जानिए कैसे अपने प्रयासों से झारखंड में शिक्षा और विकास का चेहरा बदल रहा है यह आईएएस अधिकारी
झारखंड के सिंहभूम जिले में, 650 आंगनबाड़ियों (रूरल चाइल्डकेयर सेंटर) की दीवारों पर नंबर्स और अक्षर (अल्फाबेट) को पेंट किया गया है। इस प्रोजेक्ट को बिल्डिंग एज लर्निंग एड (BALA) के नाम से जाना जाता है और यह उन कई चीजों में से एक है, जो जिले में बच्चों की हालत को दर्शाता है। यह जिला भारत के सबसे गरीब निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है - और यहां बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषण से ग्रस्त है। हालांकि इस सुविधा के अलावा अन्य सुविधाएं जैसे कि बेहतर स्वच्छता, बुनियादी शिक्षा शुरू करना, और पौष्टिक भोजन प्रदान करना IAS अधिकारी आदित्य रंजन और उनकी पहल 'मॉडल आंगनबाड़ी' के प्रयासों का परिणाम है।
वे कहते हैं,
“इससे पहले, बुनियादी ढांचे की कमी के अलावा, सेवक (कार्यकर्ता) खिचड़ी पकाते थे, बच्चों को खिलाते थे, और उन्हें घर भेज देते थे। शिक्षण की कोई अवधारणा नहीं थी।”
इसलिए, अधिकारी ने प्रत्येक दिन के हिसाब से समय-सारिणी, संख्याओं से लेकर वर्णमाला और चित्रों सहित अन्य चीजों के लिए टाइम-टेबल बनाकर मामले को अपने हाथों में लिया।
वे कहते हैं,
"यह कहा जाता है कि बच्चे के पहले 1,000 से 2,000 दिन उनके मानसिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।"
उन्होंने कहा कि उनकी पहल के पीछे यही आइडिया है।
प्रेरणा
ओरेकल में एक जॉब छोड़ने के बाद, आदित्य ने 2015 में प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा क्लियर की। वे उस समय देवघर जिले में अपने प्रोबेशन पीरियड थे जब उनको मॉडल आंगनबाड़ी का आइडिया आया। हालांकि इसके पीछे उनकी प्रेरणा रहीं एक विधवा सेविका जो अकेले रहती थीं और और ऐसी ही आंगनबाड़ी को सुधारने के लिए अपने मासिक वेतन 4,500 रुपये का इस्तेमाल करती थी। उन्हें बच्चे बहुत प्यार करते थे।
वे कहते हैं,
"कैसे अपनी लगन से एक केयरटेकर ने एक आंगनबाड़ी को इतनी अच्छी जगह में बदल दिया, ये देखना सच में मेरे लिए एक अद्भुत पल था। जितना मैं सोच सकता हूं यह किसी भी प्लेस्कूल से बेहतर था। और अगर वह अपनी जेब से योगदान दे सकती है, तो सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती?” नतीजतन, दिसंबर 2018 में, उन्होंने शिंहभूम जिले में इसी मॉडल की नकल करना शुरू कर दिया, लेकिन "अधिक उन्नत तकनीक के साथ।"
2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड ने राष्ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत के मुकाबले 67 प्रतिशत साक्षरता दर है। मॉडल आंगनबाड़ियों ने बच्चे की ग्रोथ और डेवलपमेंट के लिए आवश्यक पर्याप्त पोषण देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आदित्य ने बताया किया कि एक साल पहले से बच्चों की लंबाई और वजन के आधारभूत सर्वेक्षण में सुधार दिखाई देता है।
उन्होंने कहा कि अधिक बच्चे नियमित रूप से केंद्र में आने और गतिविधियों में संलग्न होने के लिए तैयार हैं। इसके अलावा, आदित्य ने जोर दिया कि माता-पिता में एक व्यवहारिक परिवर्तन उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि एक बच्चा दिन का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ बिताता है।
चुनौतियां
आदित्य का लक्ष्य इस मार्च के अंत तक जिले के 2,330 केंद्रों में से 1,000 को मॉडल आंगनबाड़ियों में बदलना है। प्रगति में देरी पर बोलते हुए, वह भूमि, भवन और खराब बुनियादी ढांचे के संबंध में बाधाओं का हवाला देते हैं। वे कहते हैं,
"इसके लिए, हमने उन केंद्रों के साथ शुरू किया जो बेहतर स्थिति में हैं।"
हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती, वे कहते हैं, कुछ बदलावों का विरोध करने वाले वर्कर्स थे।
आदित्य कहते हैं,
"जहां उन्होंने अवसंरचनात्मक सुधारों की सराहना की, वहीं उन्होंने बाला, शिक्षण और बच्चों की देखभाल के उपयोग के संदर्भ में बहुत प्रतिरोध किया था।"
नतीजतन, उन्होंने पहल के महत्व और केंद्रों को कैसे काम करना चाहिए, इसके लिए केयरटेकर्स के लिए आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना शुरू कर दिया।
इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि संसाधनों का सही उपयोग किया जाए, उन्होंने केंद्रों में दैनिक गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए ई-समिक्षा ऐप पेश किया। आदित्य प्रत्येक महीने के अंत में बैकएंड की जांच करते हैं यह देखने के लिए कि कितने केंद्र नियमित रूप से खुल रहे हैं और कक्षाएं संचालित कर रहे हैं।
शिक्षा के माध्यम से सशक्त करना
आरक्षण-आधारित जिले, शिंहभूम के निवासियों को बाहरी लोगों के साथ कौशल और ज्ञान साझा करने की कमी की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वे बताते हैं,
“जिले की दीर्घायु (Longevity) बहुत कम है और जब सरकारी अधिकारी सेवानिवृत्त होने से पहले मर जाते हैं, तो उनके परिवार के किसी सदस्य को उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, सरकार में नौकरी मिल जाती है।”
शिक्षा के संदर्भ में इस आईएएस अधिकारी ने जिला ई-गवर्नेंस सोसायटी कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम (डीजीएस) शुरू किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर छात्र को कंप्यूटर शिक्षा प्राप्त हो। उन्होंने जिला ई-गवर्नेंस सोसाइटी (DeGs) प्रोग्राम को कंप्यूटर साक्षरता और सॉफ्ट स्किल को बढ़ाने के लिए और अधिक प्रभावी बना दिया है, जिसमें पेशेवर तरीके से चलना और बात करना, साक्षात्कार और समूह चर्चा, और मोबाइल फोन का उपयोग करने के तरीके शामिल हैं।
अब तक प्रशिक्षित 2,100 से अधिक छात्रों के साथ, आदित्य कहते हैं,
"ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने कभी कंप्यूटर नहीं देखा है जो माउस को घूरते हैं और पूछते हैं कि इसके साथ क्या करना है। वे डर जाते हैं कि इसका उपयोग करते समय टूट सकता है। और वे सभी कार्यक्रम के तहत सीखते हैं।”
आदित्य बताते हैं कि पिछले साल शिक्षक दिवस सबसे यादगार दिनों में से एक था। उनके छात्र, जिनमें से कुछ भारतीय रेलवे में नौकरी कर चुके थे या खुद शिक्षक बन गए थे, आभार व्यक्त करने के लिए उनके ऑफिस आए थे। "मैंने उनसे पूछा कि वे क्या चाहते हैं, और उन्होंने कहा कि वे चाहते थे कि ऐसे कोचिंग सेंटर चाहते हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराएं।"
नतीजतन, इस फरवरी में, आदित्य ने शिंहभूम में अपना पहला कोचिंग सेंटर खोला, जहाँ 1,200 छात्रों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। छात्रों को 400 के प्रत्येक तीन बैचों में विभाजित किया गया है। वे इंग्लिश, मैथ, बिजनेस और जनरल स्टडी सीखते हैं।
वे कहते हैं,
“मैं उन्हें इन एरियाज में छह महीने के लिए प्रशिक्षित करना चाहता हूं ताकि वे सरल शब्दों और वाक्य बनाने के बारे में जान सकें।”
वह बताते हैं कि वह जनरल स्टडी (सामान्य अध्ययन) की क्लास लेते हैं। एक बार जब छह महीने का कोर्स पूरा हो जाता है, तो आदित्य उन्हें पसंद और योग्यता के मिश्रण के आधार पर वर्गीकृत करने की योजना बनाते हैं, और विभिन्न परीक्षाओं पर केंद्रित 10 से 20 बैच बनाते हैं।
झारखंड के बोकारो में बड़ा हुआ यह, आईएएस अधिकारी आदित्य रंजन के काम करने का तरीका हमें बताता है कि परिवर्तन घर से ही शुरू होता है।