पूरे मुल्क का हौसला बढ़ाती है महज़बीन की ललकार
कश्मीर के मौजूदा हालात में महज़बीन जैसी हिम्मतवर औरत की ललकार बहुत मायने रखती है। अपने शौहर के शहीद हो जाने पर आंसू बहाने की बजाय स्कूली टीचर महज़बीन कहती हैं- 'वह कश्मीरी मासूमों को जांबाज बनाएगी, उनको सही रास्ते पर चलने का पाठ पढ़ाएगी।' इस हुंकार से पूरे देश का मस्तक गर्व से तन जाता है। नजीर अहमद वानी को अबनी महबूबा महज़बीन से बेइंतहा मोहब्बत थी।
जब पति की शहादत पर कोई कश्मीरी औरत रोना-धोना छोड़कर बहादुरी का संदेश देने लगे कि वह अपने शौहर नजीर अहमद वानी की तरह ही सूबे के मासूमों को जांबाज बनाएगी, उनको सही रास्ते पर चलने का पाठ पढ़ाएगी, तो पूरे देश का मस्तक गर्व से ऊंचा हो उठता है। वह हिम्मतवर औरत हैं, कुलगाम (जम्मू-कश्मीर) के गांव अश्मूजी की महजबीन। आतंकवादियों से जूझते हुए उनके सैनिक पति नज़ीर शहीद हो चुके हैं। उन्हे भारत सरकार 'अशोक चक्र विजेता' के रूप में विभूषित कर चुकी है। महजबीन कहती हैं- वह अपने वतन के भटके नौजवानों को भी सिखाएंगी कि वे नज़ीर की तरह आतंक का दामन छोड़कर देश के पहरेदार बनें। उन्हें अपने पति की शहादत पर फ़ख्र है।
महजबीन स्कूल टीचर हैं। वह कहती हैं, बच्चों-युवाओं को सही रास्ता दिखाने के उनके अभियान के रास्ते में कई दुश्वारियां भी हैं, कई लोग इसे गलत समझते हैं, इसके बावजूद वह अपने गांव तथा स्कूल के बच्चों को लगातार प्रेरित करती रहेंगी कि वे गलत रास्ते पर न जाएं। मन लगाकर पढ़ाई करें और अपना करियर बेहतर बनाएं। हिंसा के रास्ते पर चलने से कुछ नहीं मिलने वाला है। कश्मीर के आज के माहौल में आतंक की राह पर भटके युवाओं के लिए नजी़र एक आदर्श हैं। अब महजबीन के परिवार में मां-बाप, देवर-देवरानी तथा दो बच्चे अतहर और शाहिद नौवीं और बारहवीं कक्षा में कोटा (राजस्थान) और श्रीनगर में पढ़ाई कर रहे हैं। महजबीन अपने स्कूल में बच्चों को गणित, कश्मीरी और उर्दू पढ़ाती हैं।
एक वक्त था, जब निकाह से पहले महजबीन नजीर अहमद वानी से बेपनाह प्यार करती थीं। बात डेढ़ दशक पहले की है। दक्षिण कश्मीर के एक स्कूल में पहली नजर में ही दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठे थे। महजबीन कहती हैं- 'वानी का प्यार और उनका निडर होना मुझे हर पल हिम्मत देता है। मैं उनकी तरह ही अपने दोनों बच्चों को अच्छा नागरिक बनाऊगीं। जब मुझे बताया गया कि वह नहीं रहे, मैं रोई नहीं थी। मेरे भीतर एक ताकत थी, जिसने मुझे आंसू नहीं बहाने दिए। वह मुझसे बहुत प्यार करते थे। वह मेरे नूर थे। वह हमेशा आसपास के लोगों को खुश रखना और उनकी समस्याओं को सुलझाना सिखाते थे। शिक्षक होने के नाते, मैं राज्य के लिए अच्छे नागरिक विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। युवाओं को सही दिशा दिखाना मेरा लक्ष्य है। मैं इसकी प्रेरणा अपने शहीद पति से लेती हूं। वह दुनिया में सबसे अच्छे हैं। हम स्कूल में मिले। पहली नजर का प्यार था। वह बहुत अच्छे पति थे। उन्होंने ताउम्र हमारी और देश की रखवाली की।' हाल ही में एक ओर दिल्ली में उनके पति को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जा रहा था, तो दूसरी तरफ मेरठ में मेजर जनरल एम के दास महजबीन और नजीर के माता पिता को सम्मानित को सम्मानित कर रहे थे।
महजबीन जैसी हिम्मतवर, संघर्षशील महिलाओं के बहाने जब हम आज बदलते कश्मीर की औरतों पर नजर डालते हैं, बदलाव की बयार साफ-साफ समझ में आने लगती है। कश्मीरी महिलाओं में तेजी से परिवर्तन की बात हैरान करने वाली है। पूरे समाज की तरह कश्मीर की भी आधी आबादी रूढ़ रस्मोरिवाज़ों के चलते दबाव में तो है, लेकिन अब स्थितियां करवट ले रही हैं। पुरुष वर्चस्व वाले एक इस्लामी समाज में, जहां आमतौर पर औरतों के ऊपर परिवार की इज्ज़त और मर्यादा को बचाए रखने का बोझ होता है, वहीं कश्मीर की औरतें अपनी डरी-सहमी औरत वाली छवि को तोड़ रही हैं। कश्मीर के बाहर के लोग भले कश्मीरी औरतों और उनके समाज के बारे में 'दकियानूसी' धारणा बनाए रहें, हक़ीक़त में अब वहां मां-बाप भी अपनी बेटियों को अच्छे कॉलेजों में पढ़ाना चाहते हैं। अब उन्हें अपनी लड़कियों की शादी की कोई जल्दी नहीं है। प्यार-मोहब्बत के सवाल पर भी कश्मीरी लड़कियां खुली हवा में सांस लेती हुई कहने लगी हैं, ऐसा करते पकड़े जाने पर थोड़ी मार खा लेंगी लेकिन हमारी हड्डियों में काफी जोर है।'
कश्मीरी औरतें कभी भी पूरी तरह से कमजोर नहीं रही हैं। अब तो वे अपने लिए और जगह ढूंढ रही हैं। कश्मीरी अक्सर यह कहते मिल जाएँगे कि उनका समाज दिल्ली और भारत के दूसरे शहरों की तुलना में औरतों के लिए महफूज है। वे ऐसी बातें दिल्ली और दूसरे शहरों में आए दिनों होने वाले रेप की घटनाओं के संदर्भ में कहते हैं। सड़कों पर होने वाली बदतमीजियां और घरेलू हिंसा की घटनाएं उनके लिए कोई मुद्दा नहीं हैं। वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। ड्रेस कोड के मामले में औरतों को ख़ुद को ढंककर रखने की नसीहत दी जाती है लेकिन वह अब ऐसी वर्जनाओं से भी भिड़ने, टकराने लगी हैं।
फिलहाल, कश्मीरी औरतों को स्कूल से लेकर कॉलेज तक में ड्रेस कोड मानना पड़ता है। 'अबाया', जो एक लिबास है, यूनिफॉर्म के ऊपर से उसे भी पहनना पड़ता है। दूसरा सच ये भी है कि कश्मीर की महिलाएँ कुपोषित नहीं हैं, जैसा कि देश के बाकी पुरुष प्रधान समाज में करोड़ों औरतों के साथ हो रहा है। कश्मीर की लड़कियां अब देश से बाहर जाकर ऊंची तालीम के साथ ही खेल-कूद में भी जमकर दिलचस्पी ले रही हैं। कश्मीर के ऐसे हालात में आज नज़ीर की कुर्बानी और महज़बीन की ललकार बहुत मायने रखती है।
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