दानवीर अरबपतियों की सूची में अब जेफ बेजोस भी- अमीर होने की चाह के बाद अमर होने की चाह
दुनिया का सब सुख, धन, वैभव, ऐश्वर्य और पावर का स्वाद चख लेने के बाद अंत में क्या बचा रह जाता है.
दुनिया के बड़े दानवीर अरबपतियों की फेहरिस्त में नया नाम जुड़ने जा रहा है जेफ बेजोस का. अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस. दसवीं क्लास में अपना पहला बिजनेस शुरू करने वाले जेफ बेजोस. 30 साल की उम्र में अमेजन की शुरुआत करने और महज 33 साल में लखपति बन जाने वाले जेफ बेजोस. 35 साल की उम्र में अरबपति बनने वाले जेफ बेजोस. आज की तारीख में 113 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस.
दुनिया का यह सबसे अमीर शख्स अब 58 साल का हो चुका है और अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा समाज सेवा के कामों में लगाना चाहता है. हाल ही में CNN को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह अपने जीवन काल में अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों में लगा देंगे. उनके शब्द थे कि ये पैसा वो “क्लाइमेट चेंज को रोकने” और उन लोगों के कामों में लगाना चाहते हैं, जो “दुनिया की बेहतरी और बराबरी के लिए” काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन कामों के लिए “जो सामाजिक और राजनीतिक विभाजन” के इस दौर में “मनुष्यता और समानता को बचाने” के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
जीवन के तकरीबन 38 साल अरबों रुपए की संपत्ति का विशालकाय साम्राज्य खड़ा करने में अपना जीवन लगाने वाले जेफ बेजोस अब एक ऐसी दुनिया के बारे में सोच रहे हैं, जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो, जो बराबरी, समानता और मनुष्यता की बात करे.
28 सालों में अमेजन ने जो दुनिया बनाई और जिस तरह से बनाई, उसकी डीटेल में हम नहीं जाएंगे. बस इतना कह सकते हैं कि क्लोई झाओ ने 2020 में एक फिल्म बनाई थी नोमैडलैंड (Nomadland), वो देख लीजिए, जो अमेरिकन पत्रकार जेसिका ब्रूडर की किताब ‘नोमैडलैंड: सरवाइविंग अमेरिका इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंच्युरी’ (Nomadland: Surviving America in the Twenty-First Century) पर आधारित है.
फिलहाल बैरबराबरी की बुनियाद पर खड़ी और गैरबराबरी को बढ़ावा देने वाली इन तमाम कंपनियों के संस्थापकों को एक वक्त के बाद इलहाम होता है कि दुनिया में अन्याय और गैरबराबरी बहुत है और उनका पैसा और संसाधन उस अन्याय और गैरबराबरी से लड़ने में खर्च किया जाना चाहिए. खूब पैसा देखकर, भोगकर, जीकर अब वो उस पैसे को दान कर देना चाहते हैं.
आखिर क्यों ?
‘फर्स्ट थिंग’ मैगजीन में इस साल नवंबर में ब्रिटिश राइटर सैम क्रिस का एक लंबा लेख छपा- “द ट्रुथ अबाउट बिल गेट्स.” 6000 शब्दों का ये लंबा लेख बिल गेट्स पर एक इंवेस्टिगेटिव साइकोलॉजिकल रिपोर्ट की तरह है, जो उनके माइक्रोसॉफ्ट के बिजनेस और एक बिलियनेयर के मनोविज्ञान की पड़ताल करता है. बिल गेट्स को एक सब्जेक्ट बनाकर सैम क्रिस दरअसल ये पड़ताल करने की कोशिश कर रहे हैं कि अकूत पैसा कमाने की चाह रखने और फिर उस पैसे को महान कार्यों में दान करने वाले मनुष्य के दिमाग में आखिर चल क्या रहा होता है.
हालांकि बतौर फोर्ब्स लिस्ट, बिल गेट्स तो अब दुनिया के सबसे अमीर शख्स भी नहीं रहे. अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान करने के बाद अब वो दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में खिसककर चौथे-पांचवे नंबर पर पहुंच गए हैं. 20 साल तक उस लिस्ट में टॉप पर अपना नाम देखने के बाद बिल गेट्स को उस उपलब्धि से थ्रिल नहीं मिलता. उन्हें कुछ और ही तलाश है.
दुनिया अमीर आदमी को पूजती भी है और शक ही निगाह से भी देखती है
आपको पता है कि अमेरिका के इतिहास में सबसे ज्यादा मुकदमे किन लोगों पर हुए हैं. शायद आपका जवाब हो कि माफियाओं, ड्रग डीलरों और मडरर्स पर. जवाब है- नहीं. अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया में आज भी इंडीविजुअल क्राइम से कहीं ज्यादा बड़ा है कॉरपोरेट क्राइम और सबसे ज्यादा मुकदमे चले हैं अरबपतियों, व्यापारियों और बिजनेसमैन पर.
कंप्यूटर और सॉफ्टवेअर की दुनिया में बिल गेट्स का नाम उभरने के साथ शुरू में तो वो एक प्रेरक व्यक्तित्व और सफल स्टार्टअप आंत्रप्रेन्योर की तरह पत्रिकाओं के कवर पर छाए रहे, लेकिन 90 का दशक खत्म होते-होते जब माइक्रोसॉफ्ट उम्मीद और अपेक्षाओं की ऊंचाई से कहीं ज्यादा ऊंचा हो गया तो सरकार, लॉ इंफोर्समेंट एजेंसियों और पूरे सिस्टम के कान खड़े हो गए. मीडिया की सुर्खियां बदल गईं और एक आइडियल सफल बिजनेसमैन एक कॉरपोरेट क्रिमिनल के तौर पर पत्रिकाओ के कवर पर दिखाई देने लगा.
बिल गेट्स कुछ-कुछ पैसा तब भी टैक्स सेविंग के नाम पर अपने फाउंडेशन पर लगा रहे थे, लेकिन ये पैसा इतना भी नहीं था कि दुनिया के महानतम दानवीरों में उनका नाम शुमार हो जाए. बिल गेट्स मीडिया की हेडलाइंस में अब माइक्रोसॉफ्ट पर चल रहे मुकदमों की वजह से थे.
रातोंरात खबरों की हेडलाइंस बदल जाती है
इन मुकदमों के चलते बिल गेट्स की पब्लिक इमेज लगातार धूमिल हो रही थी. पब्लिक इमेज का तो ऐसा है कि किसी का अचानक अतिशय अमीर हो जाना जनता को अभिभूत करता है और बाकी अमीरों और प्रतिस्पर्धियों को ईर्ष्या से भर देता है. रातोंरात बिलियेनयर बन गए जिस आदमी को लोग अब तक अभिभूत होकर देख रहे थे, अचानक मुकदमों की खबरों से उसकी सार्वजनिक छवि धूमिल होने लगती है. और तभी बिल गेट्स ये घोषणा करते हैं कि वे 100 मिलियन डॉलर बच्चों के वैक्सीनेशन पर खर्च करेंगे. 1997 में ही वो भारत आते हैं और HIV/AIDS के खिलाफ अपने मिशन में लाखों डॉलर दान करते हैं. इसी दौरान वो कई अफ्रीकी देशों की यात्रा करते हैं.
इसी के साथ उन पर चल रहे कॉरपोरेट फ्रॉड के मुकदमे भी लाखों डॉलर्स के साथ सेटल किए जाते हैं और फिर रातोंरात खबरों की हेडलाइंस बदल जाती है.
मीडिया में अब भी बिल गेट्स का नाम है, लेकिन उस शख्स के रूप में नहीं, जिस पर कानून का उल्लंघन करने के कारण मुकदमे चल रहे हैं, उस शख्स के रूप में, जिसने अपनी दौलत का एक बड़ा हिस्सा तीसरी दुनिया के गरीबों के दुख और बीमारियां दूर करने के लिए लुटा दिया है. जो दयालु है, दानवीर है, गरीबों के दुख से जिसका दिल पिघल गया है. जो चैरिटी नहीं कर रहा, जो फिलेन्थ्रोपिस्ट है. चैरिटी करने और फिलेन्थ्रोपिस्ट होने में बड़ा फर्क है.
गरीबों और वंचितों के दुख दूर करने के लिए खर्च किए गए 50 अरब डॉलर का नतीजा ये होता है कि मीडिया और दुनिया में बिल गेट्स की छवि अचानक बदलने लगती है. अब तक वो दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे, अब वो सबसे अमीर और सबसे दानवीर भी हैं.
एक नाबालिग मां की संतान जेफ का पैसों के साथ रिश्ता
ऐसा नहीं कि जेफ बेजोस पर मुकदमे कुछ कम रहे हैं. या मीडिया में उनकी छवि हमेशा गरीबी से उठकर दुनिया का सबसे अमीर इंसान बन जाने वाले प्रेरक व्यक्तित्व की रही है. लेकिन बिल गेट्स के मुकाबले जेफ बेजोस को इस पब्लिक इमेज की परवाह थोड़ी कम रही. उनके लिए महानता और अमरता प्राप्त करने के मुकाबले पैसा कमाना, पैसा उड़ाना और पैसे की ताकत को महसूस करना, जीना ज्यादा बड़ी जरूरत है और उसकी भी ठोस वजहें हैं.
एक नाबालिग और अकेली मां की संतान (उनकी मां ने उन्हें तब जन्म दिया, जब वो हाईस्कूल में पढ़ती थीं और इस वजह से उन्हें स्कूल और पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी) और शुरुआती जीवन बेहद अभाव और गरीबी में गुजारने वाले जेफ बेजोस का पैसों के साथ रिश्ता, अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित और स्थायित्व वाले परिवार में पले-बढ़े बिल गेट्स के मुकाबले थोड़ा टेढ़ा था.
जेफ बेजोस के लिए दुनिया का सबसे अमीर आदमी होना सिर्फ ताकतवर होने का थ्रिल भर नहीं था, ये उस बच्चे का दुनिया को जवाब भी था, जिसने कभी उसे बहुत कमजोर और ठुकराया हुआ महसूस कराया था. मॉर्गन हॉसेल “द साइकॉलजी ऑफ मनी” में लिखते हैं, “पैसा अभाव का विलोम नहीं है. वह उसका प्रतिशोध है.”
पहले अमीर होने और फिर अमर होने की चाह
पैसा कमाने की सबकी अपनी-अपनी वजहें हो सकती हैं. कुछ दुर्लभ संयोग भी. जैसाकि स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग या अली गोधासी के साथ हुआ. लेकिन पैसा कमा लेने के बाद उस पैसे के साथ आपका रिश्ता आपके दिमाग की उस कॉम्प्लेक्स वायरिंग से बनता, बिगड़ता और तय होता है, जो आपकी ग्रोइंग के दौरान विकसित हुई.
बिल गेट्स, वॉरेन बफे, मैकेंजी स्कॉट, चार्ल्स फीनी, जॉर्ज सोरॉस, माइकल ब्लूमबर्ग और अब जेफ बेजोस. सबने पहले खूब पैसा कमाया और फिर वो पैसा लुटा दिया. सेवा के नाम पर, फिलेन्थ्रोपी के नाम पर, दुनिया से गरीबी, अन्याय, असमानता को मिटाने के नाम पर. मानवता के नाम पर.
दुनिया का सब सुख, धन, वैभव, ऐश्वर्य और पावर का स्वाद चख लेने के बाद अंत में क्या बचा रह जाता है. अमीर होने की चाह के अंत में सबको अमर होने की चाह है.
Edited by Manisha Pandey