हिमाचल में जसविंदर के 'जीवामृत' से खूब लहलहा रही ऑर्गेनिक खेती
"सिरमौर (हिमाचल) की जसविंदर कौर, शिवपुरी (म.प्र.) के गांव श्यामपुरा की आदिवासी महिलाएं, मुजफ्फरपुर (बिहार) की राजकुमारी देवी ही नहीं, पटना वीमेंस कॉलेज भी दाम और नाम दोनों कमा रही हैं। उनकी ऑर्गेनिक खेती आम किसानों के लिए मिसाल बन गई है। जसविंद ऑर्गेनिक विधि में जीवामृत का इस्तेमाल करती हैं।"
खेती में नए-नए प्रयोग करने वाली सिरमौर (हिमाचल) के छोटे से गांव काशिपुर की जसविंदर कौर को शुरुआत में ऑर्गेनिक खेती के लिए पति से छिप-छिपाकर किसानी करनी पड़ी लेकिन कुछ नया कर दिखाने की उनकी चाहत जैसे ही परवान चढ़ी, वह पूरे इलाके के लिए एक मिसाल बन गईं। इस दौरान उन्होंने स्वयं जब ऑर्गेनिक खेती में इस्तेमाल के लिए एक विशेष प्रकार का 'जीवामृत' बनाया तो उनके पति ने उसे उठाकर फेंक दिया। साथ ही कहा कि वह अब खेती के किसी काम में सहयोग न करें, लेकिन अपनी धुन की पक्की जसविंदर भला पति की बंदर घुड़की से कहां दबने वाली थीं।
पति के तमाम तरह के दबावों के बावजूद उन्होंने जब जीवामृत के प्रयोग के साथ नई पद्धति से खेती को लहलहा दिया, देखते ही देखते सब्जियों की पैदावार दूसरों के मुकाबले बहुत ज्यादा होने लगी, उनके पति और अन्य घरवालों का मन बदल गया। वे भी जसविंदर कौर का साथ देने लगे। इस समय वह अपने परिजनों के साथ मिलकर सात बीघे खेत में सब्जियों की ऑर्गेनिक विधि की खेती से लाखों रुपए कमा रही हैं।
पटना वीमेंस कॉलेज की छात्राएं घर के किचन वेस्ट से कॉलेज में ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रही हैं। साल 1992 में सिस्टर डोरिस डिसूजा ने ईको टास्क फोर्स के तहत कॉलेज में ऑर्गेनिक खेती की पहल की थी। वर्ष 2006 से जूलॉजी विभाग की सिस्टर स्तुति उसे संभालने लगीं। वे छात्राएं सिर्फ फल और सब्जियां ही नहीं उगातीं, अर्थ वर्म की मदद से ऑर्गेनिक खाद भी बनाने लगी हैं। उनमें से ही ट्रेंड हो चुकी छात्राएं किसानों, सरकारी स्कूल के बच्चों और होम मेकर्स को ऑर्गेनिक खेती में प्रशिक्षित करने लगती हैं। इस समय भी सौ से अधिक छात्राएं अपने कॉलेज के पीछे गॉर्डन में विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों की खेती कर रही हैं। उनकी पैदावार की सीआरएल लैब में टेस्टिंग होती है।
पटना वीमेंस कॉलेज की छात्राओं की ऑर्गेनिक विधि के अंतर्गत नारियल के छिलके की पहली लेयर बनाई जाती है। दूसरी लेयर मिट्टी की होती है जिसपर किचन वेस्ट, सब्जियों के छिलके आदि डाले जाते हैं। उसके ऊपर एक सप्ताह पुराना गोबर बिछा दिया जाता है। फिर उसे पानी के छींटे मारकर 24 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। अब इसमें दो ब्रीड इसीना फीटीडा और यूड्रइलस यूजिनी डाला जाता है। फिर अर्थ वर्म डालकर पानी का छिड़काव किया जाता है। इसके बाद जूट बैग और पुआल से 15 दिनों तक ढक दिया जाता है। यह वर्मी कंपोस्ट 50 दिनों में तैयार हो जाता है। इसमें पोटाशियम, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के टेस्ट के बाद छात्राएं इस कंपोस्ट को पैकेट में पैक कर देती हैं। यह पैकेट 20 रुपए में कॉलेज में बेचा भी जाता है।
शिवपुरी (म.प्र.) के आदिवासी बहुल श्यामपुरा गांव में आदिवासी महिलाओं भूरी, प्रेमला, भग्गो आदि ने जब से वाटिका पद्धति से ऑर्गेनिक कृषि की शुरुआत की है, गांव में न सिर्फ बुजुर्गों की उम्र में इजाफा हुआ है, बच्चों से कुपोषण भी दूर भाग गया है। आदिवासी बहुल किशनपुरा के अलावा ग्राम कोटरा-कोटरी गांव में आदिवासी महिलाओं ने अपने स्नान घरों और बर्तन साफ करने से निकलने वाले व्यर्थ के पानी से घर के पास जैविक खेती की वाटिकाएं बना रखी हैं, जिससे न केवल घरों के आस-पास व आंगनों में हरियाली छाई रहती है बल्कि ताज़ा ऑर्गेनिक सब्जियों से रसोई का स्वाद भी बदल गया है।
मुजफ्फरपुर (बिहार) के सरैया प्रखंड के गाँव आनंदपुर की ऑर्गेनिक किसान राजकुमारी देवी को लोग आज 'किसान चाची' के नाम से जानने लगे हैं। किसान श्री पुरस्कार सम्मानित से राजकुमारी जब ऑर्गेनिक खेती के लिए पहली बार अपने घर से निकलीं तो उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखा गया, लेकिन आज वह उसी समाज को गौरान्वित कर रही हैं। जैविक खेती के अलावा वह गाँव-गाँव साइकिल से जाकर महिलाओं को जागरूक भी करती हैं। वह खुद के बनाए मुरब्बे, आंवले के अचार की मार्केटिंग भी करती हैं।
इसी तरह ओडिशा में कोराटपुर जिले की आदिवासी महिला किसान कमला पुजारी उर्फ़ कमला माँ को राज्य सरकार ने पिछले दिनों योजना बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया है। कमला विलुप्त प्रजाति के धान की किस्म की सुरक्षा के लिए वर्षों से काम कर रही हैं। बड़वानी (मध्यप्रदेश) की जागरूक महिला किसान ललिता मुकाती अपने खेतों में चीकू, सीताफल, कपास का रिकॉर्ड जैविक उत्पादन कर चुकी हैं। उनको राजधानी दिल्ली तक पहचान मिल चुकी है। वह अपनी ऑर्गेनिक खेती में वर्मी कम्पोस्ट, गौ मूत्र, छांछ, वेस्ट डी-कम्पोसर आदि का उपयोग करती हैं।