जब IL&FS की वजह से पैदा हुआ था नकदी संकट, बचाने के लिए मोदी सरकार को देना पड़ा था दखल
हाल ही में नरेन्द्र मोदी पर 'मोदी एट 20: ड्रीम्स मीट डिलीवरी' बुक लॉन्च हुई है। इस किताब में लता मंगेशकर, अमित शाह, पीवी सिंधू, अनंत नागेश्वरन, अनुपम खेर, अजीत डोवाल के साथ-साथ बिजनेस जगत की कई बड़ी हस्तियों ने भी अपने विचार लिखे हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर 'मोदी एट 20: ड्रीम्स मीट डिलीवरी' (Modi @ 20 - Dreams Meet Delivery) बुक लॉन्च हुई है। इस किताब में लता मंगेशकर, अमित शाह, पीवी सिंधू, अनंत नागेश्वरन, अनुपम खेर, अजीत डोवाल के साथ-साथ बिजनेस जगत की कई बड़ी हस्तियों ने भी अपने विचार लिखे हैं। जैसे कि उदय कोटक, नंदन नीलेकणि, सुधा मूर्ति आदि। किताब में बताया गया है कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात की सत्ता से लेकर केन्द्र की सत्ता में आने तक और उसमें बने रहने के दौरान देश में गवर्नेंस और आर्थिक मोर्चे पर क्या-क्या सुधार देखने को मिले।
किताब में कुछ ऐसे वाकयों का भी जिक्र है, जब कॉरपोरेट वर्ल्ड से जुड़े मामलों में केन्द्र की मोदी सरकार को दखलअंदाजी कर कड़े फैसले लेने पड़े। जैसे कि IL&FS वाला मामला, जिसमें सरकार को कंपनी का बोर्ड भंग कर एक नए बोर्ड का गठन करना पड़ा। जी हां, हम उसी IL&FS की बात कर रहे हैं, जिसमें साल 2018 में सामने आए स्कैम के बाद भारत के फाइनेंशियल सर्विसेज मार्केट में लिक्विडिटी संकट छा गया। आइए जानते हैं बैंकर उदय कोटक (Uday Kotak) ने किताब में IL&FS मामले और इसमें मोदी सरकार की भूमिका को कैसे बताया है...
1987 में शुरू हुई एक कंपनी
IL&FS का पूरा नाम इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज है। कंपनी की शुरुआत इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रॉजेक्ट्स की फंडिंग के उद्देश्य से साल 1987 में हुई थी। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, HDFC लिमिटेड, SBI, LIC, ओरिक्स कॉरपोरेशन जापान और अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी इसके प्रमुख शेयरहोल्डर थे। 30 सालों के अंदर IL&FS फाइनेंशियल सेक्टर का एक बड़ा नाम बन गई। 11 देशों में मौजूदगी, बिजनेस की 12 कैटेगरी में 347 एंटिटीज के स्ट्रक्चर के साथ IL&FS का काम चल रहा था।
फिर आया साल 2018
साल 2018 आते-आते IL&FS पर कर्ज का स्तर काफी उच्च हो चुका था। साल 2018 के सितंबर माह तक ग्रुप की फंडेड और नॉन फंडेड बैलेंस शीट 99000 करोड़ रुपये के पार चली गई। जुलाई-सितंबर तिमाही में IL&FS की दो सहायक कंपनियों में नकदी संकट पैदा हुआ और यह इतना बड़ा हो गया कि कंपनियों ने कर्ज के भुगतान और इंटर कॉरपोरेट डिपॉजिट्स के मामले में डिफॉल्ट करना शुरू कर दिया। चूंकि IL&FS कई सरकारी प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हुई है और इसका ज्यादातर कर्ज सरकारी कंपनियों पर बकाया है, लिहाजा बार-बार डिफॉल्ट होने से कई दूसरी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFCs) का भी कारोबार प्रभावित हुआ और वे वित्तीय संकट का सामना करने लगीं।
IL&FS के फाउंडर, पूर्व चेयरमैन और पूर्व सीईओ रवि पार्थसारथी (Ravi Parthasarathy) के 1 लाख करोड़ रुपये के IL&FS घोटाले में फंसे होने की भी बात सामने आई। रवि पार्थसारथी के नेतृत्व में कंपनी को तत्कालीन मैनेजमेंट ने घोटाला और जालसाजी करने के व्हीकल के रूप में इस्तेमाल किया। IL&FS का फेल होना, इसके मैनेजमेंट, बोर्ड इंस्टीट्यूशनल शेयरहोल्डर्स, ऑडिटर्स, क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज और रेगुलेटर्स का फेल होना रहा। पार्थसारथी ने 25 साल IL&FS का संचालन संभाला। IL&FS घोटाला भारत के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में गिना जाता है।
फिर सरकार ने दिया दखल
इसके बाद 1 अक्टूबर 2018 को केन्द्र सरकार की IL&FS मामले में भूमिका शुरू हुई। सरकार ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की ओर से एक निर्देश के जरिए IL&FS का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। सरकार ने कंपनी के बोर्ड को भंग कर दिया और बैंकर उदय कोटक की अगुवाई में एक नए बोर्ड का गठन किया। नए बोर्ड पर जिम्मेदारी थी कि वह देश के फाइनेंशियल सेक्टर में पैदा हुए संकट को दूर करे और IL&FS ग्रुप द्वारा क्रिएट किए गए नेशनल एसेट्स को प्रोटेक्ट करे।
नए बोर्ड को मोदी सरकार का मिला पूरा-पूरा सहयोग
उदय कोटक कहते हैं कि नए बोर्ड ने गठन के तीन साल के अंदर सभी हितधारकों से ज्यादा से ज्यादा रिकवरी के लिए योजना बनाई। ग्रुप इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन के लिए कानूनी फ्रेमवर्क की कमी ने अतिरिक्त चुनौती पैदा की। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार के पूरे-पूरे सहयोग के चलते ग्रुप की समाधान प्रक्रिया संभव हो सकी। सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के सहयोग व खुले दिमाग वाली सोच ने न केवल कर्जदारों से उच्च रिकवरी में मदद की बल्कि नए बोर्ड की आगे बढ़ने में भी मदद की।