इस यूनिवर्सिटी में MBBS की पढ़ाई होगी हिंदी में, अमित शाह ने किया ऐलान
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि "नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) ने मातृभाषा को बढ़ावा दिया है. ये समझाया है कि जब एक छात्र अपनी मातृभाषा में सोच सकता है तो वह उसी भाषा में समझ सकता है और बेहतर रिसर्च कर सकता है."
मेडिकल एडमिशन का इंतजार कर रहे स्टूडेंट्स के लिए बड़ी खबर है. सरकार इसी साल से एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई हिंदी (MBBS in Hindi) में शुरू करने जा रही है. यह ऐलान गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने किया है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020) की बात करते हुए अमित शाह ने कहा कि इस साल 16 अक्टूबर से छत्तीसगढ़ बिलासपुर की अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी (Atal Bihari Vajpayee University) में MBBS की पढ़ाई हिंदी में भी कराई जाएगी. गांधीनगर में गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के नए कैंपस के शिलान्यास के दौरान शाह ने ये जानकारी दी है.
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि "नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) ने मातृभाषा को बढ़ावा दिया है. ये समझाया है कि जब एक छात्र अपनी मातृभाषा में सोच सकता है तो वह उसी भाषा में समझ सकता है और बेहतर रिसर्च कर सकता है."
शाह ने कहा कि "जब स्टूडेंट्स अपनी मातृभाषा में सोच, बोल और पढ़ सकते हैं तो वो इसमें बेहतर शोध भी कर सकते हैं. रट्टा मारकर सीखी गई चीज में वो बात नहीं आ पाती. यही कारण है कि अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी में MBBS का पहला सेमेस्टर पूरी तरह से हिंदी में होगा."
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लाभ गिनाते हुए शाह ने कहा कि "NEP सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि पूरी लाइब्रेरी है. इसमें भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृतियों को प्राथमिकता दी गई है. वहीं मोदी जी ने टेक्नोलॉजी की मदद से लोगों की जीवनशैली बेहतर बनाने की पहल की है."
मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि पहले गुजरात के युवाओं को ज्यादा फीस देकर इंजीनियरिंग या मेडिसिन की पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति को उलट दिया और राज्य में अब 102 विश्वविद्यालय काम कर रहे हैं. अब स्टूडेंट्स को कहीं जाने की जरूरत नहीं है.
इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में
आपको बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में MBBS की पढ़ाई हिंदी में कराने की घोषणा से पहले मध्यप्रदेश सरकार ने भी 26 जनवरी, 2022 को घोषणा की थी कि भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज में भी पहले सत्र के छात्रों को MBBS की पढ़ाई हिंदी में कराई जाएगी. उन्होंने फैसला लेते हुए कहा कि अब से इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्स की पढ़ाई भी हिंदी मीडियम में होगी.
इसके अलावा, बीते साल, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने कहा था कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई अब हिंदी सहित सभी दूसरी भारतीय भाषाओं में भी होगी. AICTE ने फिलहाल नए शैक्षणिक सत्र से हिंदी सहित आठ भारतीय भाषाओं में इसे पढ़ाने की मंजूरी दे दी है. आने वाले दिनों में AICTE की योजना करीब 11 भारतीय भाषाओं में इसे पढ़ाने की है. इस बीच हिंदी के साथ इसे जिन अन्य सात भारतीय भाषाओं में पढ़ाने की मंजूरी दी गई है, उनमें मराठी, बंगाली, तेलुगु, तमिल, गुजराती, कन्नड़ और मलयालम शामिल हैं.
AICTE ने यह पहल उस समय की है, जब जर्मनी, रूस, फ्रांस, जापान और चीन सहित दुनिया के दर्जनों देशों में पूरी शिक्षा ही स्थानीय भाषाओं में दी जा रही है. हाल ही में देश में आई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी स्थानीय भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर जोर दिया है.
सरकार का मानना है कि स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई से बच्चे सभी विषयों को बेहद आसानी से बेहतर तरीके से सीख सकते हैं. जबकि अंग्रेजी या फिर किसी दूसरी भाषा में पढ़ाई से उन्हें दिक्कत होती है. इस पहल से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों से निकलने वाले बच्चों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, क्योंकि मौजूदा समय में वह इन कोर्सों के अंग्रेजी भाषा में होने के चलते पढ़ाई से पीछे हट जाते हैं.
AICTE के चेयरमैन प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे ने तब कहा था कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों को आगे बढ़ाते हुए यह पहल की गई है. अभी तो सिर्फ हिंदी सहित आठ स्थानीय भारतीय भाषाओं में पढ़ाने की अनुमति दी गई है. आने वाले दिनों में 11 स्थानीय भाषाओं में भी इंजीनियरिंग कोर्स की पढ़ाई करने की सुविधा रहेगी.
प्रोफेसर सहस्रबुद्धे के मुताबिक अब तक 14 इंजीनियरिंग कालेजों ने ही हिंदी सहित पांच स्थानीय भाषाओं में पढ़ाने की अनुमति मांगी है, जहां हम इसे शुरू करने जा रहे है. पाठ्यक्रमों को इन सभी भाषाओं में तैयार करने का काम शुरू कर दिया है. सबसे पहले फर्स्ट ईयर का कोर्स तैयार किया जाएगा. एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में पिछले कई वर्षों से कुछ संस्थानों में कराई जा रही है. अब इसे विस्तार दिया गया है.
हिंदी मीडियम से पढ़ने के बाद करियर तो रहेगा, लेकिन अभ्यर्थी सिर्फ उस राज्य तक ही सीमित रह सकेंगे. दूसरे राज्यों और देशों में जाकर काम करने की उनकी सारी उम्मीदें खत्म हो जाएंगी.
इसके साथ ही इसे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी एक अहम कदम कहा जा सकता है.