कारगिल विजय दिवस: 40 दिन बाद मिला था कारगिल में शहीद 25 वर्षीय बेटे का शव, देश आज भी इस मां के जज्बे को करता है सलाम
कैप्टन हनीफ उद्दीन कारगिल युद्ध के दौरान गोलियां लगने से शहीद हुए थे। उनका पार्थिव शरीर 40 दिनों से अधिक समय तक ठंड से जमा देने वाले तुरतुक इलाके में पड़ा रहा था।
जब मैंने 25 वर्षीय कारगिल शहीद कैप्टन हनीफ उद्दीन के बारे में एक फेसबुक पोस्ट शेयर की तो मुझे उम्मीद नहीं थी ये इतनी तेजी से वायरल हो जाएगी। कैप्टन हनीफ उद्दीन कारगिल युद्ध के दौरान गोलियां लगने से शहीद हुए थे। उनका पार्थिव शरीर 40 दिनों से अधिक समय तक ठंड से जमा देने वाले तुरतुक इलाके में पड़ा रहा था। मैंने ये पोस्ट इसलिए लिखी क्योंकि मैं कारगिल युद्ध पर अपनी किताब के लिए रिसर्च कर रही थी और कुछ समय पहले ही हनीफ की क्लासिकल सिंगर मां से मिलकर लौटी थी।
उस समय के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने श्रीमती हेमा अजीज से कहा था कि हनीफ का शरीर अभी भी वहां (तुरतुक) है क्योंकि दुश्मन लगातार गोलीबारी कर रहा है। इस पर हेमा अजीज ने कहा कि वह नहीं चाहतीं कि उनके बेटे के शव को निकालने की कोशिश करते हुए एक और सैनिक शहीद हो जाए। एक मां की इन बातों को जानकर मैं हिल गई थी।
मुझे यह भी पता चला कि उन्होंने हनीफ के पिता के निधन के बाद सिंगल मदर के रूप में अपने बेटों का पालन-पोषण किया था। जब उनके पिता का निधन हुआ था तब हनीफ 8 साल के थे। हनीफ की शहादत के बदले उन्होंने सरकार से पेट्रोल पंप लेने से मना कर दिया था बिल्कुल वैसे ही जैसे उन्होंने बचपन में हनीफ को स्कूल से वह मुफ्त युनिफॉर्म लेने से मना कर दिया था जो सिर्फ इसलिए दी जा रही थी क्योंकि उनके पिता नहीं थे।
तब उन्होंने हनीफ से कहा था, "अपने टीचर को कहना कि मेरी माँ काम करती है और वह मेरी युनिफॉर्म खरीदने का खर्च उठा सकती है।" उन्होंने हनीफ को समझाते हुए कहा कि वह लो इनकम कैटेगरी में नहीं आता है इसलिए उसे फ्री में युनिफॉर्म लेने का हक नहीं था। उनका साहस उतना ही अनुकरणीय और उतना ही अपार था जितना उनके बेटे का मैंने सोचा था।
मैं पांच साल से अधिक समय से इस तरह की कहानियां लिख रही हूं और ऐसा कभी नहीं हुआ है कि इतने सारे लोगों ने उनमें रुचि दिखाई हो। मैं पिछले तीन दिनों से अपने लैपटॉप पर बैठी एक के बाद एक लोगों के कमेंट्स पढ़ रही थी। तभी मैंने एक कमेंट में हनीफ की तस्वीर देखी। उनका सुंदर चेहरा कैमरे में मुस्कुरा रहा था, वह रेगिस्तान की रेत में एक हाथ को अपने सिर पर तकिए की तरह लगाए दूसरे हाथ की मुठ्ठी में रेत को हवा के झोकों में उड़ा रहे थे।
इसने मेरे दिल को बड़ा सुकून दिया, क्योंकि जिस भारत देश में करोड़ों की शादियों, फिल्मी सितारे, शर्मनाक घोटाले, भ्रष्ट राजनेता, और ऐसे दुष्ट नेता जो देश को जाति के नाम पर सांप्रदायिक और क्षेत्रीय रेखाओं में विभाजित करना चाहते हैं वहां लोग एक सैनिक के योगदान और उसकी माँ के बलिदान को पहचान रहे हैं।
एक युवा सैनिक, जिसकी मां हिंदू और पिता एक मुस्लिम थे उनके बारे में मेरी उस पोस्ट पर लोगों के अनगिनत कमेंट्स बताते हैं कि हममें से बहुत से लोग हैं जो इस संकीर्ण मानसिकता के बारे में नहीं सोचते हैं, जो कि काफी सुकून देने वाला है।
इस देश के लिए जान गंवाने वाले बहादुर सैनिक (अकेले कारगिल में 527) मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और हिंदू थे, लेकिन हमने कभी गौर नहीं किया क्योंकि हमारे लिए वे सभी सैनिक थे। वे हमारे लिए लड़ने चले गए क्योंकि खुद उन्होंने कभी ये नहीं सोचा। वे सभी भारतीय थे।
मैंने अपनी पोस्ट में यह नहीं लिखा कि जब कैप्टन हनीफ उद्दीन शहीद हुए तब वह 11 राजपुताना राइफल्स में तैनात थे। उनका युद्धघोष ‘राजा रामचंद्र की जय’ था।
मैं हनीफ के छोटे भाई समीर उद्दीन से पूरी तरह सहमत हूं। वे एक संगीतकार हैं। उन्होंने अपने खुद के सोशल मीडिया पोस्ट में हनीफ की कहानी साझा करते हुए कहा: “बहादुरी के किस्से दर्द और नुकसान से भरे होते हैं। अगर मनुष्य को सीमाओं, जाति, वर्ग या धर्म में विभाजित नहीं किया गया होता तो ऐसी कहानियों को बताने की जरूरत नहीं होती।”
इसे स्वीकार करें। हनीफ और अन्य कई युवा सैनिक, जो हर दिन ड्यूटी पर मरते हैं, वे सभी अभी भी हमारे आस-पास ही होते अगर हमने अपने बीच की इन दीवारों को बनाने के बजाय अपने मतभेदों को सुलझाना सीख लिया होता। और, बेशक, इन कहानियों को लिखना नहीं पड़ता। यह एक खुशहाल दुनिया होती।
-रचना बिष्ट
Edited by Ranjana Tripathi