Man's search for meaning: वही जीतता है जो मुश्किल हालात में भी जिंदगी जीने के मायने ढूंढ लेता है
फ्रैंकल ई विक्टर की किताब मैन्स सर्च फॉर मीनिंग उन सदाबहार किताबों में से है जो इसे पढ़ने वाले को जिंदगी जीने का एक नया नजरिया देता है. नजरिया मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानने का, उम्मीद किए रखने का और उसमें मायने ढूंढने का.
बुक रिव्यू में आज जिस किताब के बारे में हम बात करने जा रहे हैं वो उन किताबों में से है जिसने इसे पढ़ने वालों की जिंदगी को कहीं न कहीं किसी न किसी तरह जरूर बदला है. हम बात कर रहे हैं विक्टर फ्रैंकल की एवरग्रीन किताब ‘मैन्स सर्च फॉर मीनिंग’ की. उन्होंने ये किताब 75 साल पहले 1946 में लिखी थी.
अब तक इसकी करोड़ों कॉपी बिक चुकी हैं. 24 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. दुनिया की बेस्टसेलर किताबों की लिस्ट में इसने हमेशा जगह बनाई है. इसे अमेरिका की दस सबसे प्रभावशाली किताबों में गिना जाता है. ऐमजॉन पर यह आज भी टॉप 100 किताबों की सूची में शुमार है.
लेखक फ्रैंकल ऑस्ट्रिया के रहने वाले थे. उन्होंने विएना में ही पढ़ाई करके मनोविज्ञान के प्रफ़ेसर और डॉक्टर के तौर पर अपना करियर शुरू किया. जब हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर क़ब्ज़ा कर लिया, तो अन्य यहूदियों के साथ उन्हें भी बंदी बनाकर यहूदियों के लिए बने ख़ास नज़रबंदी कैंप में ले जाया गया. उनके मां-बाप, भाई और पत्नी सब अलग हो गए.
सभी को यहूदियों के लिए बनाए गए कंसंट्रेशन कैंप में बेहद बुरे हालात से गुज़रना पड़ा. विक्टर के पिता की भूख और निमोनिया से मौत हो गई तो उनकी मां और भाई को गैस चैंबर में मार दिया गया. विक्टर की गर्भवती पत्नी की भी नज़रबंदी कैंप में बीमारी से मौत हो गई.
इस किताब में विक्टर ने मुश्किल हालातों के बीच जिंदगी के मायने की तलाश, पीड़ा और उम्मीद, आजादी, आशावाद, लोगोथेरेपी और साइकोलॉजी पर बात की है. दिखने में ये किताब काफी हल्की, छोटी और आसान भाषा में लिखी हुई है. किताब के कवर पर लिखा हुआ मिल जाएगाः ‘दी क्लासिक ट्रिब्यूट टू होप फ्रॉम दी होलोकॉस्ट’.
कंसेंट्रेशन कैंप में साइकिएट्रिस्ट विक्टर फ्रैंकल का दिन हर रोज निराशा, नकारात्मकता, उदास चेहरों से भरा होता था. हर शख्स रोज इस डर के साथ उठता था कि आज उनका आखिरी दिन हो सकता है. इस अंधकारमय भरे समय के बीच अगर विक्टर को किसी चीज ने हिम्मद दिए रखी तो वो थी उम्मीद. उम्मीद जितना छोटा शब्द उतना बड़े मायने रखने वाला शब्द है. विक्टर ने बस इसे ही आधार बनाकर ये किताब लिख दी.
किताब ने उन्होंने नाजी डेथ कैंप में अपने निजी और साथ के लोगों की जिंदगी के अनुभवों का जिक्र किया है. किताब में उन्होंने वर्ल्ड वॉर II में जान गंवाने वालों और जिंदा बचे रहने वाले लोगों की मानसिकता, स्थितियों को लेकर उनकी प्रतिक्रियाओं के बारे में लिखा है. इन कहानियों के साथ दी है उन्होंने कुछ कीमती सीख जो हमें मुश्किल समय में उम्मीद नहीं हारने की हिम्मत देती है.
फ्रैंकल इस किताब में लिखते हैं कि हम ये तो नहीं चुन सकते कि जिंदगी में हमारे हिस्से कौन से दर्द आएंगे. मगर इन दर्द का हमें सामना कैसे करना है, उसमें से जिंदगी जीने का मकसद कैसे ढूंढना है ये हम जरूर चुन सकते हैं. फ्रैंकल कहते हैं ऐसा करना मुश्किल जरूर है मगर अगर आपने ऐसा कर लिया तो यकीन मानिए अंत में आप खुद को इस हिम्मत के लिए जरूर शुक्रियाअदा करेंगे.
फ्रैंकल की इस थियरी को लोगोथेरेपी का नाम दिया गया है, जो स्पिरिचुअल सर्वाइवल भी कहलाती है. लोगोथेरेपी, ग्रीक शब्द लोगोस (logos) से मिलकर बना है. जिसका मतलब है जिंदगी का पहला मकसद किसी सुख में नहीं है बल्कि उस एक चीज को ढूंढना है जिससे हमें सबसे ज्यादा खुशी मिलती हो, जिससे हमारी जिंदगी के मायने पूरे होते हों.
यकीनन इस किताब को पढ़कर आपको हिटलर की बर्बरता का एक अलग रूप मालूम पड़ेगा. इसे पढ़ते हुए आपको रोना भी आ सकता है. मगर किताब आपको एक स्पिरिचुअल सर्वाइवल के तरीके बताती है जिसे आप अपनी जिंदगी में भी लागू कर सकते हैं.
मेरे हिसाब से मैन्स सर्च फॉर मीनिंग एक अति आशावादी किताब है. जो कहती है कि एक इंसान के तौर पर हम सबके अंदर अपने सभी दुख दर्द से ऊपर उठने की क्षमता है. क्षमता है, अपनी जिंदगी में छुपे असल मायने को ढूंढने की जो हमें सारे दर्द भुलाकर आगे बढ़ने की ताकत, हिम्मत देता है. वो मायने जिसके लिए हमें इस दुनिया में भेजा गया है, जिसे पूरा करने के लिए हमें हमेशा अपना 100 फीसदी देना चाहिए.