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मिशन ऑक्सीजन: ऑक्सीजन की कमी को हल करने में बेहद मददगार है IIT बॉम्बे का ये सुझाव

नाइट्रोजन जनरेटर को ऑक्सीजन जनरेटर में बदल कर ऑक्सीजन की कमी को हल कर सकते हैं। ऑक्सीजन संकट का ये सरल और त्वरित समाधान है। समाधान के अखिल भारतीय स्तर पर क्रियान्वयन की मदद को तैयार है संस्थान।

मिशन ऑक्सीजन: ऑक्सीजन की कमी को हल करने में बेहद मददगार है IIT बॉम्बे का ये सुझाव

Friday April 30, 2021 , 3 min Read

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे देश में कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के वास्ते एक रचनात्मक और सरल समाधान लेकर आया है। इस पायलट प्रोजेक्ट का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया गया है। यह एक सरल तकनीकी पर निर्भर करता है। इसमें पीएसए (घुमाव के दबाव से सोखना) नाइट्रोजन इकाई को पीएसए ऑक्सीजन यूनिट में बदल दिया जाता है।

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आईआईटी बॉम्बे में किए गए प्रारंभिक परीक्षणों ने आशाजनक परिणाम दिये हैं। इसमें 3.5 एटीएम दबाव पर 93% - 96% शुद्धता की ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा सकता है। यह ऑक्सीजन गैस मौजूदा अस्पतालों में कोविड से संबंधित जरूरतों को पूरा करने तथा भविष्य की कोविड-19 की विशिष्ट सुविधाओं के लिए ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति करने में काम में ली जा सकती है।


नाइट्रोजन इकाई को ऑक्सीजन इकाई में कैसे बदला जा सकता है? सवाल के जाब में इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले आईआईटी बॉम्बे के डीन (आरएंडडी), प्रो. मिलिंद अत्रे कहते हैं कि “यह मौजूदा नाइट्रोजन प्लांट सेट-अप को फाइन-ट्यूनिंग करके और आणविक चलनी को कार्बन से ज़ायोलाइट में बदलकर किया गया है”।


उन्होंने बताया कि ऐसे नाइट्रोजन संयंत्र, जो वायुमण्डल से कच्चे माल के रूप में वायु ग्रहण करते हैं, देश भर के विभिन्न औद्योगिक संयंत्रों में उपलब्ध हैं। इसलिए, उनमें से प्रत्येक को संभावित ऑक्सीजन जनरेटर में परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार हमें वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से निबटने में मदद मिल सकती है।


यह पायलट प्रोजेक्ट पीएसए नाइट्रोजन और ऑक्सीजन प्लांट के उत्पादन से संबंध रखने वाले आईआईटी बॉम्बे, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स और स्पैन्टेक इंजीनियर्स, मुंबई के बीच एक साझा प्रयास है। 


पीएसए नाइट्रोजन संयंत्र को ऑक्सीज़न संयंत्र में बदलने की इस अवधारणा की मान्यता के प्रमाण के लिए आईआईटी के प्रशीतन और क्रायोजेनिक्स प्रयोगशाला को चुना गया था। इस अध्ययन को तत्काल पूरा करने के लिए, एक ऐसा एसओपी (स्टेंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जो देश भर में लागू हो सके को अंतिम रूप देने के लिए आईआईटी बॉम्बे, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स और स्पैन्टेक इंजीनियर्स के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।


आईआईटी बॉम्बे के रेफ्रिजरेशन और क्रायोजेनिक्स लैब के बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हुए स्पांटेक इंजीनियर्स ने मूल्यांकन के लिए आईआईटी बॉम्बे में आवश्यक प्लांट घटकों को स्थापित किया। प्रयोग के लिए यह सेटअप तीन दिनों के भीतर विकसित कर लिया गया। इसके प्रारंभिक परीक्षणों ने ऊपर बताए अनुसार आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।


प्रो. मिलिंद अत्रे ने श्री अमित शर्मा, प्रबंध निदेशक, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स; श्री राजेंद्र टहलियानी, प्रमोटर, स्पैन्टेक इंजीनियर्स और आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र (1970) के साथ श्री राज मोहन, एमडी, स्पैन्टेक इंजीनियर्स को इस परियोजना में उनके सहयोग और साझेदारी के लिए धन्यवाद दिया है।


अनेक बाधाओं के बीच सफल तरीके से समय पर परियोजना को सफल बनाने के लिए टीमों को बधाई देते हुए श्री अमित शर्मा ने कहा: “हम आईआईटी बॉम्बे और स्पैन्टेक इंजीनियर्स के साथ साझेदारी से प्रसन्न हैं कि हम बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हुए मौजूदा संकट में आपातकालीन ऑक्सीजन उत्पादन के लिए एक अभिनव समाधान की दिशा में योगदान कर रहे हैं। उद्योग और शिक्षाविदों के बीच इस तरह की साझेदारी आत्मनिर्भर भारत के प्रति हमारी दृष्टि को तेज कर सकती है।


आईआईटी बॉम्बे के निदेशक प्रो. सुभाशीष चौधरी ने परियोजना में शामिल सभी पक्षों को बधाई दी और कहा कि हमारे देश के विकास और सफलता के लिए शिक्षा और उद्योग के बीच इस तरह की साझेदारी बेहद वांछनीय और आवश्यक है।