हादसे में जख्मी हुआ चेहरा लेकिन नहीं मानी हार, बनीं मिस इंडिया रनरअप
बचपन से ही मॉडलिंग का शौक रखने वाली गोरखपुर की वंदना यादव ने एक हादसे में चेहरा झुलस जाने के बावजूद डीसी मिस इंडिया-2019 रनरअप बनकर साबित कर दिया है कि हिम्मत करने वालो की कभी हार नहीं होती।
गोरखपुर की वंदना यादव देहरादून (उत्तराखंड) में 'डीसी मिस इंडिया' में रनरअप चुन लिए जाने के बाद अब अपने शहर लौट चुकी हैं। उन्हें बधाइयों का तांता लगा हुआ है। प्रतियोगिता में कई मशहूर हस्तियों और देश की ग्यारह अन्य प्रतिभागियों ने भी शिरकत की। ये तो रही सुखद सूचना, लेकिन इस कामयाबी के पीछे कितना गहरा दर्द छिपा है, शायद बहुतो को यह मालूम नहीं होगा। वंदना बताती हैं- 'उस हादसे से उबरने के बाद उन्होंने घर वालों से कहा कि 'मैं कुछ करना चाहती हूं, ताने-उलाहने देने वालों को जवाब देना चाहती हूं। तब घर वाले इसके लिए तैयार हुए। इसके बाद उन्होंने मिस गोरखपुर में प्रतिभाग किया और विजेता बनीं। अब देहरादून की डीसी मिस इंडिया 2019 में रनरअप चुन लिया जाना मेरी बड़ी जीत है।'
ये वही वंदना यादव हैं, जो उस हादसे के बाद अपना चेहरा बचाए फिरती रही थीं, लेकिन विपरीत हालात पर पार पाते हुए डीसी मिस इंडिया-2019 रनरअप बनकर उन्होंने साबित कर दिया है कि हिम्मत करने वालो की कभी हार नहीं होती। उनकी इस कामयाबी ने औरो को भी सबक दिया कि अपने हौसले को ये मत बताओ, तुम्हारी तकलीफ कितनी बड़ी है, अपनी तकलीफ को बताओ की तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है। घटना के वक्त नमक-मिर्च लगाकर अपने शोशों से उन्हे जलील करने वाले, आलोचना करने वाले, अब उनके जीवट को सराहते नहीं थक रहे हैं, तरह-तरह से तारीफों के पुल बांध रहे हैं।
गोरखपुर के राजेंद्र नगर के ललितापुर इलाके में रहने वाली वंदना यादव को बचपन से ही मॉडलिंग का शौक था लेकिन वर्ष 2017 में 25 अप्रैल को उनके साथ ऐसा वाकया गुजरा, सुनने वाले भी दहल उठे। घटना वक्त उन्हे लगा कि उनके सपनों पर किसी ने कयामत ढा दी है। 25 अप्रैल 2017 की सुबह वह किचन में आलू उबाल रही थीं कि अचानक कूकर फट गया। उनके चेहरे का एक हिस्सा झुलस गया। सिर फट गया। उन्हे तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टरों ने कुल सोलह टांके लगाए। जब वह अस्पताल से घर लौटीं, अंदर तक हिल चुकी थीं। दिमाग झन्ना रहा था। उन्हें लगा कि जैसे वह बुरी तरह से टूट चुकी हैं। इस बीच लोग उनको तरह तरह के ताने-उलाहने देने लगे कि बड़ी खूबसूरत बनती थी। उसे अपने चेहरे पर बड़ा घमंड था, अब तो इससे कोई शादी-ब्याह भी नहीं करेगा।
रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना को दुहराती हुई वंदना बताती हैं कि 'लोग तो उनका दिल छलनी करते रहे, सिर्फ माता-पिता और भाई ने उस खराब वक्त में धैर्य से काम लेने का ढांढस बंधाते हुए सहारा दिया, संबल बने। अंदर से घर वाले भी यह सोच-सोचकर आहत थे क्योंकि उनके मॉडलिंग के शौक के बारे में उन्हे पता था। उस हादसे के बाद वह एक साल तक कमरे में बंद रहीं। जख्मी चेहरे का इलाज कराती रहीं।
डेढ़ साल की मुश्किलें, दिन रात का इलाज, समाज के ताने झेलने की चुनौती के बीच उन्होंने एक बार फिर से मॉडलिंग की तैयारी शुरू कर दी। वर्कशॉप में भाग लेने लगीं। उनमें फिर से हिम्मत लौटने लगी। तब उन्होंने पाया कि उनके बदलने के साथ ही उनके आसपास की निगाहें भी खुशनुमा हो रही हैं। उसी समय उनको एहसास हो गया कि दुनिया ही नहीं, दुनिया बनाने वाला भी उसी का साथ देता है, जो अपने अंदर खुद को बनाने का माद्दा रखता है।' वंदना कहती हैं कि 'कठिन से कठिन वक्त में भी हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए, कामयाबी मिलते ही सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।'
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