देश में बरसों से अटके पड़े थे ये सुधार, मोदी सरकार ने लागू कर दिए
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर Modi @ 20 - Dreams Meet Delivery बुक लॉन्च हुई है। इस किताब में लता मंगेशकर, अमित शाह, पीवी सिंधू, अनंत नागेश्वरन, अनुपम खेर, अजीत डोवाल के साथ-साथ बिजनेस और इकोनॉमी जगत की जानी मानी हस्तियों ने भी अपने विचार लिखे हैं...
भारत में पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक सुधारों (Economic Reforms) की लहर चल रही है। फिर चाहे बात टैक्स ही हो, रियल एस्टेट की हो या फिर शिक्षा की। कुछ आर्थिक सुधार जैसे 4 लेबर कोड लागू होने वाले हैं, तो कुछ विचाराधीन हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) पर 'मोदी एट 20: ड्रीम्स मीट डिलीवरी' (Modi @ 20 - Dreams Meet Delivery) बुक लॉन्च हुई है। इस किताब में लता मंगेशकर, अमित शाह, पीवी सिंधू, अनंत नागेश्वरन, अनुपम खेर, अजीत डोवाल के साथ-साथ बिजनेस और इकोनॉमी जगत की जानी मानी हस्तियों ने भी अपने विचार लिखे हैं। किताब में बताया गया है कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात की सत्ता से लेकर केन्द्र की सत्ता में आने तक और उसमें बने रहने के दौरान देश में गवर्नेंस और आर्थिक मोर्चे पर क्या-क्या सुधार देखने को मिले।
भारतीय अर्थशास्त्री और नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया (Arvind Panagariya) ने भी किताब में योगदान दिया है। पनगढ़िया ने कुछ ऐसे सुधारों का भी जिक्र किया है, जिन्हें लागू करने के बारे में 10 से 20 सालों तक सिर्फ बातें ही हो रही थीं लेकिन कोई भी पुरानी सरकार उन्हें लागू करने का साहस नहीं दिखा पाई। नरेन्द्र मोदी ने न केवल उन सुधारों को लागू किया बल्कि उनकी पूरी जिम्मेदारी भी ली। आइए डालते हैं एक नजर बरसों से अटके पड़े उन प्रमुख सुधारों पर जिन्हें मोदी सरकार ने लागू किया...
मॉडर्न बैंकरप्सी लॉ
मोदी राज का पहला बड़ा सुधार मॉडर्न बैंकरप्सी लॉ है, जिसे इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के जरिए लागू किया गया। पहली बार ऐसा हुआ कि कर्जदारों के भुगतान में डिफॉल्ट करने पर कर्जदाता उन पर बैंकरप्सी कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर सकते हैं और एक निश्चित वक्त के अंदर समाधान की आशा रख सकते हैं। वैसे तो यह निश्चित वक्त 180 दिनों का है लेकिन यह और 90 दिनों तक विस्तारित भी हो सकता है। हालांकि यह डेडलाइन हमेशा पूरी नहीं हो पाती लेकिन समाधान की रफ्तार और रिकवरी की मात्रा में उछाल आया है, जो लंबे वक्त से भारत में असंभव लग रहा था।
अतीत में जब समाधान प्रक्रिया पूरी होने में सालों लग जाते थे, जमीन को छोड़कर कर्जदार के बाकी एसेट बेकार हो जाते थे। समाधान में तेजी ने महत्वपूर्ण मूल्य की रिकवरी के साथ-साथ दिवाला प्रक्रियाओं में फंसे एंटरप्राइज के रिवाइवल का भी मार्ग प्रशस्त किया। बैंकरप्सी कोर्ट में कर्जदाताओं द्वारा किए जाने वाले मुकदमों ने कर्जदारों द्वारा भुगतानों में देरी के कॉरपोरेट कल्वर को भी खत्म किया। दीर्घावधि में ये चीजें देश के वित्तीय सेक्टर को काफी हद तक मजबूत करेंगी।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स
मोदी सरकार ने केन्द्र व राज्य सरकारों की ओर से लगाए जाने वाले ढेर सारे अप्रत्यक्ष करों को हटाकर एक सिंगल, राष्ट्रव्यापी वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू किया। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क को VAT से रिप्लेस किए जाने की कवायद 1980 के दशक में ही शुरू हो गई थी। इतना ही नहीं किसी कमोडिटी पर एक सिंगल राष्ट्रव्यापी VAT लगाने का विचार दो दशक पहले साल 2000 में ही जन्म ले चुका था। लेकिन न ही वाजपेयी सरकार और न ही यूपीए सरकार इस कठोर सुधार को लागू करने के लिए जरूरी सर्वसम्मति जुटा पाई। मोदी सरकार को इसे अमली जामा पहनाने के लिए ठोस कोशिशें और राज्य सरकारों के साथ सावधानी भरी बातचीत करनी पड़ी।
GST ने ढेर सारे करों वाली पुरानी प्रणाली से जुड़ी विकृति की आर्थिक लागत को दूर किया। GST ने अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को काफी हद तक सरल बनाया, कर चोरी को मुश्किल बनाया और ज्यादा से ज्यादा एंटरप्राइजेज को टैक्स के दायरे में लाना शुरू किया। यह एक ऐसा टैक्स है, जिसे देश का लगभग हर नागरिक भर रहा है। लंबी अवधि में यह रेवेन्यु का प्रमुख स्त्रोत बन सकता है। पहले अलग-अलग राज्यों में कई तरह के अलग-अलग करों की वजह से सड़क के रास्ते सामान की आवाजाही धीमी पड़ जाती थी। परिवहन मार्गों पर विभिन्न चेक पोस्ट पर भ्रष्टाचार भी चलता था। लेकिन अब आलम यह है कि सिंगल राष्ट्रव्यापी जीएसटी के लागू हो जाने के बाद इसका भुगतान डिजिटली हो जाता है और करदाता व टैक्स कलेक्टर के बीच बेहद मामूली बातचीत की जरूरत होती है। जीएसटी ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में और सामान के परिवहन में तेजी लाने में मदद की है, विशेषकर तब, जब सामान को कई राज्यों की सीमाओं से गुजरना होता है।
कॉरपोरेट प्रॉफिट टैक्स में कमी और इसे सरल बनाया जाना
भारत में कॉरपोरेट प्रॉफिट टैक्स की दरें अन्य देशों की तुलना में काफी उच्च हैं। इसके अलावा कई तरह की छूट भी हैं, जो भ्रष्टाचार और कर चोरी के लिए रास्ते खोलती हैं। उच्च टैक्स मतलब कम बची हुई कमाई और नतीजा कॉरपोरेट सेविंग्स की कम मात्रा। मोदी सरकार ने कॉरपोरेट प्रॉफिट टैक्स की दरों को काफी हद तक सरल बनाया और कम किया। सरकार ने दर को मैन्युफैक्चरिंग में नए निवेशों के लिए लगभग 35 फीसदी से घटाकर 17 फीसदी कर दिया। वहीं अन्य निवेशों के लिए इसे घटाकर 25.2 फीसदी पर ले आया गया। साथ ही किसी भी छूट की इजाजत नहीं दी गई। इस सुधार ने कई जटिल और मनमानी छूटों को खत्म कर दिया। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप प्रभावी टैक्स रेट को लागू किया। कॉरपोरेट प्रॉफिट टैक्स रेट में कमी आई तो कॉरपोरेट सेविंग्स और निवेश बढ़े। नए मैन्युफैक्चरिंग निवेशों पर कम टैक्स रेट कुल निजी निवेश में इस सेक्टर की हिस्सेदारी बढ़ाने में मददगार होगी।
इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 का अंत
भारत में जिन क्षेत्रों में सुधार वाले एरिया का पता लगाना मुश्किल है, उनमें मेडिकल एजुकेशन भी शामिल है। यूपीए सरकार ने बार-बार वैकल्पिक नियामकीय संघ के जरिए बेहद ज्यादा भ्रष्ट मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को रिप्लेस करने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही। लेकिन मोदी सरकार ने मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 को पूरी तरह से नए कानून के साथ सफलतापूर्वक रिप्लेस किया। मोदी सरकार ने मेडिकल एजुकेशन का संचालन करने वाली नियामकीय व्यवस्था को आधुनिक बनाया और सभी स्तरों पर इसके तेज विस्तार के रास्ते की कई रुकावटों को दूर किया। साथ ही होम्योपैथी और इंडियन सिस्टम्स आॅफ मेडिसिन में शिक्षा के मामले में नियामकीय प्रणालियों का संचालन करने वाले पुराने कानूनों को नए कानूनों से रिप्लेस किया।
पुरानी व्यवस्था में एमसीआई, नए मेडिकल कॉलेज और मौजूदा मेडिकल कॉलेजेस में छात्रों की संख्या के विस्तार पर कड़ा नियंत्रण रखता था। नतीजा, डॉक्टरों की सप्लाई कई दशकों तक धीमी गति से बढ़ी और देश की जरूरत की तुलना में कम रही। एमसीआई के खत्म होने के बाद से सरकार मेडिकल कॉलेज के विस्तार में तेजी लाने में सफल रही है। नए कानून ने बेसिक प्राइमरी हेल्थकेयर के क्वालिफाइड प्रैक्टिशनर्स को तैयार करने के लिए छोटे कोर्सेज के रास्ते भी खोले हैं। मीडियम और लॉन्ग टर्म में इससे ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में अनक्वालिफाइड प्रैक्टिशनर्स को क्वालिफाइड प्रैक्टशनर्स से रिप्लेस करने में मदद मिलेगी।