दिल्ली के लोगों को घर के कूड़े का सही निपटान करना सिखा रहीं मोनिका
देश भर के अलग-अलग हिस्सों में आप दो रंग के कूड़ेदान देखते हैं, एक नीले रंग का, एक हरे रंग का। सरकार लोगों से लगातार अपील करती है कि सूखा और गीला कूड़ा अलग-अलग कूड़ेदान में रखना चाहिए। गीले कचरा के लिए कूड़ेदान का रंग हरा रहेगा तो सूखे कूड़े के लिए नीले रंग का कूड़ेदान निर्धारित किया गया है। लगातार जागरूकता और प्रोत्साहन अभियान चलाया जा रहा है लेकिन अभी ज्यादातर शहरों में लोग लापरवाही बरत रहे हैं। घरों से कचड़ा ले जाने वाले कर्मचारी भी इस बारे में काफी कोताही बरत रहे हैं। जाहिर है, कूड़े के अलग-अलग निस्तारण से उनका काम बढ़ जाता है। इसलिए इस प्रयास के व्यापक लाभप्रद परिणाम को दरकिनार करते हुए वो जल्दी से अपना काम निपटा लेना चाहते हैं। बड़ी-बड़ी सोसायटी में रहने वाले लोग भी अपनी भागमभाग वाली जिंदगी इतने जरूरी और बहुत ही कम प्रयत्न से हो जाने वाले जरूरी काम को करना भूल जाते हैं।
दिल्ली महानगर में घरों और कार्यालयों से रोजाना कितना कूड़ा निकलता है, इस बात के लिए आपको एक भयावह उदाहरण देती हूं। पूर्वी दिल्ली स्थित गाजीपुर डंपिंग ग्राउंड में इतना कचरा इकट्ठा हो गया है कि उसकी लंबाई कुतुबमीनार की लंबाई जितनी जल्द हो जाएगी। कुतुब मीनार 73 मीटर का है और अगस्त 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक इस ग्राउंड में इकट्ठा कूड़े की ऊंचाई 65 मीटर है। यहां ये भी जानना जरूरी है कि इकट्ठा कूड़े की ऊंचाई आधिकारिक तौर पर 20-25 मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
कूड़े का ढेर लगाने से बेहतर है, अपशिष्टों से अपने जरूरत का सामान फिर से बना लेना यानि कि रीसाइकलिंग। और रिसाइकल के लिए बहुत जरूरी है कि गीले औऱ सूखे कूड़े अलग-अलग निकाले जाएं। इसी जरूरी और मौलिक बात के बारे में लगातार जागरूकता फैला रही हैं, पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में रहने वालीं मोनिका।
मोनिका एक बार मुंबई घूमने गई थीं। वहां पर सोसायटियों में उन्होंने गीले और सूखे कूड़े का बड़ा सही प्रबंधन देखा, साथ ही ये भी पाया कि लोग इस प्रक्रिया के बारे में काफी सजग हैं। मोनिका ने सोचा कि दिल्ली तो देश की राजधानी है, वहां पर इस कदर लोग सचेत नहीं देखते। मोनिका ने दिल्ली लौटकर अपने निवास स्थान से ही इस मुहिम की शुरुआत की। मोनिका मयूर विहार के डीडीए फ्लैट्स में रहती हैं। वहां पर उन्होंने आर. ड्ब्ल्यू. ए. के अधिकारियों से बात की। हर दिन घरों से कूड़ा ले जाने वाली टीम को समझाया कि वो सूखा और गीला कचड़ा अलग-अलग ले जाएं। कूड़े वाली टीम का लीडर इस बात से भड़क गया। उसके मुताबिक ये बेवजह की फितूर है और इससे होना-जाना कुछ है नहीं। बस उनका काम बढ़ जाना है। कूड़े वाले ने मोनिका को धमकी दी कि न तो वो घरों से अलग-अलग कूड़ा लेगें और न ही मोनिका की सलाह पर लोगों को ऐसा करने देंगे। और उन्होंने ज्यादा दबाव डाला तो वो घरों से कूड़ा ले जाना ही बंद कर देंगे।
दिल्ली जैसे भागते शहर में लोगों के घरों से दो दिन भी कूड़ा न गया तो उनकी जान आफत में आ जाती है। इसलिए कूड़े वाले के इस विरोध के आगे सब ठंडे पड़ गए। फिर मोनिका ने अपने प्रयास से लोगों को घर-घर जाकर प्रेरित करना शुरू किया। मोनिका के जज्बे को देखकर एक स्थानीय एन.जी.ओ. भी मोनिका के साथ आ खड़ी हुई। एन.जी.ओ. की मदद से मोनिका ने एक हेल्पर रख लिया। जो घरों से इकट्ठा किए गीले कूड़े को खाद में परिवर्तित करने में उनकी मदद करने लगा।
योरस्टोरी से बातचीत में मोनिका ने हरे और नीले कूड़ेदान को और भी विस्तार से समझाया, प्लास्टिक, कांच, पन्नी जैसे सूखे और रेडी टू रिसाइकल कचरे को नीले कूड़ेदान में तो बचा हुआ खाना, सब्जी, फल के छिलके हरे कूड़ेदान में डाले जाते हैं। जिससे लोगों को इनमें अंतर समझ आ सके और लोग खाने पीने की चीजों को बर्बाद न करें। गीलेकचरे से जैविक खाद बनाया जा सकता है। इसे सड़ाकर वर्मी कंपोस्ट के मध्यम से खाद तैयार किया जाता है। इसे हर घर में बनाया जा सकता है। केंचुए की मदद से एक डस्टबिन में इसे तैयार किया जा सकता है। तकरीबन 1200 रुपए खर्च कर इसकी सारी विधि तैयार की जा सकती है। चार महीने में ही लगाए पैसे वापस हो जाएंगे।
मोनिका के प्रयासों की चर्चा अब उनकी सोसायटी से निकलकर आस-पास के इलाकों में भी होने लगी है। मोनिका ने बताया कि उनके पास ईडीएसी से भी कॉल आया था कि किस तरह इस प्रयास को और दूरगामी परिणामों के लिए परिवर्द्धित किया जा सकता है। मोनिका के साथ सोसायटी के अन्य महिला-पुुरुष आ गए हैं। मोनिका अपनी इस टीम के साथ दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में कूड़ा-निस्तारण के बारे में जागरूकता फैला रही हैं।
यह भी पढ़ें: वेटर और क्लीनर जैसे काम करके भारत को गोल्ड दिलाने वाले नारायण की कहानी