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कारगिल विजय दिवस: कारगिल युद्ध में मृत घोषित हुए थे मेजर डीपी सिंह, अब मैराथन में दौड़ रहा है भारत का ये 'ब्लेड रनर'

कारगिल विजय दिवस: कारगिल युद्ध में मृत घोषित हुए थे मेजर डीपी सिंह, अब मैराथन में दौड़ रहा है भारत का ये 'ब्लेड रनर'

Friday July 26, 2019 , 5 min Read

जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तब उनका शरीर खून से लथपथ था। कई हड्डियां टूट चुकी थीं और आंत भी फट चुकी थी। उस समय उनके शरीर ने भले ही काम करना बंद कर दिया हो लेकिन मेजर देवेंद्र पाल सिंह की हिम्मत ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा था। युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए वे बुरी तरह से घायल हो चुके थे। भारत-पाकिस्तान सीमा पर 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान, एक तोप का गोला उनके नजदीक आ फटा था। उन्हें नजदीकी आर्मी हॉस्पिटल ले लाया गया, जहाँ उन्हें आर्मी सर्जन ने मृत घोषित कर दिया। मृत घोषित होने के बाद उन्हें अंतिम संस्कार के लिए नजदीकी शवगृह ले जाया गया लेकिन मेजर देवेंद्र पाल सिंह अभी मरने के लिए तैयार नहीं थे। यहां एक अन्य चिकित्सक ने देखा कि अभी तक उनकी सांसे चल रही हैं। उसके बाद जो हुआ वो इतिहास में दर्ज है। मेजर देवेंद्र पाल सिंह मौत को मात देकर आज लाखों करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। 


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ब्लेड रनर: मेजर मेजर देवेंद्र पाल सिंह के जज़्बे को सलाम



आज जब आप मेजर देवेंद्र पाल सिंह को देखते हैं तो उनकी इस कहानी पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि कैसे एक जवान ने मौत को मात दे दी। उनकी यह कहानी अविश्वसनीय लगती है। अब उन्हें 'इंडियन ब्लेड रनर' के रूप में जाना जाता है। वह पिछले 16 वर्षों से मैराथन दौड़ रहे हैं।


पहाड़ों पर जब मेजर देवेंद्र पाल सिंह को शवगृह ले जाया गया तो आर्मी हॉस्पिटल के एक अन्य डॉक्टर ने उनकी सांसे चलते हुए देख लिया था। जहां मोर्टार बम गिरता है उसके आठ गज के भीतर किसी के भी बचने की संभावना शून्य के करीब होती है। उनका पूरा शरीर मोर्टार के छर्रों से छलनी था। उनका पेट दो हिस्सों में खुला हुआ था। डॉक्टरों के पास उनकी कुछ आंतों को निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उनके पैर को भी काटना पड़ा। 


मेजर दिव्यांग हो चुके थे। एक पैर नहीं था और वे बेड पर थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनके अंदर वो जज्बा था जिसने उन्हें प्रेरित किया। जब बम उनके नजदीक आकर गिरा था तब उन्होंने बहुत तेजी से डाइव लगाई और जितना हो सका उतना दूर जाकर गिरे। तब उनकी इस त्वरित सोच ने उनकी जान बचाई थी, लेकिन अब उन्हें नए सिरे से जीना सीखना था।


बैंगलोर में इंडिया इंक्लूजन समिट के मौके पर उन्होंने योरस्टोरी को बताया, "यह मेरे दूसरे जीवन की शुरुआत थी।" क्या हुआ अगर लाइफ पहले जैसी नहीं रही? वैसे भी यह पहले जैसी कभी नहीं होगी। उन्होंने अपने शरीर को विकलांगता के रूप में न लेने का फैसला किया। उन्होंने इसके बजाय उसे एक चुनौती के रूप में देखा।


वह लगभग एक साल तक अस्पताल में रहे। शायद ही किसी को विश्वास था कि वह फिर कभी चल पाएंगे। लेकिन उनके दिमाग में कुछ और ही था। उन्होंने सोचा, "सिर्फ चलना ही क्यों? मैं तो दौड़ना चाहता हूँ।"




मेजर डीपी सिंह का भारतीय ब्लेड रनर के तौर पर परिवर्तन रातोंरात नहीं हुआ। वह इससे पहले कभी भी रनर नहीं रहे थे। उन्होंने योरस्टोरी को बताया, "मैं अपनी चोटों से परे जाकर खुद को प्रेरित करने के लिए दौड़ना चाहता था।" 


प्रोस्थेटिक पैर के साथ दौड़ना उनके लिए कठिन ही नहीं था, बल्कि ये बहुत ज्यादा दर्दनाक भी था। वह याद करते हुए कहते हैं, "मैं रेंगना नहीं चाहता था। जितनी बार भी मैं गिरा, मैंने इसे दृढ़ता की परीक्षा के रूप में लिया। इस तरह, फिर से कोशिश करना आसान हो जाता है।" 


उनका पहला प्रोस्थेटिक पैर लंबी दूरी की दौड़ की तुलना में स्प्रिंट के लिए बेहतर था। लेकिन यह सभी के लिए काफी हैरान करने वाला था कि मेजर इसी पैर से मैराथन दौड़ रहे थे। मेजर का यह वीडियो ओक्लाहोमा सिटी के हैंगर क्लिनिक में प्रोस्थेटिक्स विशेषज्ञों ने देखा। उन्होंने मेजर को एक बेहतर प्रोस्थेटिक पैर में फिट करने के लिए अपने यहां इनवाइट किया। इस पैर ने उन्हें लंबी दूरी की दौड़ के लिए जरूरी फ्लेक्सिबिलिटी दी। भारतीय ब्लेड रनर मेजर डीपी सिंह ने करीब 20 मैराथन में दौड़ लगाई है। जब वह दौड़ते हैं, तो वह अपने कृत्रिम पैर को छिपाते नहीं है। लोग ये देखकर हैरान होते हैं लेकिन सिंह को इससे कोई परेशानी है। 


वह एक मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं, जो पूरे भारत में लोगों को प्रेरित करते हैं। इसके अलावा वे एक सपोर्ट ग्रुप 'द चैलेंजिंग ओन्स' को भी मैनेज करते हैं। वह कहते हैं, "मैंने इस सपोर्ट ग्रुप की शुरुआत मेरे जैसे लोगों को प्रेरित करने के लिए की है। स्पोर्ट्स आत्मविश्वास बनाने और विकलांगता को दूर करने में मदद कर सकता है। मेरे जैसे लोगों को आमतौर पर शारीरिक रूप से विकलांग कहा जाता है। लेकिन मेरा मानना है कि हम 'चैलेंजर्स' हैं। अपने शरीर का एक हिस्सा खोना किसी के लिए भी बहुत बड़ा आघात होता है। आपका परिवार और दोस्त इस दर्दनाक घटना के बाद जीवन की कल्पना नहीं कर सकते।"


मेजर आगे कहते हैं, "जब किसी को ये पता चलता कि उसने अपने शरीर का एक अंग खो दिया है तो यह उसके लिए सबसे कठिन पल होता है। यहां पर उसके लिए लोगों का समर्थन ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।" मेजर का उद्देश्य अपने शरीर का कोई भी अंग खो चुके लोगों को फिर से जीवन खोजने में मदद करना है।