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अलविदा मजदूरों के मसीहा जॉर्ज फर्नांडिस

अलविदा मजदूरों के मसीहा जॉर्ज फर्नांडिस

Wednesday January 30, 2019 , 4 min Read

जॉर्ज फर्नांडिस (तस्वीर साभार- डेक्कन)

किसी जमाने में देश में बेमिसाल आंदोलनों की अगुवाई करने वाले मजदूरों के मसीहा जॉर्ज फर्नांडिस नहीं रहे। जिस वक्त ऐतिहासक रैलियों में वह भाषण दिया करते, उनको सुनने में मुग्ध भीड़ इसलिए भरसक तालियां बजाने से बचती थी ताकि उनकी कोई बात सुनने से न रह जाए। वह तीन बार देश के केंद्रीय मंत्री बने। कारगिल युद्ध के दौरान वही देश के रक्षा मंत्री थी।


सन 1950-60 के दशक में कई एक मजदूर आंदोलनों का जोरदार डंका बजाने वाले जॉर्ज फर्नांडिस (88) आज दुनिया से विदा हो गए। वह अल्जाइमर्स (भूलने की बीमारी) से पीड़ित थे। कुछ दिन पहले उन्हें स्वाइन फ्लू भी हो गया था। देश का रक्षामंत्री रहते हुए वह रिकॉर्ड 30 से अधिक बार सियाचिन के दौरे पर गए। मजदूरों के मसीहा, ये वही जॉर्ज फर्नांडिस थे, जिनको इमरजेंसी के दौरान बड़ौदा डाइनामाइट केस में गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में रहने के दौरान वह कैदियों को श्रीमद्भागवतगीता पढ़कर सुनाया करते थे। 


3 जून 1930 को जन्मे जॉर्ज भारतीय ट्रेड यूनियन के नेता थे। वे पत्रकार भी रहे। वह मूलत: मैंगलोर (कर्नाटक) के रहने वाले थे। 1946 में परिवार ने उन्हें पादरी का प्रशिक्षण लेने के लिए बेंगलुरु भेजा। 1949 में वह बॉम्बे आ गए और ट्रेड यूनियन मूवमेंट से जुड़ गए। वह सन् 1967 में दक्षिण बॉम्बे से कांग्रेस के एसके पाटिल को हराकर पहली बार सांसद बने। इसके बाद वह 1975 में बिहार की मुजफ्फरपुर सीट से जीतकर संसद पहुंचे। मोरारजी सरकार में केंद्रीय उद्योग मंत्री बने। इसके अलावा उन्होंने वीपी सिंह सरकार में रेल मंत्री का पद भी संभाला। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार (1998-2004) में उनको रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। कारगिल युद्ध के दौरान वही रक्षा मंत्री रहे थे।


सन 1974 में ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन के अध्यक्ष रहते हुए फर्नांडीस ने बड़ी रेल हड़ताल बुलाई थी। बंद का असर यह हुआ कि देशभर की रेल व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई। हड़ताल को कई ट्रेड यूनियनों, बिजली और परिवहन कर्मचारियों ने भी समर्थन दिया था। 8 मई 1974 को शुरू हुई हड़ताल के बाद सरकार ने इसे रोकने के लिए कई गिरफ्तारियां कीं। एम्नेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने विरोध को कुचलने के लिए हड़ताल में शामिल 30 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया था। वह इमरजेंसी के दिनो में सिखों की वेशभूषा में छिपते-छिपाते घूमा करते थे।


गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को लेखक खुशवंत सिंह बताते थे। सन् 2003 में विपक्ष ने कैग का हवाला देते हुए जॉर्ज पर ताबूत घोटाले के आरोप लगाए। जॉर्ज ने चुनौती देते हुए कहा था- 'अगर आप (विपक्ष) ईमानदार हैं, तो कल तक मुझे सबूत लाकर दें। मैं इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं।' अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने फर्नांडिस को कारगिल ताबूत घोटाले में पूरी तरह निर्दोष करार दिया। जिंदगी आखिरी दिनों में दिल्ली का 3, कृष्ण मेनन मार्ग उनका निवास था। यहां उनके ठिकाने वाले मकान का न कोई गेट था, न वहां कोई सुरक्षाकर्मी।


दिल्ली में उन्होंने आज सुबह 7 बजे मैक्स हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली। यह बहुतों को मालूम नहीं है कि जॉर्ज दास भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन के जानकार थे। उनकी मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं। उन्हीं के नाम पर अपने छह बच्चों में से सबसे बड़े का नाम उन्होंने जॉर्ज रखा था। सन् 1974 की रेल हड़ताल के बाद वह कद्दावर नेता के तौर पर उभरे और उन्होंने बेबाकी के साथ इमर्जेंसी लगाए जाने का विरोध किया था। 


उन्होंने आपात काल के बाद सन् 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से रेकॉर्ड मतों से जीता था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कुल तीन मंत्रालयों का कार्यभार संभाला - उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय। उनकी शुरुआती छवि एक मुखर विद्रोही नेता की रही थी। मुंबई में शुरुआती राजनीतिक जीवन के बारे में उन्होंने कभी एक इंटरव्यू में बताया था कि वह कभी-कभी चौपाटी पर सो जाया करते थे। वह उन दिनो में मुंबई के फुटपाथ पर खाना खाते थे।


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