भारत में अधिकतर शहरों की हवा जहरीली, NCAP में करना होगा शामिल
ग्रीनपीस की नयी रिपोर्ट में आया सामने, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में 102 की जगह 241 शहरों को शामिल करने की जरूरत
सोमवार को ग्रीनपीस इंडिया ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘एयरपोक्लिपस’ का तीसरा संस्करण जारी किया। इस रिपोर्ट में यह सामने आया कि 139 शहर जहां की वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से अधिक है को हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) में शामिल नहीं किया गया है। रिपोर्ट में यह इशारा किया गया कि अगर हम एनसीएपी के 2024 तक 30 प्रतिशत प्रदूषण कम करने के लक्ष्य पर भरोसा कर भी लें तो भी 153 शहर ऐसे छूट जायेंगे जिनका प्रदूषण स्तर राष्ट्रीय मानक से 2024 में भी अधिक होगा।
313 शहर में 241 (77%) शहर की हवा राष्ट्रीय मानक से अधिक प्रदूषित
इस रिपोर्ट में 313 शहरों के साल 2017 में पीएम10 के औसत स्तर का विश्लेषण किया गया है। इसमें सामने आया कि 313 शहरों में से 241 (77%) शहरों का पीएम10 का स्तर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक से कहीं अधिक है। इस तरह ये सारे 241 शहर अयोग्य शहरों की सूची में आते हैं, जहां एनसीएपी के तहत कार्ययोजना बनाने की जरुरत है।
एनसीएपी में 2015 के डाटा के आधार पर किया गया शहरों को शामिल
गौर करने वाली बात यह है कि एनसीएपी (नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम) में सिर्फ 102 शहरों को शामिल किया गया था, जिसका आकड़ा 2011-2015 से लिया गया था। अब इन शहरों में 139 नये शहर बढ़ गए हैं, जहां का आंकड़ा उपलब्ध है और जिसकी वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से अधिक है।
रिपोर्ट तैयार करने वाले ग्रीनपीस के अभियानकर्ता सुनील दहिया कहते हैं, “एनसीएपी में 2015 के डाटा के आधार पर शहरों को शामिल किया गया है, जिसकी वजह से बहुत बड़ी संख्या में दूसरे प्रदूषित शहर छूट गए हैं। हम पर्यावरण मंत्रालय से मांग करते हैं कि वह 2017 के डाटा के आधार पर अयोग्य शहरों की सूची में बाकी बचे शहरों को भी शामिल करे, तभी एनसीएपी को राष्ट्रीय कार्यक्रम कहा जा सकता है और इससे पूरे देश की हवा को स्वच्छ किया जा सकता है।”
रिपोर्ट में 2024 तक पीएम10 के स्तर को सभी शहरों में 30 प्रतिशत तक कम करने के एनसीएपी के लक्ष्यों को मानते हुए यह कहा गया है कि पूरे देश में 153 शहर ऐसे होंगे जो राष्ट्रीय मानक को पूरा नहीं करेंगे वहीं 12 शहर ही ऐसे होंगे जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानको को पूरा कर पायेंगे। यदि 2024 तक दिल्ली में प्रदूषण स्तर को 30 प्रतिशत कम भी कर दिया जायेगा तो दिल्ली की पीएम10 का स्तर फिर भी 168 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होगा जो राष्ट्रीय मानक (60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर) से तीन गुणा अधिक होगा।
स्मार्ट सिटी भी प्रदूषित शहरों की सूची में
एनसीएपी में शामिल शहरों में 43 प्रस्तावित स्मार्ट सिटी भी शामिल हैं। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि साल 2017 के पीएम10 स्तर के डाटा को देखा जाये तो पता चलता है कि प्रस्तावित 100 स्मार्ट सिटी में से 65 ऐसे हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर अधिक है और सिर्फ 12 शहर की वायु गुणवत्ता ही राष्ट्रीय मानक के अनुरूप है। इससे साफ साफ एनसीएपी के व्यापक होने पर सवाल उठता है।
सुनील कहते हैं, “यह चिंताजनक है कि हमारे ज्यादातर चिन्हित स्मार्ट सिटी भी खराब वायु प्रदूषण की चपेट में हैं और उनमें कई जगह तो वायु निगरानी डाटा भी उपलब्ध भी नहीं है।”
सुनील जोड़ते हैं, “यह समझते हुए भी कि 2024 तक 30 प्रतिशत प्रदूषण घटाने का लक्ष्य भारत की साफ हवा की तरफ पहला कदम है, यह एक सच्चाई है कि अभी भी करीब 50 प्रतिशत शहर ऐसे छूट रहे हैं जिनकी वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से कहीं अधिक प्रदूषित है । करोड़ो भारतीय आने वाले सालों में खराब हवा में सांस लेने को मजबूर होंगे। इसलिए जरुरी हो जाता है कि पर्यावरण मंत्रालय और अधिक महत्वाकांक्षी कार्ययोजना बनाये, जिसमें अलग अलग प्रदूषक कारकों से निपटने की रणनीति हो। एक व्यापक कार्ययोजना बनाकर और जवाबदेही तय करके ही हम देश के लिये स्वच्छ वायु के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।”
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