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'माँ से फूल की दुकान पर सीखी मार्केटिंग' - बेटा कमाता है डेढ़ लाख रुपए महीना!

24 साल फूस की झोपड़ी में रहने के बाद अब हम एक ऐसे घर में आ गए हैं, जहां बारिश होने पर कमरे की छत से बारिश की बूंदे नहीं टपकती. पहली बार हवाई यात्रा की. परिवार को कार में घुमाया और रेस्तरां में खाना खिलाया. एक लड़के की कहानी जिसने कड़ी मेहनत कर सफलता हासिल की.

'माँ से फूल की दुकान पर सीखी मार्केटिंग' - बेटा कमाता है डेढ़ लाख रुपए महीना!

Thursday September 15, 2022 , 5 min Read

एक माँ जो रोटोरुआ में फूलों की दुकान लगाती है, पिता एक टीवी मैकेनिक है. फूस की झोपड़ी में 5 लोगों का एक संयुक्त परिवार रहता है. ये घर है निर्मल कुमार का. जिसने गरीब के दामन में अपना बचपन जिया है. निर्मल पढाई करने के बाद अक्सर अपनी माँ की फूल की दुकान पर मदद करने आ जाया करता था. माँ की मदद करते-करते निर्मल मार्केटिंग के नए-नए तरीके भी सीख रहा था. व्यवसाय चाहे छोटा हो या बड़ा मार्केटिंग के हुनर के बिना नहीं चलता. निर्मल अनजाने में ही सही मगर अपनी माँ की मदद करने की प्रक्रिया में मार्केटिंग की बारीकियां सीख रहा था. उसे नहीं पता था कि यही मार्केट का ज्ञान, उसके और उसके परिवार की ज़िन्दगी को बेहतर बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाला है.

निर्मल ने अपनी मेहनत और जज्बे के दम पर अपनी कहानी खुद लिखी. निर्मल केवल 20 वर्ष के हैं. स्वतंत्र डिजिटल मार्केटिंग विश्लेषक के तौर पर कार्य कर रहे हैं. हर महीने निर्मल 1.5 लाख रुपए कमा रहे हैं . निर्मल ने अपने परिवार को फूस की झोंपड़ी से एक अच्छे घर में शिफ्ट कर दिया दिया है, और अब पूरा परिवार ख़ुशी से एक साथ रहता है.

किताबों ने दिखाया सही रास्ता

निर्मल कुमार पढ़ाई में औसत छात्र थे. माता-पिता शुरू से ही चाहते थे, कि निर्मल अच्छे से पढ़ लिखकर माता-पिता का नाम रोशन करें. निर्मल भी इस सपने को पूरा करने में दिन रात लगे रेहते. ग्रेजुएट होने के बाद निर्मल कंफ्यूज थे, कि आगे क्या करें. निर्मल ने इंजीनियरिंग करने का मन बनाया. इंजीनियरिंग की पढाई शुरू हुए महज़ 4 महीने ही हुए थे, पिता को एक अप्रत्याशित दुर्घटना का सामना करना पड़ा और परिवार की एक मात्र आय भी ख़त्म हो गई। परिवार के पालन पोषण की जिम्मेंदारी अब निर्मल पर आ गई. बढ़ती जिम्मेंदारियों के चलते निर्मल को इंजीनियरिंग की पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी. निर्मल ने कागजी काम करना शुरू कर दिया। एक दिन अखबार पढ़ते समय निर्मल की नज़र अखबार में छपे एक संदेश पर गई, जिसमें कुछ किताबों की सिफारिश की गई थी। उसमें 'पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग' किताब के शीर्षक ने निर्मल कुमार को खूब आकर्षित किया. निर्मल पर नकारात्मकता हावी थी और सकारात्मकता की तलाश में थे, इस किताब के शीर्षक को देखकर निर्मल को सकारात्मकता कि झलक दिखने लगी.

निर्मल बताते हैं - "जीवन की हर कठिन परिस्थिति में किताबें मेरे साथ खड़ी रही हैं. जब मैं कक्षा 5 में पढ़ रहा था, तब मैंने स्टीव जॉब्स के बारे में किताबें पढ़ी थी. छोटी उम्र से ही मैं हमेशा बड़े सपने देखता था, किताबों ने मेरे सपनों को सही दिशा देने में अहम भूमिका निभाई है. जब मैंने अपना काम शुरू किया, तब कई बार लोगों की कहीं बाते मझे थका देती थी. उस समय 'पॉवर ऑफ पॉजिटिविटी' ने मेरा बहुत साथ दिया. किताब पढ़कर मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से उभर आता था, और अपने काम को अच्छे से कर पता था.मैंने कॉलेज फिरसे ज्वाइन कर लिया

.

मुझे उस दौर की सारी मार्केटिंग रणनीतियां याद आने लगीं जो मैंने अपनी माँ से सीखी थी, कि कैसे बड़ी-बड़ी दुकानों के बीच भी हम अपनी दुकान चला रहें थे

माँ से सीखी मार्केटिंग टिप्स

इस किताब ने मुझे एहसास दिलाया कि हुनर ​​विकसित करके ही आप जीवन में सफल हो सकते हैं। एक दिन बैठकर मैं कताब पढ़ रहा था, तभी मुझे कुछ पुरानी तरकीबें याद आईं, जब मैं अपनी माँ की फूल की दुकान पर उनकी मदद करता था. तब मैं दूकान पर फूल बेचता था. मुझे उस दौर की सारी मार्केटिंग रणनीतियां याद आने लगीं जो मैंने अपनी माँ से सीखी थी, कि कैसे बड़ी-बड़ी दुकानों के बीच भी हम अपनी दुकान चला रहें थे. मुझे एहसास हुआ कि इस ज्ञान को मैं अच्छे से इस्तेनाल कर सकते हैं

नौकरी छोड़कर डिजिटल मार्केटिंग का काम शुरू किया

कॉलेज के लास्ट इयर में मेरा कैंपस प्लेसमेंट हो गया था. मुझे नौकरी तो मिल गयी थी, मगर मझे एक बात स्पष्ट थी, कि मेरा लक्ष्य कुछ और ही है. मैंने अपनी नौकरी छोड़कर डिजिटल मार्केटिंग में अपना करियर बनाने कि ठान ली. नौकरी छोड़ तो दी, मगर परिवार की जिम्मेंदारी के चलते मैंने फूड डिलीवरी का काम करना शुरू कर दिया, इसके साथ-साथ मैं डिजिटल मार्केटर के तौर पर भी काम कर रहा था.धीरे-धीरे डिजिटल मार्केटिंग के लिए कस्टमर मिलने लगे और कुछ ही समय बाद काम अच्छा चलने लगा.

काम करने के साथ-साथ मैं डिजिटल मार्केटिंग के बारे में नई-नई बातें भी सीख रहा था.

कोरोना बना आपदा में अवसर

काम थोडा शुरू ही हुआ था, तभी कोरोना ने दस्तक दी. कोरोना के दौरान कई बिजनेस बंद हो गए, मगर मेरे लिए कोरोना आपदा में अवसर की तरह था. कोरोना के दौरान मेरा काम बहुत अच्छा चला, क्योंकि सारी कंपनियां ऑनलाइन मोड ही यूज़ कर रही थी. 1.5 लाख रुपये प्रति माह मेरी निश्चित आय बन गई है.

24 साल फूस की झोपड़ी में रहने के बाद अब हम एक ऐसे घर में आ गए हैं जहां बारिश होने पर कमरे की छत से बारिश की बूंदे नहीं टपकती. पहली बार हवाई यात्रा की. परिवार को कार में घुमाया और रेस्तरां में खाना खिलाया. पूरा परिवार बहुत खुश है. मैं लगातार अपने बिजनेस को बढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ .