नामुमकिन को हासिल कर लेने जैसा है जेएनयू के गार्ड रामजल का स्ट्रगल
"इतिहास वे ही रचते हैं, जिनकी कामयाबियां लाखों में एक हुआ करती हैं। अपने कठिन हालात में राजस्थान के रामजल, पंजाब के हरप्रीत, महाराष्ट्र के रियाज, तमिलनाडु के एलम बहावत की तरह हर कोई सफलता की दास्तान लिख भी तो नहीं सकता है। ऐसे ही युवाओं की उड़ान पूरी पीढ़ी की प्रेरणा बन जाती है।"
जिस तरह 12वीं में फेल होने के बावजूद नासिक (महाराष्ट्र) के सैयद रियाज, पढ़ाई के दौरान पिता के गुजर जाने पर भी तमिलनाडु के एलम बहावत, पार्ट टाइम दुकान में काम करके शुभम गुप्ता जैसे संघर्षशील युवा आईएएस सेलेक्ट हो गए, सफलता की वैसी ही दास्तान है दशमेश नगर (दोराहा), लुधियाना (पंजाब) के हरप्रीत सिंह की, जो बार-बार की कोशिश से सिविल सर्विस परीक्षा के पांचवें अटेंप्ट में 19वीं रैंक के साथ अपने शहर से पहले आईएएस बन गए। कमोबेश इसी से मिलती-जुलती कामयाबी का एक नया-ताज़ा सफरनामा है जेएनयू (दिल्ली) के वॉचमैन रामजल मीणा का।
मूल रूप से करौली (राजस्थान) के रहने वाले रामजल मीणा की सफलताओं की दास्तान इसलिए लाखों में एक है, क्योंकि उनको अपना कठिन रास्ता आसान करने में भले ही वक़्त से को सहूलियत नहीं मिली, सतह से उठते आदमी की तरह कभी मजदूरी की कमाई से अपनी तीन बहनों के हाथ पीले करने के बाद वह आज जेएनयू में गार्ड की नौकरी करते हुए उसी यूनिवर्सिटी का इंट्रेंस एग्जॉम पास कर चुके हैं और अब, आगे उनका भी सपना आईएएस बनने का है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की प्रवेश परीक्षा इस वर्ष जून में हुई थी। इसमें देशभर से लाखों अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया था। इनमें से एक रामजल मीणा भी रहे। मूल रूप से करौली (राजस्थान) के रहने वाले रामजल जेएनयू के मेन गेट पर पांच साल तक गार्ड की नौकरी करते रहे। वह जेएनयू के गेट पर खड़े-खड़े अन्य छात्रों को पढ़ते देख अक्सर सोचा करते थे कि क्या वह ऐसी पढ़ाई नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कुछ साल पहले राजस्थान यूनिवर्सिटी में बीएससी में दाखिला भी ले लिया था लेकिन घर की जिम्मेदारियों के कारण बीच में ही पढ़ाई छूट गई। कुछ समय तक पिता के साथ मजदूरी से तीन बहनों के हाथ पीले किए।
वर्ष 2003 में रामजल की भी शादी हो गई। तीन बच्चे हो गए। इस समय उनकी एक बेटी नौवीं, दूसरी सातवीं और बेटा चौथी कक्षा में है। वह सभी को उच्च शिक्षा देना चाहते हैं। इस बीच जेएनयू में गार्ड की नौकरी करते हुए उन्होंने राजस्थान से बीए भी कर लिया। इस समय एमए भी कर रहे हैं। जेएनयू की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद उन्हे क्लास करने की अनुमति भी मिल गई। वह गार्ड की ड्यूटी के साथ रोजाना समय निकाल कर आठ से दस घंटे किताबें में बिताते रहे। इस दौरान उनको जेएनयू के प्रोफेसर्स और स्टुडेंट्स से प्रोत्साहन भी मिलता रहा। आखिरकार, उन्हे यूनिवर्सिटी में एडमिशन तो मिल गया। अब वह आईएएस बनने का सपना देख रहे हैं।
इसी तरह पंजाब के हरप्रीत सिंह को थॉपर कॉलेज पटियाला से बीटेक करने के बाद वर्ष 2017 में सिविल सर्विस एग्जाम में 454 रैंक मिली तो इंडियन ट्रेड सर्विस ज्वॉइन करने के बाद पिछले साल उन्होंने एक बार फिर एग्जाम दिया। 2019 में 19वीं रैंक से कामयाबी मिली। इससे पहले कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्हें आईबीएम कंपनी में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल फोरेन ट्रेड के रूप में नौकरी मिली लेकिन उससे वह अपने को संतुष्ट नहीं रख पा रहे थे।
वह नौकरी के साथ ही यूपीएससी की तैयारी भी करते रहे। उस दौरा कोचिंग करते हुए एग्जाम क्वालिफाई कर असिस्टेंट कमांडेंट बनकर प. बंगाल में बांग्लादेश बॉर्डर पर तैनात हो गए, फिजिकल ट्रेनिंग कठिन होने से उन्हे सिविल सर्विस एग्जॉम की तैयारी में तरह-तरह की अड़चनों का सामना भी करना पड़ा, ड्यूटी करते हुए उन्होंने एक बार फिर एग्जाम दिया और सेलेक्ट हो गए। इससे पहले वह मेन्स का एग्जाम क्वालिफाई नहीं कर पाए थे। इस तरह पांचवें अटेम्ट में 19वीं रैंक के साथ पंजाब में पहला स्थान हासिल कर उन्होंने नया इतिहास रचा तो बेटे की इस सफलता पर पिता मालविंदर सिंह और मां गुरप्रीत कौर आज फूले नहीं समाते हैं।