उमाशंकर पांडेय की कोशिशों से विश्व मानचित्र पर उभरा मॉडल 'जलग्राम' जखनी
एक वक़्त में दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का गुरुमंत्र लेकर, जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय ने बुंदेलखंड (उ.प्र.) के गांव जखनी में ऐसा अनोखा नवाचार किया है कि नीति आयोग ने उनकी कामयाबी को देश की एक कारगर उपलब्धि में शामिल करते हुए उसे राष्ट्रीय 'जलग्राम' घोषित कर दिया है।
नीति आयोग द्वारा ‘जल ग्राम’ घोषित बांदा (बुंदेलखंड) का गांव जखनी गांव पूरे देश के लिए मिसाल बन चुका है। इसका श्रेय जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय को जाता है, जिन्होंने दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए जखनी में जलग्राम समिति का सबसे पहले संयोजन किया।
उल्लेखनीय है कि पांडेय बुंदेलखंड में दो दशक से सर्वोदय जल ग्राम स्वराज अभियान चला रहे हैं। वर्ष 2005 में एक दिन जब वह जल और ग्राम विकास विषय पर आयोजित एक कार्यशाला में दिल्ली पहुंचे तो तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने ही उन्हे आइडिया दिया कि बिना पैसे और तकनीक के पानी को बचाया जा सकता है। डॉ. कलाम ने ही उन्हे आगाह किया था कि किसानों को अपने खेतों में मेड़ें बनानी चाहिए।
पांडेय की कोशिशों ने जखनी को भारत ही नहीं, विश्व मानचित्र पर ला दिया है। वहां इजराइल, नेपाल तक के कृषि वैज्ञानिक और तेलंगाना, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों के छात्र आकर इस कारस्तानी पर रिसर्च करने लगे हैं। इस मॉडल जलग्राम जखनी के खेतों में पैदा हो रही सब्जियां दूर-दूर तक बिकने लगी हैं।
गौरतलब है कि इस समय भारत के 21 प्रदेश पानी के संकट से जूझ रहे हैं। उन्ही निर्जल राज्यों में से एक बुंदेलखंड (उ.प्र.) लोगो के लिए जागरूकता के अभाव में पानी की बात केवल किताबों तक सीमित रही है लेकिन अब पांडेय की पहल ने उनकी किस्मत का दरवाजा खोल दिया है। यह सब ऐसे वक़्त में हो रहा है, जबकि इस इलाके में बोरिंग भी फेल हो चुके हैं, सूखे कुंए लोगों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
पानी की किल्लत से हर साल किसानों की फसल बर्बाद होती रही है। उनके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो जाने से पूरे बुंदेलखंड में हाहाकार सा मचने लगा है। जखनी के जलग्राम घोषित होने के बाद से तो यहां से पलायन कर गए लगभग दो हजार युवा दोबारा अपने घर-गांव लौट आए हैं और पानी संचयन के साथ खेती में तरह-तरह के नवाचार करने लगे हैं।
डॉ. कलाम से आइडिया मिलने के बाद गांव लौटकर उमाशंकर पांडेय ने अपने पांच एकड़ खेत में मेड़ बनाकर बारिश का पानी रोक लिया। शुरुआत में तो किसानों को इस तरीके पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन बाद में जब पांडेय उसी पानी के बूते धान, गेहूं, दलहन और सब्जियों की पैदावर करने लगे, किसानों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा।
फिर क्या था, वे भी एक-एक कर पांडेय की राह चल पड़े। बीस और किसानों के खेत मेड़ों से लैस हो गए। उनके खेतों को भी साल में आठ महीने पानी मिलने लगा। शेष चार महीने मिट्टी में नमी बनी रही। मिट्टी की उर्वरक शक्तियां, खनिज लवण संचित हो गए। कई किसानों ने इस बीच पांडेय के सहयोग से जल संग्रहण के लिए अपने खेतों में 15 फीट गहरे कुएं भी बनवा लिए।
नतीजा ये रहा कि पूरे गांव का जलस्तर बढ़ने लगा। इस समय जखनी के तीस से अधिक कुओं की बदौलत धरती में पांच फीट पर ही पानी मिलने लगा है। किसान परिवारों के युवा बाहर की नौकरियां छोड़छाड़ कर अपने घरों को लौटने लगे हैं।