कैसे 5 रुपये के जेल पेन से लिंक ने लिखी अपनी सफलता की कहानी
कोलकाता स्थित लिंक पेन एंड प्लास्टिक (Linc Pen & Plastics) के प्रबंध निदेशक दीपक जालान इस बारे में बाताते हैं कि क्यों उनके पिता ने कंपनी की स्थापना की, कैसे इनोवेशन ने इसे 45 वर्षों तक जिंदा रखा और इसे 400 करोड़ रुपये का कारोबार करने में सक्षम बनाया।
क्या हमें अब भी किसी पेन की जरूरत है?
दीपक जालान से यह सवाल पूछें तो जवाब आता है: "चाहे हम कितना भी डिजिटल हो जाएं, कलम और कागज कभी भी फैशन से बाहर नहीं होंगे।" दूसरी पीढ़ी के उद्यमी, दीपक 1976 से बॉलपॉइंट पेन बनाने वाली कोलकाता की कंपनी लिंक पेन एंड प्लास्टिक के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।
यह कंपनी मार्कर, ज्यामिति बॉक्स, पेंसिल और रबड़ सहित कई स्टेशनरी वस्तुएं बनाती है। कंपनी की स्थापना दीपक के पिता सूरज मल जालान द्वारा की गई थी, वे 1960 में कॉलेज की डिग्री हासिल करने के लिए राजस्थान से कोलकाता चले गए थे। सूरज मल की उद्यमी महत्वाकांक्षाएं भी थीं और वे आइडियाज की तलाश में थे।
एक कॉलेज के छात्र के रूप में, पेन उनके जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा था। लेकिन फाउंटेन पेन और बॉलपॉइंट पेन को छोड़कर बहुत सारे विकल्प नहीं थे। फाउंटेन पेन जोकि महंगा भी था और अक्सर स्याही के लीक होने के चलते इस्तेमाल करने के लिए गन्दा माना जाता था, जबकि अच्छे बॉलपॉइंट पेन की कीमत लगभग 10 रुपये थी। सूरज मल सस्ती कलम बनाना चाहते थे।
दीपक बताते हैं, "जब मेरे पिता ने व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया, तो विल्सन पेन (फाउंटेन पेन बनाने वाला) नाम का एक ब्रांड था, जिसकी लोगों को लालसा थी। लेकिन जैसा कि इसके पेन महंगे थे, इसलिए कई उन्हें खरीद नहीं सकते थे। इससे मेरे पिता ने बॉलपॉइंट पेन कंपनी शुरू करने की सोची।”
जैसा कि लिंक ने अपने 45 वें वर्ष में कदम रखा है, उसने वित्त वर्ष 2020 में 400 करोड़ रुपये का कारोबार किया है और यह शेयर मार्केट में एक सूचीबद्ध कंपनी है। इसके उत्पाद पूरे देश में 1.5 लाख रिटेल स्टोर में उपलब्ध हैं, जबकि निर्यात 40 देशों तक पहुंचता है। इसके अलावा कंपनी के सहायक ब्रांड बेन्सिया, डेली, पेंटोनिक, मार्कलाइन और अन्य में भी बाजार में उपस्थिति हैं।
एक पेन को अच्छा क्या बनाता है?
दीपक का कहना है कि कलम की क्वालिटी उनकी मेटल टिप (धातु की नोक) और स्याही पर निर्भर करती है। 1960-70 के दशक में, भारत में दोनों का अभाव था।
वे कहते हैं, "इन क्वालिटी मटेरियल की कमी थी, इसलिए कई कंपनियां अच्छे पेन नहीं बना रही थीं। मेरे पिता ने दो दोस्तों के साथ भागीदारी की, जो उस समय कलम उद्योग में काम कर रहे थे, उन्होंने स्विट्जरलैंड से धातु की नोक और जर्मनी से स्याही का आयात किया, और बॉल पेन का निर्माण शुरू किया।"
सूरज मल ने अपनी बचत के कुछ हजार रुपये निवेश किए और कोलकाता में एक छोटी मैन्युफैक्चरिंग युनिट से 2 रुपये में पहली लिंक बॉल पेन लॉन्च की। धीरे-धीरे, लिंक की कलम की रेंज एक मुट्ठी भर हो गई और वे पश्चिम बंगाल में उपलब्ध थे।
बाजार के साथ बढ़िया तालमेल
दीपक 1980 के दशक की शुरुआत में व्यवसाय में शामिल हो गए, तब वह 18 वर्ष के थे। 1986 में, उन्होंने एक फुल मैन्युफैक्चरिंग युनिट की स्थापना की। लिंक ने 1995 में अपनी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) को और अधिक वित्तीय संसाधनों के लिए लॉन्च किया, ताकि ये और अधिक रिस्क ले सके।
वे कहते हैं, "आईपीओ लॉन्च करने के तुरंत बाद, हमने अपने बॉल पेन का निर्यात शुरू किया और दक्षिण कोरिया में प्रवेश किया। यह वह समय था जब भारत में जेल पेन लोकप्रिय होने लगे थे।"
स्कूल आमतौर पर छात्रों को बॉल पेन के बजाय पानी आधारित फाउंटेन इंक पेन से लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जो तेल आधारित स्याही का उपयोग करते हैं। चूंकि फाउंटेन पेन का उपयोग करना गड़बड़ भरा था, सूरज मल और उनके बेटे ने जेल पेन बनाने का फैसला किया, जिसमें पानी आधारित स्याही का भी इस्तेमाल किया गया था।
जब एड पेन इस श्रेणी में अग्रणी थे तब 2002 में, Linc ने अपनी जेल पेन रेंज, हाई स्कूल पेन लॉन्च की। जहां दीपक के प्रतिद्वंद्वियों के जेल पेन की कीमत 20 रुपये और उससे अधिक थी, तो वहीं जापान से आयातित स्याही के साथ लिंक की कीमत 10 रुपये थी।
यहां तक कि जब भारत के उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में लिंक ने अपनी पहुंच को व्यापक बना लिया था, तब पिता-पुत्र की जोड़ी ने अर्ध-ग्रामीण और ग्रामीण क्षेत्रों में कलमों को उपलब्ध कराकर अपने बाजार को और गहरा करने की कोशिश की।
इसलिए उन्होंने 5 रुपये में लिंक ओशन जेल पेन लॉन्च किया, जो दीपक के मुताबिक, इतने कम दाम में बेचा जाने वाला पहला जेल पेन था। इस कदम के अन्य अप्रत्याशित लाभांश थे।
दीपक बताते हैं, 'हमने बाजार में गहराई तक जाने के लिए लिंक ओशन जेल पेन को लॉन्च किया, लेकिन यह हमारे लिए सबसे बड़ा हिट साबित हुआ। हमारे सर्वेक्षण से पता चला कि हर तीन छात्रों में से एक, न केवल ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में, बल्कि शहरों में भी, इस कलम का उपयोग कर रहा था।"
इस कम कीमत वाले जेल पेन के लॉन्च के बाद लिंक एक प्रमुख ब्रांड बन गया। अब, यह गुजरात के उम्बरगाँव और कोलकाता में अपनी फैसिलिटी में 50 प्रोडक्ट बनाती है और इसकी 250 से अधिक स्टॉक-कीपिंग युनिट्स हैं।
इनोवेशन पर्याय है
दीपक का कहना है कि प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेहतरीन क्वालिटी वाले प्रोडक्ट पेश करने की जरूरत सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि धारणा यह है कि हाई क्वालिटी वाले प्रोडक्ट बनाने के बावजूद लिंक एक बड़े बाजार का ब्रांड है।
कंपनी ऐसे प्रोडक्ट्स को विकसित करने की कोशिश कर रही है जो बहुलक मूल्य अस्थिरता से अपने मार्जिन को कम करने और टॉप लाइन और बॉटम लाइन को सुरक्षित करने में मदद करेंगे, लेकिन प्रबंध निदेशक का कहना है कि यह एक कठिन काम है।
वे कहते हैं, "पेन इंडस्ट्री में एंट्री बैरियर बहुत कम हैं और इससे असंगठित लोगों को बढ़ावा मिलता है, जिससे अनावश्यक प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। लेकिन हमने एक रेखा खींची है कि हम 5 रुपये के मूल्य बिंदु से नीचे नहीं जाएंगे, क्योंकि ऐसा करना किसी संगठित कंपनी के लिए संभव नहीं है।"
दीपक के अनुसार, भारतीय लेखन उपकरण बाजार में Linc की बाजार हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है। बिजनेस एंड इकनॉमिक्स जर्नल में 2014 के एक अध्ययन के मुताबिक सेलो, लेक्सी और रेनॉल्ड्स का इस बाजार में एक बड़ा हिस्सा है, जबकि फ्लेयर, रोटोमैक, स्टिक, लक्सर और मोंटेक्स अन्य मान्यता प्राप्त ब्रांड हैं।
एक और चुनौती कंपनी को इंडस्ट्री में दूसरों से अलग बनाए रखने की है। दीपक कहते हैं कि इसके लिए लगातार इनोवेशन करते रहना जरूरी है।
वे कहते हैं, “हाल ही में, हमने यूजर्स को एक कलम का नया अनुभव देने के लिए, अपना ब्रांड, पेंटोनिक लॉन्च किया। हमने पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए इस पेन को लॉन्च किया। हमने इसे आकर्षक डिज़ाइन के साथ लंबा बनाया, बॉडी में काले रंग के साथ अन्य पेन से इसे एक अलग रूप देने का काम किया। लेकिन हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि हमारे टारगेट सेगमेंट के अलावा, स्कूली छात्रों ने इसे बहुत पसंद किया और इन कलमों की मांग बढ़ी।”
मांग की संभावना
चूंकि पिछले साल COVID-19 महामारी के कारण स्कूल और कॉलेज बंद थे, इससे भारत में स्टेशनरी उद्योग को एक झटका लगा। इसके साथ ही, edtech की अभूतपूर्व वृद्धि का मतलब था कि छात्र स्क्रीन की मदद से घर पर सीख रहे थे और उन्हें पेन और स्टेशनरी की कम आवश्यकता थी।
अन्य स्टेशनरी ब्रांडों की तरह, लिंक पर कोरोना की बुरी मार पड़ी। हालांकि, दीपक कहते हैं कि धीरे-धीरे मांग में तेजी आई है। उनका कहना है कि अप्रैल और मई 2020 में COVID-19 के कारण डिमांड में कमी आई थी, लेकिन वित्त वर्ष 2021 के लिए हम पिछले कैलेंडर वर्ष की बिक्री के आंकड़ों का लगभग 65 प्रतिशत कवर करने की उम्मीद कर रहे हैं।
वे कहते हैं, "अगस्त के बाद से, हम पिछले कैलेंडर वर्ष की बिक्री का 75 प्रतिशत देख रहे हैं।"
वह पेन और इंडस्ट्री के भविष्य को लेकर आशान्वित है। वे कहते हैं, "जब आप कागज पर कलम रखते हैं तो अच्छी चीजें होती हैं। स्कूल और कॉलेज के छात्र, जो हमारे मुख्य टारगेट ग्रुप हैं, को हमेशा अपनी शैक्षिक यात्रा में लेखन साधन की आवश्यकता होगी। यहां तक कि हमारे दूसरे टारगेट ग्रुप अधिकारियों को भी नोट लेने या अपना हस्ताक्षर करने के लिए पेन की आवश्यकता होगी।"
निकट अवधि में, कंपनी की योजना पेंटोनिक की रेंज को जेल इंक पेन तक विस्तारित करने की है।