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जानिए कौन हैं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जो बनने जा रहे हैं देश के 50वें चीफ जस्टिस

जस्टिस चंद्रचूड़ 9 नवंबर को 50वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के रूप में शपथ ग्रहण कर सकते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ का दो साल का कार्यकाल होगा और वह 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होंगे. सुप्रीम कोर्ट के जज 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं.

जानिए कौन हैं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जो बनने जा रहे हैं देश के 50वें चीफ जस्टिस

Wednesday October 12, 2022 , 6 min Read

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) यूयू ललित ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर वरिष्ठतम न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नाम की केंद्र से मंगलवार को सिफारिश की. CJI ने अपने पत्र की प्रति जस्टिस चंद्रचूड़ को सौंपी है.

जस्टिस चंद्रचूड़ 9 नवंबर को 50वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के रूप में शपथ ग्रहण कर सकते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ का दो साल का कार्यकाल होगा और वह 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होंगे. सुप्रीम कोर्ट के जज 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं.

सरकार ने सात अक्टूबर को सीजेआई को एक पत्र भेजकर उनसे अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया का संचालन करने वाले प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार, निवर्तमान सीजेआई ने विधि मंत्रालय से पत्र मिलने के बाद अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने की प्रक्रिया शुरू कर दी.

ज्ञापन में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज को सीजेआई पद के योग्य माना जाता है और ‘‘उचित समय पर’’ न्यायपालिका के निवर्तमान प्रमुख की राय ली जाती है.

कौन हैं जस्टिस चंद्रचूड़

जस्टिस चंद्रचूड़ देश के सबसे लंबे समय तक सीजेआई रहे जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे हैं. उनके पिता 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक न्यायपालिका के शीर्ष पद पर काबिज रहे.

दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैम्पस लॉ सेंटर से एलएलबी की डिग्री ली और अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से ज्यूरिडिकल साइंस में डॉक्टरेट तथा एलएलएम की डिग्री ली.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट में लॉ प्रैक्टिस किया और जून 1998 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उन्हें एक वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने जस्टिस चंद्रचूड़ को जून 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पदस्थ किया और उन्हें उसी साल अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था. इसके बाद 29 मार्च 2000 तक वह बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे. वह मुंबई यूनिवर्सिटी में संवैधानिक कानून के गेस्ट प्रोफेसर भी रहे और महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के निदेशक भी थे.

जस्टिस चंद्रचूड़ 31 अक्टूबर, 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे. 13 मई 2016 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.

महत्वपूर्ण जजमेंट

असहमति को 'लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व' बताने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण फैसले दिए. जस्टिस चंद्रचूड़ अपने गहन निर्णयों और असहमतिपूर्ण विचारों के लिए जाने जाते हैं.

  • जस्टिस चंद्रचूड़ 9 जजों की उस संवैधानिक पीठ में शामिल थे जिसने जस्टिस केएस पुट्टस्वामी (रिटायर्ड) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य पर ऐतिहासिक फैसले में निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी.

  • 5 जजों की संवैधानिक पीठ का हिस्सा होते हुए उन्होंने आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 की संवैधानिक वैधता पर फैसला दिया. बहुमत जजों ने अधिनियम को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि इसे धन विधेयक के रूप में असंवैधानिक रूप से पारित किया गया.

  • नवतेज सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को सेम-सेक्स संबंधों को कानूनी बना दिया था. इस मामले में अपनी सहमति वाला फैसला देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह प्राचीन और औपनिवेशिक युग का कानून यौन अल्पसंख्यकों को छिपकर, डर में और दूसरे दर्जे के नागरिकों के रूप में रहने के लिए मजबूर करता है.

  • अप्रैल 2018 में वह  3 जजों की उस पीठ ने शामिल थे, जिसने जस्टिस बीएच लोया की मौत पर संदेह करने वाली और उसकी सीबीआई जांच की मांग याचिकाओं को खारिज कर दिया था. पीठ ने कहा था कि यह एक अचानक, प्राकृतिक मौत थी और इतिहास, क्लिनिकल फाइंडिंग्स और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किसी भी विसंगति की ओर संकेत देने वाला कोई सबूत नहीं था.

  • पिछले महीने, प्रजनन अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक के सुरक्षित और कानूनी गर्भपात के अधिकार का विस्तार करते हुए कहा कि राज्य के अनुचित हस्तक्षेप के बिना प्रजनन विकल्प चुनना प्रत्येक महिला का अधिकार है.

  • वह 5 जजों की सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने अयोध्या जमीन विवाद मामले का फैसला किया था.

  • सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी के प्रमुख के रूप में, उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान वर्चुअल सुनवाई को संभव बनाने और अदालत की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सुप्रीम कोर्ट में अदालत की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग संविधान पीठों द्वारा मामलों की सुनवाई से शुरू हुई.

  • देशभर की जेलों में बिना सुनवाई के बंद कैदियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा था कि एक दिन के लिए भी आजादी से वंचित करना बहुत है.

  • भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए पांच एक्टिविस्टों के अधिकारों को बरकरार रखने के लिए उन्होंने पीठ के बाकी सदस्यों से अलग राय रखी थी. उन्होंने न्यायपालिका को याद दिलाया कि अनुमानों के आधार पर असहमति की बलि नहीं दी जा सकती. जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी माइनॉरिटी ओपिनियन में लिखा था कि असहमति जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक है. लोगों को पसंद न आने मुद्दों को उठाने वालों को सताकर विपक्ष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता है.

  • एक संविधान पीठ के साथ असहमति व्यक्त करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने माना था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है और जनहित में मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है. हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने घोषणा की कि अदालत जल्द ही आरटीआई आवेदनों से निपटने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करेगी. उन्होंने माना था कि मुख्य न्यायाधीश और अदालत के न्यायाधीश संवैधानिक पद हैं, न कि पदानुक्रम (हाइरार्की).

  • केरल की हादिया मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति को धर्म चुनने और उसके सार्थक अस्तित्व के आंतरिक भाग के रूप में विवाह करने का अधिकार है.

  • जस्टिस चंद्रचूड़ ने विवाहित महिलाओं की यौन स्वायत्तता की हिमायत करके व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला भी दिया.

  • सबरीमाला मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला दिया कि माहवारी की उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में घुसने का अधिकार है. उन्होंने माना कि रीति-रिवाजों और प्रथाओं ने संविधान की प्रधानता को छीन लिया.

  • जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्थायी कमीशन के लिए योग्य महिला सेना और नौसेना शॉर्ट सर्विस अधिकारियों को खोजने के लिए सरकार की अनिच्छा की आलोचना की थी. उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि महिलाएं सेक्स स्टीरियोटाइप के रूप में पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमजोर हैं.