मिलें आयशा नाज़िया से, फीफा मास्टर प्रोग्राम 2021 के लिए चुने गए 30 लोगों में एकमात्र भारतीय महिला हैं आयशा
इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम के लिए 700 से अधिक वैश्विक आवेदनों में से चुने गए 30 लोगों में से आयशा एकमात्र भारतीय महिला है और उन्हें साथ ही 50 प्रतिशत छात्रवृत्ति भी मिली है।
"आयशा अपने पूरे अकादमिक करियर में टॉपर रही हैं। उन्हें टीकेएम इंजीनियरिंग कॉलेज, कोल्लम में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और इसके लिए उन्हें केरल सरकार से 8 लाख रुपये की छात्रवृत्ति भी मिली थी। 18 साल की उम्र में आयशा ने स्वतंत्रता की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी थी और इस बीच उन्हें परिवार के जैसा एक अच्छे दोस्तों का समूह भी मिला।"
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26 साल की आयशा नाज़िया केरल के कोझीकोड की रहने वाली हैं और फुटबॉल की दीवानी हैं। फुटबॉल के प्रति यह लगाव नाज़िया के लिए स्वाभाविक है, क्योंकि वह अपने पास इस खेल को देखते हुए बड़ी हुई हैं। वास्तव में, आयशा इस बारे में जानने को अधिक उत्सुक थी कि मैदान से इतर पर्दे के पीछे खेल का पूरा प्रबंधन किस तरह होता है, जो जीत या हार में बड़ा रोल अदा करता है।
हालाँकि, उनके लिए फ़ुटबॉल पेशेवर बनने या इस साल फीफा मास्टर कोर्स के लिए चुने गए 30 लोगों में से एकमात्र भारतीय महिला बनने की यात्रा आसान नहीं थी। आयशा के माता-पिता का तलाक तब हुआ जब वह पांच साल की थी, फिर उनकी माँ ने दूसरी शादी की। इसके बाद अपने सौतेले पिता के साथ रहना आयशा के लिए एक कठिन परीक्षा थी।
आयशा याद करती हैं,
“मैं अपनी स्कूली शिक्षा चेन्नई में कर रही थी, जहाँ स्कूल एक अनाथालय से जुड़ा हुआ था। मुझे अक्सर आश्चर्य होता था कि क्या माता-पिता का कोई जोड़ा मुझे अपनाएगा। कॉन्वेंट में नन मुझे कड़ी मेहनत करने के लिए कहती थीं और उस दौरान मुझे लगता था कि मेरे दयनीय जीवन से बाहर निकलने का यही एकमात्र तरीका है।”
आयशा अपने पूरे अकादमिक करियर में टॉपर रही हैं। उन्हें टीकेएम इंजीनियरिंग कॉलेज, कोल्लम में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और इसके लिए उन्हें केरल सरकार से 8 लाख रुपये की छात्रवृत्ति भी मिली थी। इस प्रकार, 18 साल की उम्र में आयशा ने स्वतंत्रता की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी थी और इस बीच उन्हें परिवार के जैसा एक अच्छे दोस्तों का समूह भी मिला।
हुई असली खेल की शुरुआत
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अपना कोर्स पूरा करने के बाद, आयशा को इंडियन ऑयल-अडानी गैस में मैकेनिकल इंजीनियर के रूप में नौकरी मिल गई और वह कोच्चि चली गईं। जब तक आयशा टीनेजर थी, वह पहले ही तीन फुटबॉल विश्व कप देख चुकी थी और इस खेल में उसकी रुचि हमेशा से हुई अधिक थी। वह अपनी नौकरी के साथ-साथ खेल में एक अवसर की तलाश में थी और यह करियर उन्हें अधिक प्रभावी भी लग रहा था।
वह कहती हैं,
“जब 2017 में फीफा अंडर-17 विश्व कप भारत आया, तो मैंने टीम का हिस्सा बनने के लिए आवेदन किया था। मुझे लगा कि मेरे पास भी खेल प्रबंधन की डिग्री नहीं है, लेकिन मेरे पास विश्लेषणात्मक, संज्ञानात्मक और प्रॉब्लेम सॉल्विंग जैसे अन्य गुण हैं और इसके लिए मैं मेरी इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि की शुक्रगुजार हूँ। मैंने इंटरव्यू पास किया और मुझे वर्कफोर्स मैनेजर नियुक्त किया गया। 23 साल की उम्र में मैं उनकी सबसे छोटी कर्मचारी बन गई।”
वह बताती हैं कि यह "चीफ-ऑफ-स्टाफ" की भूमिका की तरह था, जहां वे सभी विभागों के लिए काम करने वाले लोगों को मैनेज कर रही थीं। इससे उन्हें इस बात की बहुमूल्य जानकारी मिली कि खेल उद्योग कैसे काम करता है और वह इसमें क्या कर सकती है।
जब नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) भारत आया, तो आयशा भी उस आयोजन का हिस्सा थी। आयशा टीम में 200 अमेरिकियों में एक भारतीय थीं। प्रत्येक अनुभव के साथ वह और अधिक सीखते हुए भारत में खेल प्रबंधन क्षेत्र में अपनी साख स्थापित कर रही थीं।
एक बेहद ताकतवर करियर
खेल के मैदान में ध्यान देने के लिए आयशा ने इंडियन ऑयल में अपनी नौकरी छोड़ दी। एक सुरक्षित आय अर्जित करने में सक्षम होने के लिए उन्होंने एक्वाकनेक्ट और स्पॉटबेल जैसे बेंगलुरु में अग्रणी स्टार्टअप के साथ प्रॉडक्ट कंसल्टिंग शुरू कर दी। यहाँ उनकी खेल भावना को भी पहचाना गया और जब उन्हें इवेंट में भाग लेना पड़ा तो उन्हें प्रोत्साहित भी किया गया।
वह कहती हैं,
“मैं एक हॉरिजॉन्टल कैरियर किस्म की व्यक्ति हूं। मैं एक बार में कई काम करती हूं। मैं अपने काम में बहुत सुलझी हुई हूं, मेरा जीवन गूगल डॉक्स पर चलता है और जो लोग मुझे जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि भले ही मैं एक ही समय में तीन काम करती हूं, मैं समय पर जो चाहती हूं उसे पूरा करती हूं।”
बहुत सी महिलाएं खेल प्रबंधन को फुल टाइम जॉब की तरह नहीं लेती हैं और आयशा इसका कारण बताती बताती हैं कि ऐसा क्यों है?
वह कहती हैं,
“मेरे मुख्य उद्योग चाहे वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग हो या खेल प्रबंधन, यहाँ बहुत सारी महिलाएं नहीं हैं। यह कोई डेस्क जॉब नहीं है। यदि आप खेल में हैं, तो आप चिलचिलाती धूप में स्टेडियम में खड़ी रहती हैं, जहाँ आपको दिन में 500 बार पिच पर घूमना पड़ता है। यह शारीरिक रूप से जला देने वाला होता है। इसके अलावा, यहाँ कोई वर्क-लाइफ बैलेंस नहीं है। कारण है कि कई महिलाएं इंडस्ट्री में बने रहना नहीं चाहती हैं।"
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2015 में जब आयशा ने पहली बार फीफा मास्टर कोर्स के बारे में सुना तभी वह इसके प्रति आकर्षित हुई थीं। एक साल का कार्यक्रम डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी (यूके), एसडीए बोकोनी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (इटली), और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूचैटेल (स्विट्जरलैंड) में पढ़ाए जाने वाले इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्पोर्ट्स स्टडीज द्वारा आयोजित प्रबंधन, कानून और ह्यूमैनिटीज़ ऑफ स्पोर्ट्स में एक अंतर्राष्ट्रीय मास्टर कोर्स प्रदान करता है।
फीफा मास्टर के लिए क्राउडफंडिंग
इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम के लिए 700 से अधिक वैश्विक आवेदनों में से चुने गए 30 लोगों में से आयशा एकमात्र भारतीय महिला थीं और उन्हें साथ ही 50 प्रतिशत छात्रवृत्ति भी मिली थी।
वह कहती हैं,
“यह बहुत रोमांचक है क्योंकि वे हमें इस तरह से प्रशिक्षित करते हैं जो हमारे लिए कई दरवाजे खोलता है। हमारे पास फीफा मुख्यालय, आईओसी समिति और फॉर्मूला वन मुख्यालय के साथ-साथ कुल 80 फील्ड विजिट होती हैं। साथ ही, पाठ्यक्रम के अंत में फीफा नौकरी के लिए तीन लोगों का चयन करता है। यह मेरे लिए आवेदन करने के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहा था।”
मेरिट स्कॉलरशिप के बाद अब आयशा कोर्स में शामिल होने के लिए करीब 28 लाख रुपये की क्राउडफंडिंग कर रही हैं। उन्होने फंडिंग के लिए विभिन्न संगठनों के दरवाजे खटखटाने की कोशिश की लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ है।
वह आगे कहती हैं,
“मैंने बैंक लोन का विकल्प चुना चुन लिया होता, लेकिन मेरे पास देने के लिए कोई संपत्ति नहीं है। इसलिए, मैंने क्राउडफंडिंग के रास्ते पर जाने का फैसला किया।”
सितंबर में शुरू होने वाले कोर्स के साथ आयशा अब मिलने वाली हर मदद का इस्तेमाल करना चाहती हैं। जब उन्होने लिंक्डइन पर घोषणा की कि वह अपनी पढ़ाई के लिए क्राउडफंडिंग कर रही है, तो उन्हें अपनी पोस्ट पर एक हफ्ते में 38,000 से अधिक रिएक्शन मिले।
वह कहती हैं,
“अगर उन सभी 38,000 लोगों ने सिर्फ 100 रुपये का योगदान दिया होता, तो मैं अपने लक्ष्य तक पहुँच जाती, लेकिन दुर्भाग्य से, लोग इसे इस तरह से नहीं देखते हैं।”
सब कुछ के बावजूद, आयशा आश्वस्त है। आखिरकार, यह हर उस महिला के लिए एक समान खेल का मैदान बनाने के लिए लड़ने और जीतने की एक और लड़ाई है, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने की इच्छा रखती है। इसके बावजूद, आयशा आश्वस्त हैं। दरअसल यह हर उस महिला की लड़ाई है, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने की इच्छा रखती है।
Edited by Ranjana Tripathi