इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ जख़्मी जानवरों की सेवा करने लगीं कस्तूरी
इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर रायपुर (छत्तीसगढ़) की कस्तूरी बल्लाल पिछले पांच वर्षों में साढ़े तीन हजार घायल जानवरों को रेस्क्यू करने के साथ ही पचपन लावारिस, जख्मी कुत्तों को घरेलू शेल्टर होम में शरण दिए हुए हैं। रायपुर के लोग उन्हे कराहते बेजुबान प्राणियों का मसीहा कहते हैं।
रायपुर (छत्तीसगढ़) में पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की संस्था 'पीपल फॉर एनिमल' की प्रमुख सहयोगी कस्तूरी बल्लाल पिछले पांच वर्षों में साढ़े तीन हजार घायल जानवरों को रेस्क्यू करने के साथ ही पचपन लावारिस कुत्तों को अपने घर में शरण दिए हुए हैं। रायपुर शहर के ज्यादातर लोग उनके टेंपरेरी शेल्टर होम से कत्तई अपरिचित नहीं, क्योंकि वह सैकड़ों मूक, घायल प्राणियों का ठिकाना जो है। कहीं बाहर जाकर कभी जैसे ही कस्तूरी अपने घरेलू शेल्टर होम लौटती हैं, वे बेजुबान अपनी मां की तरह पूरे दिलोजान से उन पर उमड़ पड़ते हैं। अब तो ऐसे प्राणियों की हिफाजत में अस्पताल खोलने के लिए राज्य सरकार ने कस्तूरी को चंदखुरी में तीन एकड़ जमीन भी आवंटित कर दी है, जिसकी रजिस्ट्री का खर्च स्वयं मेनका गांधी ने चुकाया है। रायपुर के लोग उनको कराहते बेजुबान प्राणियों का मसीहा कहते हैं।
विजय बल्लाल के घर अत्यंत सामान्य परिवार में पैदा हुईं कस्तूरी बल्लाल बीस साल की उम्र में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के पहले से मूक जानवरों की सेवा-सुश्रुषा करती आ रही हैं। बीमार, जख्मी और लावारिस पशुओं की सेवा के लिए उन्होंने इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी ताकि उनकी देखभाल के लिए ज्यादा वक़्त मिल सके। वह लगभग अस्सी सहयोगियों की टीम के साथ पिछले पांच वर्षों से आवारा, बीमार कुत्तों के खाने-पीने और इलाज के लिए पैसों के इंतजाम में लगी रहती हैं।
वह कहती हैं- 'ज़िंदगी के प्रति हमेशा अपना नज़रिया सकारात्मक रखिए। जानवरों और पक्षियों का प्यार सच्चा प्यार है। उनका प्यार नि:स्वार्थ है। जानवर और पक्षी बहुत भावुक, आज्ञाकारी, उदार और वफ़ादार होते हैं। मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा अंतिम सांस तक इन मूक पशुओं के लिए समर्पित रहेगा।'
कस्तूरी बताती हैं कि जानवरों से उनका लगाव बचपन में ही हो गया था। उनके घर में एक डॉग था और वह अक्सर उसे बाहर ले जाया करती थीं। उनके पापा उन्हे जंगल घुमाने ले जाया करते थे, जहाँ तरह-तरह के जानवरों को बेहद करीब से देखने का मौका मिलता था। उनके अंदर जानवरों के प्रति संवेदना हमेशा से रही थी। वह जब 12 साल की थीं, तब भी बीमार जानवरों की देख-रेख किया करती थीं। जानवरों के प्रति उनकी इस संवेदना को देख कर उनके दादाजी उन्हे अक्सर मेनका गांधी को चिट्ठी लिखने के लिए कहा करते, तो वह भी उन दिनो मेनकाजी को खूब चिट्ठियाँ लिखती रहती थीं। वर्ष 2013 में उनको मेनका गांधी की संस्था पीपल फॉर एनिमल्स एवं उनके कार्यों के बारे में पहली बार पता चला था। कस्तूरी बताती हैं, मेनका गांधी ने तय किया है कि वह अपनी ‘मिका’ पेंटिग्स को नीलाम कर पैसे जुटाएंगी, ताकि सरकार से एलाट जमीन पर जल्द से जल्द एनिमल शेल्टर होम खड़ा हो सके। निर्माण कार्य शुरू भी हो चुका है।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म करते ही उनको अहमदाबाद में नौकरी मिल गयी थी लेकिन 2015 में जॉब छोड़ कर उन्होंने अपने राज्य के प्राणियों के लिए काम करने का फैसला लिया। उसी साल रायपुर में पीएफए (पीपल फॉर एनिमल) की ब्रांच खुली, जिसकी वह इस वक़्त सचिव हैं। जब वह रायपुर लौटी थीं, जीवन चलाने के लिए पैसों की जरूरत तो रहती थी, सो एक बार फिर एक स्थानीय कंपनी को उन्होंने ज्वॉइन कर लिया लेकिन कुछ दिन बाद लावारिस पशु-जानवरों के लिए वह पूरा समय फ्रीलासिंग में देने लगीं। अधिकाधिक लोगों को तेजी से पीएफए से जोड़ने में जुट गईं। कस्तूरी कहती हैं, बहुत सारे लोग नहीं जानते कि भारतीय पोल्ट्री में पाई जाने वाली मुर्गियां व अंडे बहुत ही खराब गुणवत्ता के होते हैं। मुर्गियों के साथ अत्याचार होता है, जो कि हिंसा की श्रेणी में आता है। उनके मांस में रसायन मिला दिया जाता है। एंटीबायोटिक दिए जाते हैं, जो चिकन और अंडों के माध्यम से लोगों के शरीर में पहुंच जाते हैं। उसका घातक असर होता है। ऐसी हिंसा के खिलाफ हमे जागरूक होना होगा।
पिछले पांच वर्षों में कस्तूरी सौ से अधिक लोगों, ज्यादातर युवाओं को पीएफए से जोड़ चुकी हैं। उनकी ही मदद से वह अब तक 3500 से भी अधिक जानवरों को रेस्क्यू कर के सफलता पूर्वक उनका इलाज व ऑपरेशन करा चुकी हैं। इसी तरह वह अवेयरनेस के लिए 'मिशन ज़ीरो' का भी नेतृत्व कर रही हैं। 'मिशन ज़ीरो' की ओर से जानवरों के प्रति क्रूरता बरतने वालों को टारगेट कर उन्हे उदारता बरतने का प्रशिक्षण दिया जाता है। स्कूलों में बच्चों को बताया जाता है कि वे राह चलते जानवरों को बेवजह परेशान न किया करें। पुलिस को उनके अधिकारो के बारे में ट्रेनिंग दी जाती है कि कैसे क्रूरता करने वालों पर कानून के तहत एक्शन लिया जाए। इस मिशन के तहत ही पीएफए संगठन अब तक सैकड़ो भारतीय नस्ल के श्वानों को गोद ले चुका है। पीएफए उनके नेतृत्व में समय समय पर पप्पी एडाप्शन कैंप आयोजित करता रहता है।