Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

Jayaprakash Narayan Jayanti: सत्ता से दूर रहकर भी लोकनायक बनने वाले जय प्रकाश नारायण

Jayaprakash Narayan Jayanti: सत्ता से दूर रहकर भी लोकनायक बनने वाले जय प्रकाश नारायण

Tuesday October 11, 2022 , 3 min Read

जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) का सपना एक ऐसा समाज बनाने का था जिसमें नर-नारी के बीच समानता हो और जाति का भेदभाव न हो. 72 साल के समाजवादी-सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण ने पांच जून, 1974 को पटना के गांधी मैदान पर लगभग पांच लाख लोगों की जनसभा में देश की गिरती हालत, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी के हालात बदलने के लिए ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आह्वाहन किया. इस क्रांति का मतलब परिवर्तन और नवनिर्माण दोनों से था. जेपी ने घोषणा की- भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति- ‘सम्पूर्ण क्रांति’ आवश्यक है. इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह सम्पूर्ण और बहुमुखी है, इसलिए इसका समाधान सम्पूर्ण और बहुमुखी ही होगा.


इस आह्वान पर देश भर के छात्र जयप्रकाश नारायण के पीछे अहिंसक और अनुशासित तरीके से लामबंद होने लगे थे. गुजरात और बिहार की परिधि को लांघते हुए सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में भी जंगल की आग की तरह फैलने लगा. इस आंदोलन ने न सिर्फ राज्यों की कांग्रेसी सरकारों बल्कि केंद्र में सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी की सरकार को भी भीतर से झकझोर दिया था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ये उद्गार एक तरह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ जंग का आगाज थे. 


तभी 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा का ऐतिहासिक फैसला आया जिसमें इंदिरा गांधी के संसदीय चुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया. उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द करने के साथ ही उन्हें छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया था.


24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी थी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी. वह लोकसभा में जा सकती थीं लेकिन वोट नहीं कर सकती थीं.


इंदिरा के पद नहीं छोड़ने की स्थिति में अगले दिन 25 जून को जेपी ने अनिश्चितकालीन देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था. दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की मशहूर कविता की पंक्ति “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है…” का उद्घोष किया था. इसके बाद जेपी समेत विपक्ष के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. जेपी के इस नारे के बाद कांग्रेस के पास सत्ता को बचाये रखने का एकमात्र तरीका था और वो था इमरजेंसी. वो लगा.


21 महीने की इमरजेंसी के बाद अब बारी देश की जनता की थी. जय प्रकाश नारायण पहले ही अपना आंदोलन में सत्ता परिवर्तन का नारा दे चुके थे. कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक नई पार्टी को सत्ता में लाने का जेपी ने मन बना लिया था, पार्टी का नाम था जनता पार्टी. फिर देश की जनता ने ऐसा फैसला सुनाया कि कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं आ पाई. हालांकि, महज दो साल बाद इंदिरा गांधी वापस सत्ता में लौट आईं. लेकिन यह देखने के लिए बिहार के सिताब दियारा का चमकता सितारा जय प्रकाश नारायण जीवित नहीं थे. 8 अक्टूबर 1979 को उनका निधन हुआ. 1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया. इसके अलावा उन्हें समाजसेवा के लिए 1965 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था.

भ्रष्टाचार और सत्ता के लिए मोह के खिलाफ के जेपी आन्दोलन से कई युवा नेता जुड़ थे जो आज भारतीय राजनीति का बड़ा चेहरा हैं. जिनमें नीतीश कुमार, लालू यादव, शरद यादव और रामविलास पासवान जैसे नाम हैं.