'अयोग्य' माइक्रो-बिजनेस सेक्टर को छोटी राशि के लोन देकर कैसे मदद कर रही है ये जोड़ी
सूक्ष्म और लघू कंपनियों की क्रेडिट से जुड़ी अधूरी जरूरतों को पूरा करने के लिए 2019 में मनीबॉक्स की स्थापना की गई है। तब से दो सालों के अदंर यह कपंनी 90 करोड़ रुपये का कर्ज आवंटित कर चुकी है। साथ ही वित्त वर्ष 2020 में इसने 4.17 करोड़ रुपये की आय भी अर्जित की।
देश में करीब 6.3 करोड़ सूक्ष्म, लघू और मध्यम साइज की कंपनियां (MSME) हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण आधार है। इन कंपनियों का देश की जीडीपी में 30 प्रतिशत और एक्सपोर्ट्स में 48 पर्सेंट योगदान है। साथ ही यह 11 करोड़ लोगों को रोजगार भी देती है। पिछले कुछ सालों इन कंपनियों की अहमियत तेजी से बढ़ी है।
देश के विकास में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद, यह सेक्टर क्रेडिट की कमी से जूझ रहा है। इसके चलते कई कंपनियों को अपना व्यवसाय बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसमें भी सबसे बुरी तरह सूक्ष्म सेगमेंट की कंपनियां प्रभावित है, जिसमें छोटे खुदरा व्यापार और मरम्मत की दुकानें शामिल हैं। इन्हें बैंकों और फिनटेक संस्थानों की ओर से आसानी से लोन मिलता है कयोंकि वे अपर्याप्त संपत्ति और कम पूंजी के कारण एमएसएमई सेक्टर को उच्च जोखिम वाले उधारकर्ताओं के रूप में देखती हैं। ऐसे में ये कंपनियां अनौपचारिक स्रोतों से महंगे दर पर फंड जुटाने को तरजीह देती हैं।
हाल के वर्षों में एमएसएमई के लिए फाइनेंसिंग के मौजूद विकल्पों की संख्या बढ़ी है। हालांकि इसके बावजूद एमएसएमई सेक्टर में करीब 25.8 ट्रिलियन ($ 397 बिलियन) के क्रेडिट गैप के होने का अनुमान है।
मनीबॉक्स (Moneyboxx) फाइनेंस के को-फाउंडर, को-सीईओ और सीएफओ दीपक अग्रवाल ने YourStory को बताया,
“सेक्टर को लोन देने के मामले में बैंक और एनबीएफसी के सामने अंडरराइटिंग से कई तरह की चुनौतियां आती है। इसमें क्रेडिट हिस्ट्री की कमी, औपचारिक बिजनेस के जुड़े कागजात और कोलैटरल जैसी चीजें शामिल हैं। वहीं फिनटेक कंपनियां डेटा की कमी के चलते इस सेक्टर को सेवाएं नहीं दे पाती हैं। इस सेगमेंट की चुनौतियों को दूर करने के लिए जमीनी स्तर पर उपस्थिति जरूरी है, जिससे आप प्रभावी तरीके से अंडरराइंटिंग और कोलैटरल से जुड़े कार्य कर पाएं। यहीं, मनीबॉक्स ‘खोए हुए पुल’ की भूमिका निभाता है।”
बैंकों और एनबीएफसी द्वारा नकारे जा चुके सूक्ष्म और लघु कंपनियों (MSE) की क्रेडिट जरूरतों को पूरा करने के विचार ने उन्हें मनीबॉक्स को शुरू करने की प्रेरणा दी। यह मुंबई मुख्यालय वाली एक छोटे साइज के अनसिक्योर्ड लोन देने वाली कंपनी है। मनीबॉक्स को शुरू करने में इनका साथ मयूर मोदी ने, जो कंपनी के को-सीईओ और सीओओ हैं।
इंडिविजुअल लोन देना
पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, दीपक और मयूर ने वित्त वर्ष में 18 साल बिताए थे। कैपिटल फंडिंग (पीई, डेट और वेंचर कैपिटल), कैपिटल स्ट्रक्चर ऑप्टिमाइजेशन, क्रेडिट और इंडस्ट्री रिस्क और ग्रोथ और स्ट्रेटेजी कंसल्टिंग से जुड़े काम में उनकी विशेषज्ञता थी।
दीपक बताते हैं कि इंडस्ट्री में कुछ वक्त गुजारने के बाद उन्होंने पाया कि भारत के बिजनेस पिरामिड के सबसे निचले हिस्स में मौजूद कंपनियों की क्रेडिट जरूरतों को मोटे तौर पर कई माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (MFI) पूरा करते हैं, जिन्होंने 2.28 ट्रिलयन के छोटे ग्रुप लोन दे रखे हैं।
5 लाख रुपये से अधिक राशि वाले सिक्योर्ड लोन को लेकर भी बैंक और एनबीएफसी आक्रामक रूप से जोर देते हैं। साथ ही वेतनभोगी व्यक्तियों और कागजी सबूत वाली कंपनियों को क्रेडिट देने को भी बैंक और फिनटेक सक्रिय रूप से लगे रहते हैं। हालांकि, वह कहते हैं कि 50,000 रुपये से लेकर 5 लाख रुपये के बीच के असुरक्षित बिजनेस लोन लोगों को देने में बेहद कंजूसी की जाती है। इसके चलते एक विशाल बाजार बनने के साथ माइक्रोफाइनेंस क्रेडिट कंपनियों के लिए लोगों को लोन देने का मौका भी मिलता है।
इसी जगह पर दोनों ने अपने लिए मौका देखा और 20 करोड़ की शुरुआती इक्विटी पूंजी के साथ इस मार्केट में उतरने का फैसला किया।
मनीबॉक्स बॉक्स कैपिटल के तौर पर पंजीकृत हुई इस कंपनी ने 2018 में धानुका कमर्शियल लिमिटेड का अधिग्रहण किया, जो शेयर बाजार में एक लिस्टेड एनबीएफसी थी। फिर इसे नए ओनरशिप और मैनेजमेंट के साथ 'मनीबॉक्स फाइनेंस लिमिटेड' के नए नाम से लॉन्च किया गया।
दीपक का कहना है कि मनीबॉक्स व्यक्तियों को भी लोन देता है, जो पूरे एमएफआई सेगमेंट में बहुत ही कम ध्यान दिया जाने वाला मार्केट है। MFI डेट मार्केट करीब 2.27 करोड़ रुपये का है। वहीं इसके मुकाबले 'मिसिंग मिडल' यानी की व्यक्तियों को दिया जाने वाला डेट सेगमेंट सिर्फ 0.94 ट्रिलियन का है। इस डेट सेगमेंट में 50,000 से 1,00,000 तक की लोन राशि आती है। 'आये फाइनेंस' जैसी कई और कंपनियां भी अब इस सेक्टर में तेजी से पैर पसार रही हैं।
मनीबॉक्स की स्थापना सूक्ष्म कंपनियों के लिए आसान, कम लागत वाली और टेक्नोलॉजी आधारित फाइनेंसिंग समाधान प्रदान करना और इस सेक्टर की क्रेडिट संबंधी अधूरी जरूरतों को पूरा करने के इरादे से किया गया है। यह कंपनी बीएसई में सूचीबद्ध है और अधिकतर भारत के टियर II और III शहरों में सूक्ष्म और लघु उद्यमों को 50,000 रुपये से लेकर 3,00,000 रुपये तक के छोटी राशि वाले लोन देती है और बदले में 27 प्रतिशत ब्याज वसूलती है।
मनीबॉक्स की चार राज्यों में 22 शाखाएं खुल चुकी हैं और 31 मार्च, 2021 तक इसका एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) करीब 64 करोड़ रुपये था। वित्त वर्ष 2020 में कंपनी को 4.17 करोड़ की आय हुई थी और पिछले 9 महीनों में इसने 7.20 करोड़ रुपये बनाए हैं।
ग्राहकों पर प्रभाव
मनीबॉक्स ने अपना पहला लोन फरवरी 2019 में राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले दो संयुक्त आवेदकों बबीता कुमारी और चतुर सिंह को दिया, जो पशुपालन का काम करते थे। मवेशियों को खरीदने के लिए गए लोन की कुल राशि 1,51,000 रुपये थी, जिसे 11 महीने में आवंटित किया गया था।
दीपक ने बताया, "हम उन सूक्ष्म उद्यमों और स्व-रोजगार वाले लोगों को लोन प्रदान करते हैं, जिनके पास औपचारिक ऋण तक पहुंचने का साधन नहीं है, लेकिन उनके निवेश पर मजबूत रिटर्न मिलता है। इससे लेंडर्स के लिए लोन के बैड लोन में बदलने का खतरा कम हो जाता है।"
अंडरराइटिंग प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए, वे कहते हैं कि मनीबॉक्स के फाइनेंसिंग की प्रकृति व्यवसायों के विकास और विस्तार के लिए है, और कंपनी काम करने के एक 'फिजिटल' मॉडल का पालन करती है।
दीपक ने बताया, “हम एक शुद्ध फिनटेक लेंडर नहीं हैं। फिर भी हम डिजिटल प्रक्रियाओं और तकनीक-सक्षम निर्णय लेने के लिए टेक्नोलॉजी का भरपूर लाभ उठाते हैं। हालांकि साथ ही हम यह भी समझते हैं कि हमारे टारगेट सेगमेंट के बॉरोअर्स के पास अपनी आय करने के लिए नियमित दस्तावेज नहीं होते हैं। ऐसे में फैसले को सिर्फ टेक्नोलॉजी पर ही नहीं छोड़ा जा सकता है।”
मनीबॉक्स के पास लोन रिलेशनशिप ऑफिसर्स (LROs) की एक टीम है, जो कोल्ड कॉलिंग और मौजूदा कस्टमर के रेफरेंस के जरिए ग्राहकों से सीधे लीड जुटाती है। उन्होंने बताया, "हम अपने लोन को सोर्स करने के लिए किसी भी डीएसए या थर्ड मॉडल मॉडल को ना ही शामिल करते हैं और ना ही उन्हें तैनात करते हैं।"
उन्होंने कहा कि सोर्सिंग और कलेक्शन को प्रभावी बनाने के लिए एलआरओ की टीम आम तौर पर करीब 40 वर्ग किमी को कवर करती है। एलआरओ एक मोबाइल एप्लिकेशन की मदद से ग्राहकों को जोड़ते हैं। इस एप्लिकेशन में एलआओ को कस्टमर के बारे में, उसके बिजनेस की प्रकृति, आय, व्यय, और दूसरी जानकारियों सहित करीब 150 बिंदु भरने होते हैं।
लोन देने की प्रक्रिया में में विभिन्न प्रकार के सत्यापन से जुड़ी प्रक्रिया भी शामिल रहते हैं, जैसे- घर का सत्यापन, व्यवसाय सत्यापन, पड़ोसी सत्यापन, खरीदार और आपूर्तिकर्ता सत्यापन, आदि। यह सभी जानकारी मोबाइल एप्लिकेशन में भरी जाती हैं, जिसके बाद लोन का आवंटन और कलेक्शन, दोनों पूरी तरह से डिजिटल कर दिया जाता है। यह ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस नेटवर्क (ACH) जैसे बैंकिंग चैनलों के माध्यम से होता है।
अभी तक मनीबॉक्स ने 100 प्रतिशत रिकवरी के साथ, करीब 90 करोड़ रुपये का लोन वितरित किया है। मनीबॉक्स के टारगेट कस्टमर में छोटे से लेकर मझोले आकार के किराना मालिक, मवेशी पालने वाले सहित दूसरे लोग हैं। इस सेक्टर में कैप्री ग्लोबल, कैस्पियन और अन्य सहित करीब 14 लेंडर्स हैं।
प्रमुख चुनौतियां और आगे का रास्ता
बैंकों और एनबीएफसी से पर्याप्त फंडिंग जुटाना अभी तक चुनौती बना हुआ है। जबकि कंपनी लगभग जीरो एनपीए के साथ लोन कलेक्शन और अंडरराइटिंग कुशलता साबित कर चुकी है। दीपक ने बताया, "ऐसा इंडस्ट्री में मौजूद कई चुनौतियों के कारण है, जो कोरोना महामारी में और बढ़ गई हैं।"
ऐसा कहने के बाद, दीपक कहते हैं कि भले ही कोरोना महामारी में मोरोटोरियम का विकल्प था, लेकिन फिर भी उनके सिर्फ 5 प्रतिशत ग्राहकों ने भी इसका लाभ उठाया। यह दिखाता है कि कंपनी की अंडरराइटिंग प्रक्रिया कितनी मजबूत है।
दीपक ने बताया, "महामारी के बावजूद, वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में हमने 12 लेंडर्स जोड़े हैं। हमें हमें उम्मीद है कि निकट अवधि में स्थिति में सुधार होगा। हमारा मानना है कि हमारे जैसे एनबीएफसी को ऋण देने में सरकारी बैंकों को सबसे आगे रहना चाहिए, जो पूरी तरह से प्राथमिकता वाले क्षेत्र और उन ग्राहकों को लोन देने पर फोकस है, जिन्हें बैक और बड़े एनबीएफसी सेवा नहीं दे पाते हैं।”
सेगमेंट में बड़ी पैठ को देखते हुए मनीबॉक्स मध्यम अवधि में काफी ग्रोथ के मौके दिख रहे हैं और इसने अगले तीन से चार वर्षों में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का एयूएम हासिल करने लक्ष्य रखा है।
दीपक ने कहा, "हमने हजारों लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है और अब हम अगले पांच सालों में दस लाखों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने का लक्ष्य रखते हैं।"
Edited by Ranjana Tripathi