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रेज निटवियरः अपने जुनून से तय किया लुधियाना से जर्मनी तक का सफ़र, आज चला रहे हैं 60 करोड़ रुपए का बिज़नेस

रेज निटवियरः अपने जुनून से तय किया लुधियाना से जर्मनी तक का सफ़र, आज चला रहे हैं 60 करोड़ रुपए का बिज़नेस

Thursday August 08, 2019 , 9 min Read

भारत में टेक्स्टाइल मार्केट लगभग 250 बिलियन डॉलर का है और इस क्षेत्र में कई बड़े नाम मौजूद हैं। बॉम्बे डाइंग, रेमंड, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़ और भी बहुत सी बड़ी कंपनियों ने इस क्षेत्र में लंबे समय अपना सिक्का जमा रखा है। भारत में ऐग्रीकल्चर (खेती) के बाद सबसे ज़्यादा रोज़गार पैदा करने वाला सेक्टर टेक्स्टाइल ही है और इस सेक्टर में कई मध्यम और छोटे स्तर के ब्रैंड्स मौजूद हैं, जो ग्राहकों को रिझाने के लिए नई-नई तरक़ीबें अपनाते रहते हैं। 


लुधियाना में फ़ैब्रिक का बड़ा बाज़ार है, जहां से अलग-अलग शहरों में फ़ैब्रिक सप्लाई किया जाता है। योरस्टोरी टीम ने लुधियाना जाकर मध्यम और छोटे स्तर के ब्रैंड्स की कहानी जानने की कोशिश की। त्रिपुरा के बाद लुधियाना में निटवियर, होज़री और ऊनी कपड़ों का सबसे बड़ा बाज़ार है। देशभर में सप्लाई होने वाले ऊनी निटवियर कपड़ों की 95 आपूर्ति यहीं से होती है। 


इनमें से एक ब्रैंड रेज निटवियर, जिसका ऑफ़िस और फ़ैक्ट्री एक ही बिल्डिंग में हैं और जो लुधियाना शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। रेज निटवियर के देशभर में 25 एक्सक्लूसिव ब्रैंड आउटलेट, 500 से ज़्यादा ब्रैंड आउटलेट और डिपार्टमेंटल स्टोर्स हैं। ब्रैंड में आपको महिलाओं के लिए कार्टिगन्स, निटेड टॉप्स, वूवन ब्लाउज़, ड्रेस, ट्यूनिक्स, जंपर्स, केप्स, पोंचोज़ वगैरह की रेंज मिलती है।



निटवियर

आकाश बंसल



प्रियंका चोपड़ा, कटरीना कैफ़, दिया मिर्ज़ा, समीरा रेड्डी, रिया सेन, मल्लिका शेरावत और जैकलीन फ़र्नांडीज़ जैसे बॉलिवुड सितारें ब्रैंड के साथ बतौर ऐंबैसडर जुड़े रहे हैं। इन सितारों और रेज ब्रैंड के बीच में एक ख़ास कनेक्शन भी है। कंपनी के फ़ाउंडर 54 वर्षीय आकाश बंसल ने इन सभी बॉलिवुड हस्तियों को अपने ब्रैंड के लिए मॉडलिंग करने का न्यौता तब दिया था, जब ये फ़िल्म इंडस्ट्री में ब्रेक पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।


आकाश फ़ैशन डिज़ाइनर बनना चाहते थे और न्यूयॉर्क के फ़ैशन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी में दाखिला लेना चाहते थे। उन्होंने इंस्टीट्यूट का एग्ज़ाम भी पास कर लिया, लेकिन पैसे की कमी की वजह से वह पढ़ने नहीं जा पाए। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वह इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई करेंगे। बेंगलुरु से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बीपीएल सैन्यो के साथ काम करने लगे। आकाश बताते हैं कि उनके पिता, एक रिश्तेदार के साथ टेक्सटाइल का बिज़नेस करते थे। आकाश के पिता ने नौकरी लगने के 6 महीनों बाद ही आकाश को बिज़नेस में मदद करने के लिए लुधियाना वापस बुला लिया। आकाश कहते हैं,


"मेरे पिता के बिज़नेस करने का तरीक़ा व्यवस्थित नहीं था और इसलिए मैंने अपने पिता से कहा कि मैं इस सिस्टम में काम नहीं कर पाऊंगा और भविष्य में टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। मैंने अपने पिता के सामने अपना बिज़नेस शुरू करने का विचार रखा।"


अब आकाश के सामने पूंजी जुटाने की समस्या थी। आकाश ने फ़्लैट निटिंग-मशीन टेक्नॉलजी के क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी स्टॉल के बारे में सुना था, जो जर्मनी की कंपनी थी। कंपनी अपनी मशीनों के ख़रीदारों के लिए एक साल की मुफ़्त वर्कशॉप आयोजित कराती थी। बात है 1990 की, जब इस मशीन की क़ीमत 50 लाख रुपए थी। आकाश ने जब वर्कशॉप में हिस्सा लेने के लिए संपर्क किया, तब कंपनी ने इनकार कर दिया। जर्मन कंपनी का कहना था कि वे भारत में मशीनों की बिक्री नहीं करते, इसलिए आकाश को ट्रेनिंग देने से कंपनी को कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा और आकाश के पास विदेश जाकर एक महीने की ट्रेनिंग लेने के पैसे नहीं थे और उनके पास मुफ़्त में ही प्रशिक्षण लेने का विकल्प था।


इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जर्मन कंपनी के एरिया मैनेजर को दलील दी कि अगर कंपनी उन्हें प्रशिक्षण देती है तो भारत में उनका एक प्रतिनिधि हो जाएगा, जो आगे चलकर भारत में अन्य लोगों को भी दो सालों का मुफ़्त प्रशिक्षण देगा और इस प्रशिक्षण के दौरान अभ्यर्थियों के लिए रहना और खाना भी मुफ़्त होगा। साथ ही, आकाश ने कंपनी से यह भी कहा कि भविष्य में वे जब भी भारत में मशीनों की बिक्री शुरू करना चाहेंगे, तब आकाश उनके लिए उपलब्ध होंगे। आकाश की इन दलीलों से कंपनी उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए राज़ी होगी।


आकाश कहते हैं कि लुधियाना में रहने वाले शख़्स की अब दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित डिज़ाइनरों के साथ संपर्क हो गए थे, जो वर्साचे जैसे बड़े ब्रैंड्स के साथ काम कर रहे थे। एक साल की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद आकाश को एक और साल एक्सटेंशन मिल गया। इस दौरान उन्होंने मशीन की रिपेयरिंग की बारीक़ियों को भी सीखा। आकाश ने यहां पर भी रुकने का फ़ैसला नहीं लिया और उन्होंने कंपनी से कहा कि वह ग्राहकों की ज़रूरतों और कंपनी द्वारा ग्राहकों की समस्याओं के निराकरण की प्रक्रिया को भी समझना चाहते हैं और इस बिनाह पर उन्होंने एक और साल का एक्सटेंशन ले लिया। तीसरे साल के दौरान उन्होंने सर्विस डिपार्टमेंट में काम किया।


रेज

रेज के कपड़ों में मॉडल

आकाश बताते हैं कि सर्विस डिपार्टमेंट में काम करने के दौरान उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी फ़ैक्ट्रियों में जाने का और चीज़ों का समझने का मौक़ा मिला। आकाश ने जानकारी दी कि उस समय जर्मनी और इटली में दुनिया की सबसे ज़्यादा निटिंग की फ़ैक्ट्रियां थीं। 1995 में आकाश के वापस लौटने की बारी थी, लेकिन उनके पास स्टॉल मशीन ख़रीदने के पैसे नहीं थे और इसलिए उन्होंने कंपनी के सामने दलील रखी कि प्रशिक्षण के बाद जब वह देश वापस लौटेंगे, तब उनके पास भारत में मशीनों की बिक्री शुरू करने के लिए डिमॉन्सट्रेशन देना होगा, जिसके लिए उन्हें मशीन की ज़रूरत होगी। कंपनी राज़ी हो गई और वह भारत मशीन के साथ लौटे और वह भारत में पहले इंसान थे, जो कम्प्यूटराइज़्ड निटिंग मशीन लेकर आया था। उन्होंने इस मशीन को लुधियाना में अपने अंकल की फ़ैक्ट्री में लगवाया। आकाश कहते हैं,


"वह मशीन अभी तक काम करती है और उसे फ़ैक्ट्री में लगे 23 साल हो चुके हैं। मैंने उस मशीन को आजतक नहीं बेचा और कभी बेचूंगा भी नहीं।"


इसके बाद उन्होंने मॉन्टी कार्लो और अन्य बड़े ब्रैंड्स को मशीन का जायज़ा लेने के लिए बुलाना शुरू किया। आकाश बताते हैं कि लोगों उनकी मशीन में रुचि नहीं दिखाते और उन्हें मिलने का वक़्त ही नहीं देते थे। इस समय तक आकाश अपना ब्रैंड रेज लॉन्च कर चुके थे। आकाश बताते हैं कि उन्होंने विल वर्डस्मिथ के उपन्यास रेज से प्रभावित होकर अपने ब्रैंड का नाम रखा। आकाश ने 1995 में अपनी कंपनी रजिस्टर की। लुधियाना में लोग आकाश के सैंपल्स पसंद नहीं कर रहे थे और इसलिए उन्होंने दिल्ली जाने का फ़ैसला लिया। आकाश बताते हैं कि दिल्ली में वह हर बड़े ब्रैंड के ऑफ़िस गए, लेकिन किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी। 


वह अपने दोस्त के घर पर रुके थे। आकाश के दोस्त की बहन ने उनसे कहा कि वह उन्हें इबोनी गारमेंट्स के मालिक से मिलवा सकती हैं क्योंकि मालिक की बेटी उनकी दोस्त है। आकाश को इबोनी गारमेंट्स के मालिक डीएस नरूला ने बात करने के लिए सिर्फ़ पांच मिनट का समय दिया था, लेकिन सैंपल्स देखने के बाद उन्होंने घंटों तक उनसे बात की। आकाश ने उन्हें बताया कि उनकी मशीन से वह एक साल में 9 हज़ार पीस तैयार कर सकते हैं। डीएस नरूला ने काम की शुरुआत के लिए आकाश को 2.5 लाख रुपए का चेक भी दिया। आकाश बताते हैं कि पैसे बचाने के लिए वह ख़ुद ही दिनभर मशीन चलाते थे और सिर्फ़ नहाने के लिए अपने घर जाते थे। इसके बाद आकाश ने एक कर्मचारी को हायर किया और रात के समय में मशीन चलाने के लिए उसे ट्रेनिंग दी। कुछ समय बाद उन्होंने एक कटर और टेलर भी हायर किया। हमने रोज़ाना 30 पीस बनाने से शुरुआत की। फ़ैब्रिक की धुलाई उनकी मां घर पर ही कर देती थीं।


1995 में सर्दी के मौसम में आकाश ने इबोनी गारमेंट्स को 5,500 पीस का ऑर्डर भेजा। उनका पहला ऑर्डर जल्द ही बिक गया। आकाश के पास अब और बड़े ऑर्डर्स की जिम्मेदारी थी, लेकिन मशीन एक ही थी। उन्होंने नरूला के दिए हुए पैसों से एक और मशीन ख़रीद ली। आकाश ने 5 हज़ार पीस से शुरुआत की थी और 2018 में उनकी कंपनी ने लगभग 5 लाख पीस बनाए। हाल में कंपनी के पास लगभग 100 मशीने हैं, जिनमें दो स्टॉल मशीन्स भी शामि हैं। 1999 में आकाश ने अपने पिता से साथ आने के लिए कहा और उनके पिता ने अपने भाई के साथ पार्टनरशिप को ख़त्म कर, बेटे की कंपनी में फ़ाइनैंस का काम देखने का फ़ैसला लिया।


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रंग-बिरंगे धागे

आकाश ने जानकारी दी कि उनकी कंपनी का एक ऑफ़िस चीन में भी है क्योंकि उनका ब्रैंड 90 प्रतिशत तक फ़ैब्रिक्स, यार्न और ऐक्ससरीज़ चीन से ही मंगाता है। आकाश की मार्केटिंग स्ट्रैटजी ने न सिर्फ़ उनके लिए सफलता की इबारत लिखी, बल्कि उनका ब्रैंड बॉलिवुड में ब्रेक के लिए संघर्ष करने वाली मॉडल्स के लिए भी लकी साबित हुआ। बॉलिवुड में रेज एक चर्चित नाम है और उन्हें ‘मैन विद द गोल्डन टच’ बुलाया जाता है क्योंकि जिस भी मॉडल ने उनके ब्रैंड के लिए मॉडलिंग की, वह सुपरस्टार हो गई। 1995 में सबसे पहले मल्लिका शेरावत ने उनके ब्रैंड के लिए मॉडलिंग की थी।


आकाश बताते हैं,


"उस समय मेरे पास ऐडवरटाइज़िंग के लिए मात्र 2 लाख रुपए का बजट था। मैंने तय किया था कि मैं अपने टर्नओवर का पांच प्रतिशत हर साल अपनी ब्रैंडिंग पर खर्च करूंगा। मैंने एक दोस्त के घर पर पार्टी के दौरान मल्लिका शेरावत को देखा था, तब उनका नाम रीमा लांबा हुआ करता था। मैंने उन्हें मॉडलिंग असाइनमेंट ऑफ़र किया और वह तैयार हो गईं। मैंने उन्हें पेमेंट के तौर पर 5 हज़ार रुपए दिए और शूट किया। दो सालों बाद उन्हें मर्डर फ़िल्म मिल गई और वह बड़ी स्टार हो गईं।"


आकाश आगे बताते हैं,

"1999 में ब्रैंड ने प्रियंका चोपड़ा को अपना ब्रैंड ऐंबैसडर बनाया। तब तक वह मिस इंडिया बन चुकी थीं। हमारे पास 5 लाख रुपए का मार्केटिंग बजट था। जब तक हम प्रियंका के साथ ऐड लेकर मार्केट में आए, तब तक वह मिस वर्ल्ड बन चुकी थीं और आज आप जानते ही हैं, वह किस मुक़ाम पर हैं। हमने उन्हें 50 हज़ार रुपए का पेमेंट किया था और आज अगर मैं उनके साथ ऐड शूट करने के बारे में सोचूं तो मुझे 2 करोड़ रुपए तक देने होंगे।"