अंतरिक्ष में पाए गए रेडियो उत्सर्जन के रहस्यमय सर्कल सुपरनोवा विस्फोटों और विशाल ब्लैक होल से आ सकते हैं
एक नया शोध खगोलीय अंतरिक्ष में गहरे रेडियो उत्सर्जन के रहस्यमय धुंधले सर्कल के लिए सराहनीय स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है जिसे ऑड रेडियो सर्किल (Odd Radio Circles - ORCs) कहा जाता है. हाल में कुछ अत्यधिक संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय रेडियो का उपयोग करके इसका पता लगाया गया है.
खगोलविदों ने हाल में ओआरसी की पहचान ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में स्क्वायर किलोमीटर ऐरे (SKA), भारत में विशाल मीटरवेब रेडियो टेलिस्कोप (GMRT) तथा नीदरलैंड में लो फ्रीक्वेंसी ऐरे (LOFAR) का उपयोग करके की है. इन वस्तुओं को केवल रेडियो में देखा जाता है और विकिरण के किसी अन्य रूप में नहीं. इनमें से कुछ वस्तुएं एक मिलियन प्रकाश वर्ष की हो सकती हैं जो हमारी आकाशगंगा से लगभग दस गुणा बड़ी हैं. ओआरसी को रहस्यमय माना जाता है क्योंकि इन वस्तुओं को किसी भी पहले से ज्ञात खगोल भौतिकी घटना के माध्यम से नहीं समझाया जा सकता.
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था और नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान (ARIES) वैज्ञानिक डॉक्टर अमितेश उमर ने अपने शोध में प्रमाणित किया है कि इनमें से कुछ ओआरसी थर्मोन्यूक्लियर सुपरनोवा के अवशेष हो सकते हैं जो सूर्य के द्रव्यमान से 1.4 गुणा भारी युग्म प्रणाली में एक सफेद बौना तारा के विस्फोट से उत्पन्न होते हैं.
ब्रिटेन के रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी जनर्ल के लेटर्स सेक्शन में प्रकाशित शोध के अनुसार ORCs मिल्की वे के बाहर रहते हैं जो अपने पड़ोसी आकाशगंगाओं के बीच विशाल अंतरिक्ष में दुबके रहते हैं. आकाशगंगाओं के बाहर होने वाली इंटरगैलेक्टिक सुपरनोवा घएटनाएं पहले के ऑप्टिकल सर्वेक्षणों से ज्ञात थी. विस्फोट के हजारों वर्ष बाद रेडियो में उनकी अवशेष चमकीले हो जाते हैं तथा रेडियो अवलोकनों की स्पष्ट संवेदनशीलता के साथ इंटरगैलेक्टिक स्पेस में कहीं भी पता लगाया जा सकता है. आधुनिक रेडियो टेलिस्कोप श्रृंखलाओं की संवेदनशीलता कई गुणा बढ़ जाने से खगोलविद् इन वस्तुओं का पता लगाने में सक्षम हैं. यह स्पष्टीकरण उन ओआरसी के लिए सटीक बैठता है जिनके केंद्र में कोई ज्ञात ऑप्टिकल वस्तु नहीं है.
यद्यपि कुछ ओआरसी के दूरवर्ती आकाशगंगाओं से जुड़े होने की संभावना सबसे अधिक है क्योंकि केंद्रों में एक ज्ञात ऑप्टिकल आकाशगंगा (आकाशगंगा जिसे ऑप्टिकल टेलिस्कोप की सहायता से अध्ययन किया जाता है) है इसलिए इन ओआरसी को इंटरगैलेक्टिक सुपरनोवा नहीं माना जा सकता. डॉक्टर उमर ने इस तरह के ओआरसी की व्याख्या करने के लिए एक विशाल ब्लैक होल द्वारा लगाए गए चरम ज्वारीय बलों द्वारा एक तारे के विघटन के व्यापक रूप से ज्ञात तंत्र का आह्वान किया क्योंकि तारा एक आकाशगंगा में केंद्रीय विशाल ब्लैक होल के निकट आता है. इस प्रक्रिया में तारा नष्ट हो जाता है और इसका लगभग आधा द्रव्यमान तेजी से ब्लैक होल से दूर फेंक दिया जाता है. यह विघटन प्रक्रिया बड़ी मात्रा में ऊर्जा छोड़ती है जो सुपरनोवा विस्फोट में उत्पादित ऊर्जा के समान होती है.
कभी-कभी दो आकाशगंगाओं के विलय से लाखों तारे कुछ मिलियन वर्षों में ब्लैक होल द्वारा ज्वारीय रूप से बाधित हो सकते हैं, जो ब्रह्मांड की दृष्टि से बहुत कम समय है. अचानक इस ऊर्जा के छोड़े जाने से झटके पैदा होते हैं जो इंटरगैलेक्टिक अंतरिक्ष में लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष तक जा सकती हैं. ये झटके सर्वव्यापी ब्रह्माण्डीय इलेक्ट्रोनों को इस सीमा तक सक्रिय कर देते हैं कि सिंक्रोट्रॉन रेडियो उत्सर्जन कमजोर चुम्बकीय अंतरिक्ष में उत्पन्न होता है. यह व्याख्या पहले से ज्ञात खगोल भौतकीय घटना के ढांचे में सही बैठती है.
आशा की जाती है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली रेडियो टेलिस्कोप एसकेए के पूरा होने से भविष्य में इनमें से कई और वस्तुओं का पता लगाया जाएगा. इस सहयोग में भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिक और इंजीनियर शामिल हैं.
शोध पत्रों को open-access arxiv.org लिंक के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है.