाज बन गईं थीं जहां यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ आंदोलन को अपनी जमीन बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी थी।


उन्होंने प्रधानमंत्री शिंजो आबे से नजदीकी संपर्क रखने वाले टीवी के एक पूर्व रिपोर्टर नोरियुकी यामागुची से 1,00,000 डॉलर का मुआवजा मांगा था। इतो का आरोप था कि 2015 में यामागुची ने नौकरी का झांसा देकर उन्हें खाने पर बुलाया और बलात्कार किया था।


यामागुची लगातार इन आरोपों से इनकार करते रहे और इतो के खिलाफ उन्होंने जवाबी वाद दर्ज कराया और मुआवजे में 13 करोड़ येन मांगे।


इतो ने अदालत के बाहर कहा,

“हम जीत गए। जवाबी वाद निरस्त कर दिया गया।”


उन्होंने हाथ में एक बैनर उठाया हुआ था जिसमें ‘‘जीत” लिखा था।





आपको बता दें कि साल 2017 में जापान जैसे रूढ़िवादी देश में तब सनसनी फैल गई जब पत्रकार शिओरी इटो ने जनता के सामने जापान के मशहूर पत्रकार पर बलात्कार का आरोप लगाया था। इटो देखते ही देखते जापान में मीटू आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन गईं। इसके बावजूद बलात्कार और यौन उत्पीड़न के खिलाफ जापान में अभियान दुनिया के बाकि देशों के मुकाबले धीमा ही रहा। जापान की सरकार के आंकड़ो के मुताबिक 2017 में बलात्कार पीड़ित महिलाओं में केवल 4 प्रतिशत ने ही पुलिस में इसकी रिपोर्ट दर्ज कराई।

जापान में बदले गए कानून

उसी साल जापान ने अपने 100 साल पूराने कानून को बदल दिया। बलात्कार के दोषी की सजा तीन साल से पांच साल कर दी गई। पहली बार यौन उत्पीड़न की परिभाषा को बदलते हुए उत्पीड़न के पीड़ितो में पुरुषों को भी शामिल किया गया।

हालांकि यौन उत्पीड़न के इस कानून में कई खामियां हैं जिसमें अभियोजन पक्ष को अभी भी यह साबित करना पड़ता है कि पीड़ित ने बलात्कार के दौरान विरोध किया था।