भारत में मासूम बच्चों को ऑफर से ललचा रहा ई-कॉमर्स कंपनियों का बाजार
विश्व बाजार में ऐसा घमासान मचा हुआ है कि ई-कॉमर्स कंपनियां हमारे देश में बच्चों तक को अपने प्रोडक्ट के ग्राहक के रूप में ढूंढ निकालने से बाज नहीं आ रही हैं। इन्ही हालात से निपटने के लिए भारत सरकार ने ई-मार्केटिंग पर भी नई नीतियों का शिकंजा कस दिया है। छोटी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नई नीति किसी वरदान से कम नहीं।
भारत सरकार एक ओर तो ई-कॉमर्स कंपनियों की बेलगाम मॉर्केटिंग पर नई नीतियों का शिकंजा कस रही है, दूसरी तरफ ऐसी कंपनियां बच्चों तक के बारे में निजी जानकारियां जुटाकर उनके स्वास्थ्य, खाने-पीने और उत्पादों पर छूट ऑफर करने में जुटी हुई हैं। ऑनलाइन फार्मा कंपनियां दिल्ली हाईकोर्ट में दलील तक दे चुकी हैं कि उन्हें ऑनलाइन दवाएं बेचने के लिए लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे तो दवांए बेचती नहीं, बल्कि सिर्फ ग्राहकों को उनकी डिलीवरी करती हैं।
इससे पहले ई-फार्मेसी के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट की रोक के बावजूद ई-फार्मेसीज ऑनलाइन दवाएं बेच रही हैं। उस समय केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट को बताया था कि ई-फार्मेसी के लिए नियम बनाए जा रहे हैं। इस बारे में संबंधित पक्षों से चर्चा की जा रही है।
पिछले साल नवंबर में ई-कॉमर्स प्लेटफार्म स्नैपडील की बोर्ड मीटिंग की एक अजीब और रोचक तस्वीर सामने आई थी। कंपनी की बोर्ड मीटिंग में कंपनी के अधिकारियों की जगह कुर्सी पर बच्चे कब्जा जमाए नजर आए। कंपनी चाहे जो भी कहे, उसके पीछे भी बच्चों के घरों तक पहुंचने का उद्देश्य ही प्राथमिक माना गया। बच्चों के सामने टेबल पर पड़े चिप्स वाली उस तस्वीर पर सोशल मीडिया पर कई मजेदार कमेंट हुए। एक यूजर ने लिखा कि मेरी टीचर ने मुझसे कहा है, चिप्स सेहत के लिए अच्छी नहीं हैं। एक ने लिखा कि उसके खयाल से फ्लिपकार्ट के विज्ञापन का मजाक बनाया गया है तो साई चरण ने लिखा कि इस बार बोर्ड मीटिंग में ये भविष्य के नन्हे-मुन्ने एक्जीक्यूटिव, डायरेक्टर्स आ गए क्या!
गौरतलब है कि विदेशी निवेश के ऑनलाइन मार्केटप्लेस के लिए घोषित नई नीति किसी ई-कॉमर्स कंपनी को उन सामानों की बिक्री अपने प्लैटफॉर्म से बेचने से रोकती है, जिनका उत्पादन वह खुद या उनकी कोई अनुषांगिक कंपनी करती हो। इतना ही नहीं, यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई वेंडर किसी पोर्टल पर ज्यादा-से-ज्यादा कितने सामान की बिक्री कर सकता है।
नई नीति में ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्स पर किसी सप्लायर को विशेष सुविधा दिए जाने पर भी रोक लगाई गई है। नई नीति के तहत कैशबैक, एक्सक्लूसिव सेल, ब्रैंड लॉन्चिंग, ऐमजॉन प्राइम या फ्लिपकार्ट प्लस जैसे ऑनलाइन शॉपिंग प्लैटफॉर्म्स को सरकार निष्पक्ष बनाना चाहती है। ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे महारथियों से टक्कर ले रही छोटी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नई नीति किसी वरदान से कम नहीं।
इस समय हमारे देश में सक्रिय अमेजन, फर्स्ट क्राई, पैरेंटलेन, जॉनसन एंड जॉनसन आदि कई ई-कॉमर्स कंपनियों की नजर बच्चों पर है। ये ई-कॉमर्स कंपनियां उनके अभिभावकों से दस साल तक के बच्चों के नाम, जेंडर, फोटो, पता, स्कूल, जन्मतिथि आदि जुटा रही हैं। बच्चों के निजी ब्योरे मिल जाने के बाद वे उनके माता-पिताओं को उनके बच्चों के स्वास्थ्य, खाने-पीने और उत्पादों पर ये कंपनियां तरह-तरह के छूट ऑफर कर रही हैं। सरकार ने एक ड्रॉफ्ट तैयार किया है, जिसके अनुसार बच्चों की ट्रैकिंग, प्रोफाइलिंग और विज्ञापन के जरिए टारगेट करने पर रोक लगाने का प्रस्ताव है। साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक कंपनियों द्वारा माता-पिता से बच्चों की निजी जानकारी अपने उत्पादों के बेचने के लिए गलत है। कंपनियां इस तरह का डाटा थर्ड पार्टी को बेच सकती हैं। इससे बच्चों के साथ होने वाले अपराध भी बढ़ सकते हैं। इसलिए ऐसी कंपनियों को अपने बच्चों के बारे में किसी तरह की जानकारी नहीं देनी चाहिए।
सरकारी नियम कठोर होने से ऐमजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियों को बड़ा झटका लग रहा है। वे बड़े-बड़े डिस्काउंट ऑफर्स के जरिए ग्राहकों को लुभाने में कामयाब रही हैं लेकिन, नया नियम लागू होने पर ऐसा संभव नहीं। एक विदेशी ई-कॉमर्स कंपनी को तो लगता है कि किसी ने ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट के बिजनस मॉडल का अध्ययन कर उसकी व्यवस्थागत बिगाड़ने का षड्यंत्र रचा है। उसकी दलील है कि ई-कॉमर्स कंपनियां तो भारत में नौकरियां दे रही हैं।
नई नीति कहती है कि अगर किसी कंपनी में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियों के शेयर हैं या उस कंपनी की इन्वेंटरी में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस या इसकी ग्रुप कंपनियों का नियंत्रण है तो उसे उस मार्केटप्लेस प्लैटफॉर्म पर प्रॉडक्ट्स बेचने की अनुमति नहीं होगी। नई नीति में इन्वेंटरी आधारित प्रावधानों को भी कठोर बनाया गया है।