कम लागत में करें लेमनग्रास की खेती, होगी मोटी आमदनी, सरकार द्वारा दी जा रही है 2 हज़ार रुपए की सब्सिडी प्रति एकड़
पीएम मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 67वें संस्करण में झारखंड के गुमला जिले के किसानों द्वारा लेमनग्रास की खेती करने के प्रयास की सराहना की।
लेमनग्रास की खेती जितनी स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद है उतनी ही किसानों के लिये भी फायदेमंद साबित हो सकती है। लेमनग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है। लेमन ग्रास से निकले तेल को कॉस्मेटिक्स, साबुन, तेल और दवा बनाने वाली कंपनियां खरीद लेती हैं। यही वजह है कि किसानों का इस फसल की ओर रूझान भी बढ़ा है।
अभी हाल ही में बीते रविवार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 67वें संस्करण में झारखंड के गुमला जिले के किसानों द्वारा लेमनग्रास की खेती करने के प्रयास की सराहना की।
क्या होती है लेमनग्रास?
लेमनग्रास एक उष्णकटिबंधीय पौधा (ट्रोपिकल प्लांट) है जिसमें पतले और लंबे पत्ते 3-8 फीट तक उगते हैं, जिसकी कि नींबू तरह गंध और स्वाद होता है। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में लेमनग्रास की खेती सबसे अधिक होती है और भारतीय, थाई, वियतनामी खाना पकाने और चिकित्सा में व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जाता है। भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, पूर्वोत्तर क्षेत्र में असम और उत्तरी क्षेत्र में उत्तरांचल में उगाई जाती है।
लेमनग्रास हमें आवश्यक विटामिन जैसे विटामिन ए, विटामिन बी 1 (थायमिन), विटामिन बी 2 (राइबोफ्लेविन), विटामिन बी 3 (नियासिन), विटामिन बी 5 (पैंटोथेनिक एसिड), विटामिन बी 6 (पाइरिडोक्सिन), विटामिन सी और फोलेट, कैल्शियम के अलावा आवश्यक खनिज जैसे- पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा और जस्ता प्रदान करता है।
जरूरी जलवायु, मिट्टी और बुवाई का समय
लेमनग्रास को ऐसी जगह पर उगाया जा सकता है जहाँ धूप अच्छी हो और बारिश कम हो साथ ही जहां गर्म और आर्द्र जलवायु होती है और साल भर में 200-250 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है।
लेमनग्रास की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी रेतीली दोमट मिट्टी और एक अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और लाल मिट्टी हैं। जबकि, इसकी खेती के लिए जलयुक्त मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
लेमनग्रास की नर्सरी बेड तैयार करने का सबसे अच्छा समय मार्च-अप्रैल के महीने में होता है। हालांकि लेमनग्रास का फैलाव इसके बढ़ने की प्रकृति पर निर्भर करता है। बुवाई की गहराई 2-3 सेमी होनी चाहिए। बुवाई से पहले बीज का रासायनिक उपचार सेरेसन 0.2 प्रतिशत या एमिसन 1 ग्राम / किलोग्राम बीज से करें।
सब्सिडी और लोन
आयुर्वैदिक कृषि के रूप में बागवानी बोर्ड (Horticulture Board) राज्यवार अलग-अलग तरह की सब्सिडी दे रहा है। लेमनग्रास की खेती के लिये सरकार द्वारा प्रति एकड़ 2 हजार रुपये की सब्सिडी दी जा रही है। इसके अलावा डिस्टीलियेशन यूनिट लगाने के लिये 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी अलग से दी जा रही है।
किसानों की मदद के लिये नाबार्ड द्वारा कई प्रकार के लोन भी दिये जाते हैं।
मार्केट
इसका तेल लोकप्रिय रूप से "कोचीन तेल" के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह मुख्य रूप से कोचीन बंदरगाह से होकर जाता है। भारत प्रतिवर्ष लगभग 1000 मीट्रिक टन का उत्पादन कर रहा है, जबकि दुनिया की मांग बहुत अधिक है। वार्षिक रूप से, हम लगभग 5 करोड़ रुपये की मात्रा में लेमन ग्रास तेल का निर्यात कर रहे हैं। हमारा देश अंतरराष्ट्रीय बाजार में ग्वाटेमाला (Gautemala) से एक महत्वपूर्ण प्रतियोगिता का सामना कर रहा है।
लेमनग्रास के स्वास्थ्य लाभ
लेमनग्रास का उपयोग मूत्र पथ (Urinary Tract) के उपचार में किया जाता है। एंटीऑक्सिडेंट, फ्लेवोनोइड और एंटी-फंगल और रोगाणुरोधी यौगिक इसमें भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। लेमनग्रास की चाय पेट के संक्रमण को रोकती है, अल्सर को रोकती है, पाचन को उत्तेजित करती है। पेट दर्द और कब्ज के इलाज में भी इसका उपयोग किया जाता है। भोजन से पहले एक कप लेमनग्रास चाय पीने से पाचन क्रिया में सुधार होता है। यह त्वचा को गोरा कर देता है। यह जीवाणुरोधी होने के साथ बालों के विकास में भी सहायक है। इसमें एंटी-कैंसर गुण हैं, कोलेस्ट्रॉल कम करता है, अस्थमा, टाइप-2 डायबिटीज, गठिया आदि को कम करता है। लेमनग्रास का सेवन आपको मच्छरों से बचाता है। लेमनग्रास मासिक धर्म की समस्याओं से निपटने में भी मदद करता है।
पीएम मोदी ने की झारखंड के किसानों की तारीफ़
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडिया कार्यक्रम 'मन की बात' में कहा कि झारखंड के बिशुनपुर में इन दिनों 30 से ज्यादा समूह संयुक्त रूप से ‘लेमनग्रास’ की खेती कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लेमनग्रास चार महीनों में तैयार हो जाता है और इसके तेल की मांग है तथा बाज़ार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है।
प्रधानमंत्री की इस सराहना से न केवल बिशुनपुर प्रखंड के आदिवासी महिलाएं, बल्कि पूरा गुमला जिला गौरव महसूस कर रहा है।