उत्तराखंड की संगीता थपलियाल ने नौकरी छोड़ नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए शुरू किया ईको-फ्रेंडली रोजगार
"उत्तराखंड की संगीता थपलियाल ने जलवायु आपदा और बिगड़ते पर्यावरण से निपटने के लिए एक अनोखा, प्रेरक ईको-फ्रेंडली मिशन शुरू किया है, जिसके शुरुआती दौर में ही छह महिलाओं को रोजगार देती हुई वह नदियों में प्रवाहित मंदिरों की चुनरियों से गरीब बच्चों के लिए बेहद सस्ती कीमत वाले कपड़े तैयार करा रही हैं।"
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में देवांचल विहार, अपर सारथी विहार के समीप रह रहीं संगीता थपलियाल मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली सिंथेटिक की चुनरी और कपड़े को सिंगल यूज प्लास्टिक मानती हैं। इन दिनो वह अपनी बाल एवं महिला विकास विभाग की नौकरी छोड़कर सिंगल यूज प्लास्टिक विरोधी अपने एक अनोखे मिशन को परवान चढ़ा रही हैं। वह कहती हैं कि देवी-देवताओं पर चढ़ाई जाने वाली चुनरियां समीपवर्ती नदियों में प्रवाहित कर दी जाती हैं, जिससे ये हमारे प्राकृतिक जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं।
इन चुनरियों का दोबारा कोई उपयोग नहीं होता है। सिंथेटिक की चुनरियां भी सिंगल यूज प्लाटिस्क होती हैं। यदि मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा सूती चुनरियां चढ़ाई जाएं तो मंदिर में इस्तेमाल होने के बाद रद्दी हो चुकी इन चुनरियों से दोबारा उपयोग के लायक कपड़े तैयार किए जा सकते हैं। इन कपड़ों का वंचित समुदाय के लोग आराम से सस्ते कपड़े के रूप में दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं। अब वह नौकरी त्यागकर स्वयं अपने इस मिशन को धरालत पर उतारने में जुट गई हैं ताकि उत्तराखंड की नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
जिस समय संगीता ने अपने संकल्प को हकीकत में बदलने की ओर कदम बढ़ाया, किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया था। उस समय वह बाल एवं महिला विकास के वन स्टॉप सेंटर में केस वर्कर के रूप में कार्यरत थीं। चुनरियों की बर्बादी की ओर उनका ध्यान गया तो उन्होंने सबसे पहले अपनी नौकरी छोड़ी और नदियों में प्रवाहित चुनरियों को इकट्ठा कर उनसे कपड़े तैयार करने के स्वरोजगार में जुट गईं। अब तो उनके इस काम में आधा दर्जन से अधिक महिलाओं को रोजगार भी मिल चुका है। वर्तमान में उनका यह उद्यम अभी छोटे पैमाने पर शुरुआती दौर में है।
संगीता बताती हैं कि जब वह वन स्टॉप सेंटर में नौकरी कर रही थीं, वहां आपराधिक घटनाओं से पीड़ित महिलाओं को ठिकाना देकर उनको कानूनी, मेडिकल, शैक्षिक, परामर्श और सुविधाएं दी जाती थीं, लेकिन उनको अपनी नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के लिए किसी रोजी-रोजगार की व्यवस्था नहीं थी। तभी उनके दिमाग में एक आइडिया कौंधा कि क्यों न वह स्वयं इस दिशा में पहल करें।
संगीता का ध्यान सबसे पहले मंदिरों की चढ़ावा चुनरियों पर गया, जो रोजाना भारी मात्रा में आसपास की नदियों में प्रवाहित की जा रही थीं। निरंजपुर कृषि मंडी समिति में सचिव अपने पति विजय थपलियाल से परामर्श के बाद संगीता ने ऋषिकेश गंगा सेवा समिति, केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों के समिति-प्रमुखों से संपर्क किया। समिति-प्रमुख भी उनके मिशन से सहमत हो गए। समिति प्रमुखों को भी लगा कि यदि उनके बड़े धर्मस्थलों से यह अभियान शुरू होगा तो पर्यावरण और रोजगार का एक बड़ा बदलाव आ सकता है।
अब संगीता सीधे से मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली चुनरियां अपने यहां जुटाकर उनसे बच्चों के लिए सस्ते दाम के कपड़े तैयार करा रही हैं। संगीता का कहना है कि हम कुछ बहुत बड़ा नहीं करने जा रहे हैं, लेकिन इस देश का नागरिक होने के नाते बेरोजगारी, जलवायु आपदा और बिगड़ते पर्यावरण से निपटने के लिए कोई न कोई इको फ्रेंडली अभियान जरूर चला सकते हैं। इससे हमारा राष्ट्र तो मजबूत होगा ही, इस काम में तमाम लोगों को रोजगार भी मिल जाएगा।