मॉनसून में होने वाले फंगल इन्फेक्शन से जुड़े 4 मिथकों की सच्चाई जानें – आखिर क्यों होती है खुजली?
फंगल इन्फेक्शन के बारे में चार सामान्य गलतफहमियाँ जिसके बारे में आपको जानने की ज़रूरत है:
जहाँ एक ओर मॉनसून से हमें गर्मी से राहत मिलती है वहीं दूसरी ओर बारिश का मौसम अपने साथ कई संक्रमण और बीमारियाँ भी लेकर आता है. इस मौसम में फंगल इन्फेक्शन का होना बहुत ही आम बात है.
फंगल इन्फेक्शन के बारे में चार सामान्य गलतफहमियाँ जिसके बारे में आपको जानने की ज़रूरत है:
मिथक 1: त्वचा की इस प्रकार की समस्याओं के उपचार के लिए घरेलू औषधियाँ और खुद दवाई लेना पर्याप्त है
सच्चाई: फंगल इन्फेक्शन का उपचार करना मुश्किल होता जा रहा है और इसलिए उपयुक्त और समय रहते उपचार के समाधान आवश्यक हैं. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. अल्का गुप्ता, डर्मैटोलॉजिस्ट, डॉ. अल्का गुप्ता क्लिनिक, दिल्ली, ने कहा, “भारत की गर्मी और नमीयुक्त वातावरण के कारण देश में फंगल इन्फेक्शन के मामले बढ़ते जा रहे हैं. जैसे-जैसे लोग इस समस्या से अपने स्तर पर निपटने का प्रयास कर रहे हैं वैसे वैसे लोगों द्वारा खुद ही दवाइयाँ लेने का चलन बढ़ रहा है और एंटी-फंगल दवाइयों से जुड़ी आवश्यक चीज़ों का पालन नहीं हो रहा है. यह महत्वपूर्ण है कि समय से दवाईयां लेने और जीवनशैली से जुड़े उपायों की जानकारी पाने के लिए डॉक्टर से परामर्श करें क्योंकि फंगल इन्फेक्शन से निपटने के लिए यह बहुत ही ज़रूरी और अहम है.”
मिथक 2: इन्फेक्शन गायब होना शुरू होने पर आप उपचार रोक सकते हैं
इस मिथक को तोड़ते हुए डॉ. अश्विनी पवार, मेडिकल अफेयर्स डायरेक्टर, एबॅट इंडिया ने कहा, “हमारा मानना है कि विज्ञान आधारित उचित समाधानों के साथ बेहतर स्वास्थ्य के लिए सहायता करना महत्वपूर्ण है. फंगल इन्फेक्शन का प्रभावी तरीके से उपचार करने के लिए लोगों को उचित तरीके से एंटी-फंगल उपचार योजना का पालन करना चाहिए. इसमें डॉक्टर द्वारा बताई गई अवधि के लिए दवाईयों को लेना शामिल है जो बहुत महत्वपूर्ण है, भले ही शुरूआती चरण में लक्षणों का दिखना गायब हो गया हो. उपचार का पालन करने से इन्फेक्शन को उचित रूप से दूर करने में सहायता मिलती है और लोगों को अपनी सेहत की सुरक्षा करने और अधित सेहतमंद और बाधामुक्त जीवन जीने में सहायता मिलती है.”
मिथक 3: फंगल इन्फेक्शन केवल गर्मी के मौसम में होते हैं
सच्चाई: भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में, गर्मी के महीने के बाद नमी और सीलन के साथ आने वाला मॉनसून कई प्रकार के फंगल इन्फेक्शन को आकर्षित करता है.
इसके साथ ही देश के जलवायु की विविधता (जैसे समुद्र से निकटता या दूरी) के कारण इन्फेक्शन के प्रकारों में क्षेत्रीय भिन्नता पाई जाती है. फंगस की एक विशिष्ट प्रजाति टी. मेटाग्रोफाइट्स, जो टीनिया या रिंगवर्म (दाद,खुजली) का कारण बनते हैं, अक्सर मुंबई और कोलकाता जैसे तटवर्ती शहरों की नमी वाले वातावरणों में पाए जाते हैं. जबकि, एथलीट्स फुट, जोक इच और रिंगवर्म (टी. रूब्रम) अक्सर सामान्य रूप से दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद जैसे ग़ैर-तटवर्ती शहरों में पाए जाते हैं.
मिथक 4: केवल बच्चों को ही फंगल इन्फेक्शन होता है
सच्चाई: फंगल इन्फेक्शन किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है. आमतौर पर 11 से 40 वर्ष की उम्र वाले व्यक्तियों में इन्फेक्शन की दर अधिक पाई जाती है.
इसके अलावा, भारत में अधिकतर पुरूषों में इन्फेक्शन के मामले पाए जाते हैं और महिलाओं की तुलना में पुरूषों के इन्फेक्शन से प्रभावित होने की संभावना दोगुना से अधिक होती है. युवा पुरूषों में यह संभवत: ज़्यादा शारीरिक गतिविधि के कारण हो सकता है जिसकी वजह से उन्हें पसीना अधिक आता है. महिलाओं में इसके कम होने का कारण डॉक्टरों से परामर्श करने में उनकी हिचकिचाहट हो सकता है. हालांकि, महिलाओं और बच्चों सहित सभी समूहों में इस प्रकार के इन्फेक्शन के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह सीमाएं धुंधली होती लग रही हैं.
रिगंवर्म यानी दाद (फंगल इन्फेक्शन से होने वाले लाल चकत्ते) से लेकर एथलीट्स फूट (जिससे त्वचा में खुजलाहट के साथ पपड़ीदार चकत्ते आते हैं) और जॉक इच/खुजली (लाल रंग और खुजलाहट वाले चकत्ते जो रिंग के आकार के हो सकते हैं) तक, इस बात की संभावना है कि आपने इसमें से किसी न किसी फंगल इन्फेक्शन का अनुभव किया होगा क्योंकि भारत की आबादी के 61.5% लोग इन समस्याओं से प्रभावित होते हैं. इस प्रकार के इन्फेक्शन को डर्मेटोफाइटोसिस कहा जाता है. यह तब होता है जब डर्मैटोफाइट्स, एक प्रकार के फंगस (कवक) का समूह, को बढ़ने के लिए केराटिन की ज़रूरत होती है और यह व्यक्ति के बालों, त्वचा या नाखूनों को प्रभावित करते हैं. यह नमी और गीले वातावरण में पनपते हैं और विभिन्न तरीकों से तेज़ी से फैलते हैं जैसे – एक-दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आने से, तौलिया या कंघी या ब्रश, सार्वजनिक स्विमिंग पूल में शॉवर के साझा करने से या कठोर व्यायाम के दौरान निकलने वाले पसीने से.
फंगस और बैक्टीरिया के पैदा होने और बढ़ने के लिए नमी एक प्रकार का अनुकूल वातावरण तैयार करती है और इस वजह से त्वचा से जुड़ी समस्याएं बहुत ही सामान्य हो जाती हैं. हाइजीन का ध्यान नहीं रखने और भीडभाड़ वाले इलाकों की वजह से इसका फैलाव अधिक होता है. जहाँ एक ओर मॉनसून के दौरान इन फंगल इन्फेक्शन का होना बहुत अधिक प्रचलित हो जाता है, वहीं दूसरी ओर इनके साथ कई मिथक जुड़े हुए हैं. इसलिए इन मिथकों को लेकर भ्रम दूर करना और फंगल इन्फेक्शन की रोकथाम, पहचान और उपचार करना महत्वपूर्ण हो जाता है.
फंगल इन्फेक्शन के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है और इसलिए खुद की सुरक्षा के लिए कदम उठाना महत्वपूर्ण है. इसमें शामिल है अच्छी तरह से साफ-सफाई रखना और फंगल इन्फेक्शन का संदेह होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श कर उपचार करवाना. जानकारी हासिल कर और अग्रसक्रिय रूप से उपायों को अपनाकर कर हम इन संक्रमण को फैलने से रोकने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं और खुद को और अपने आसपास के लोगों को स्वस्थ रख सकते हैं.
Edited by रविकांत पारीक