मर्सिडीज निर्माता कंपनी के चेयरमैन को मिलेगी रोजाना 3.44 लाख की पेंशन
जब किसी व्यक्ति को नौकरी से रिटायर होने के बाद प्रतिदिन लगभग साढ़े तीन लाख पेंशन मिलने लगे, यह जानकर किसी को भी हैरत हो सकती है, लेकिन यह सच है। आज की दुनिया में आर्थिक गैरबराबरी पर चाहे जितनी बातें होती रहें, मर्सिडीज कार बनाने वाली कंपनी के चेयरमैं डीटर सेचे को तो इस साल मई में रिटायर होने के बाद रोजाना के हिसाब से 3.44 लाख रुपए पेंशन मिलने लगेगी।
दुनिया में इस समय दो तरह के काम सबसे मलाईदार पेशे में शुमार हो चुके हैं। उद्योग और राजनीति। जर्मनी की मर्सिडीज बनाने वाली कंपनी डायमलर के चेयरमैन डीटर सेचे को प्रतिदिन 3.44 लाख रुपए पेंशन मिलने की बात ने जहां पूरे विश्व के उद्योग जगत में हलचल सी मचा दी है, वही भारत के राजनेताओं की आय भी उसी तरह अचंभित करने वाली है। कर्नाटक के विधायकों की औसतन सालाना कमाई 1.1 करोड़ है। इस मामले में पूर्वी राज्यों के विधायक 8.5 लाख की औसत के साथ सबसे नीचे हैं। विडंबना यह है कि निरक्षर विधायकों की सालाना कमाई भी 9.3 लाख रुपये है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (न्यू) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में एक ओर तो 3.10 करोड़ शिक्षित युवाओं को नौकरियों की तलाश है, विधायकों की कमाई के इन आंकड़ों से इंजीनियरों, एमबीबीएस की डिग्री लेकर कॉलेज से निकलने वाले डॉक्टरों और एमबीए डिग्रीधारियों को भी जलन हो सकती है।
एडीआर और न्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के दक्षिणी राज्यों के 711 विधायकों की औसतन सालाना आय 52 लाख रुपए यानी हर महीने औसतन 4.33 लाख रुपए बताई गई है। देश के कुल 4,086 विधायकों में से जिन 3,145 लोगों के हलफनामों के आधार पर उक्त नतीजे सामने आए हैं, उनमें से एक तिहाई कम पढ़े-लिखे विधायकों की औसतन सालाना कमाई ग्रेजुएट व पोस्ट-ग्रेजुएट विधायकों के मुकाबले ज्यादा है। निरक्षर विधायकों तक की सालाना कमाई औसतन 9.3 लाख रुपए है। कई राजनेताओं को तो अब भी अपनी कमाई कम लगती है, जबकि देश के पढ़े-लिखे 3.10 करोड़ बेरोजगार नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। कई सामाजिक संगठनों ने आय के इस अंतर की खाई को पाटने की गुहार लगाई है, जिसका हमारे सिस्टम पर कोई असर नजर नहीं आता है।
अब आइए, जरा 'डायमलर' (मर्सिडीज बनाने वाली कंपनी के) चेयरमैन डीटर सेचे के बारे में जानते हैं। वह इस साल 2019 के अंत में रिटायर होने वाले हैं। उनके प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया है कि उनकी पेंशन डील पर फैसला 2017 में हो चुका था। इसके अलावा डायमलर के मैनेजरों के लिए बनाए गए पेंशन फंड से भी सेचे को पांच लाख यूरो प्रतिवर्ष मिल सकते हैं। इस तरह रिटायरमेंट के बाद उनको रोजाना (4,250 यूरो) करीब 3.44 लाख रुपए पेंशन के रूप में मिलेंगे। गौरतलब है कि 'डायमलर' एक जर्मन बहुराष्ट्रीय मोटर वाहन निगम है, जिसका मुख्यालय स्टटगार्ट, बाडेन-वुर्टेमबर्ग में स्थित है। दो बड़ी कंपनियों के विलय से इसका 1926 जन्म हुआ था।
सन् 1998 में अमेरिकी ऑटोमोबाइल निर्माता क्रिसलर कॉर्पोरेशन का अधिग्रहण करने पर कंपनी का नाम बदलकर DaimlerChrysler कर दिया गया और 2007 में फिर से क्रिसलर के विभाजन पर Daimler का नाम बदल दिया गया। 2014 तक डेमलर के पास मर्सिडीज-बेंज, मर्सिडीज-एएमजी, स्मार्ट ऑटोमोबाइल, डेट्राइट डीजल, फ्रेटलाइनर, वेस्टर्न स्टार, थॉमस बिल्ट बसें, सेतरा, भारतबेंज, मित्सुबिशी फुसो, एमवी सहित कई कार, बस, ट्रक और मोटरसाइकिल ब्रांड के शेयर हैं। Agusta के साथ-साथ Denza, KAMAZ और बीजिंग ऑटोमोटिव ग्रुप में इसके शेयर हैं। वर्ष 2012 के अंत में लक्जरी मेबैक ब्रांड को समाप्त कर दिया गया था, लेकिन अप्रैल 2015 में मर्सिडीज-बेंज एस-क्लास और जी-क्लास के मर्सिडीज-मेबैक संस्करणों के रूप में पुनर्जीवित किया गया। वर्ष 2017 में डेमलर ने 3.3 मिलियन वाहन बेचे। यूनिट की बिक्री से, डायमलर तेरहवीं सबसे बड़ी कार निर्माता है और दुनिया में सबसे बड़ी ट्रक निर्माता भी। डायमलर वित्तीय सेवाएं भी प्रदान करती है। यह कंपनी यूरो स्टॉक मार्केट इंडेक्स के एक घटक के रूप में भी जानी जाती है।
बताते हैं कि चेयरमैन सेचे के पास और ज्यादा पैसा कमाने का विकल्प भी खुला है। वर्ष 2021 से वह डायमलर के बोर्ड को ज्वाइन कर सकते हैं। सेचे जर्मन कंपनियों के इतिहास में सबसे ज्यादा पेंशन पाने वाले शख्स बनने जा रहे हैं। इससे पहले डी़जल कांड में फंसे फोल्क्सवागेन के पूर्व प्रमुख मार्टिन विंटरकॉर्न सबसे ज्यादा पेंशन वाले शख्सियत रहे हैं। सेचे को सन् 2020 से यह भारी-भरकम पेंशन मिलने लगेगी। जर्मनी में न्यूनतम मजदूरी 8.84 यूरो प्रतिघंटा यानी 1,500 यूरो प्रतिमाह है। इसके साथ ही जर्मनी में करीब बीस प्रतिशत लोग गरीबी रेखा पर पहुंचने के लिए अग्रसर है।
आज जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी न्यूनतम आय की गारंटी का शगूफा छोड़ चुके हैं, उनकी दादी इंदिरा गांधी अपने वक्त में 'गरीबी हटाओ' का नारा दे चुकी हैं (जो तब से सुरसा की तरह मुंह फाड़े हुए लगातार बढ़ती ही जा रही है), यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार विरोधी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक, पिछले साल दुनिया के दो तिहाई से ज्यादा देश सौ में से 50 अंक पाने में विफल रहे हैं। भारत की स्थिति पिछले साल के मुकाबले एक अंक सुधरकर अब 78वें स्थान पर है। उधर, अमेरिकी शोध संस्था की ओर से भारत में गरीबी को लेकर जारी ताजा आंकड़े में बताया गया है कि भारत में लगभग 7.3 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। यद्यपि इस रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़े भारत में दर्ज किए जाने वाले आंकड़ों से मेल नहीं खाते हैं।
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