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'नमामि गंगे' पर हाईकोर्ट ने क्यूँ की है सख़्त टिप्पणी?

'नमामि गंगे' पर हाईकोर्ट ने क्यूँ की है सख़्त टिप्पणी?

Thursday July 28, 2022 , 3 min Read

भारत सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट 'नमामि गंगे' को लेकर इलाबाद हाई कोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने बुधवार को गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से ‘नमामि गंगे’ परियोजना का हिसाब माँगा है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कोर्ट ने कहा कि 'क्यों ना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बंद कर दिया जाए?' कोर्ट ने पूछा है कि कितनी रकम गंगा की सफाई में कहां-कहां खर्च हुई है. इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच कर रही है. बता दें कि अब 31 अगस्त को हाईकोर्ट में दोबारा इस मामले की सुनवाई होगी जिसमें इस परियोजना के महानिदेशक से इस परियोजना में खर्च हुए बजट का ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है.


बता दें कि ‘नमामि गंगे’ परियोजना पर 20,000 करोड़ खर्च करने का बजट बना था. और अब तक 11,000 करोड़ खर्च हो जाने के बावजूद गंगा जस की तस है. जिसकी एक बड़ी वजह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (Sewage Treatment Plants) का बेकार पड़े होना है. इसी बावत, कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट तो टोटल आईवाश (आंखों में धूल झोंकने वाली) है. ट्रीटमेंट प्लांट तो यूजलेस (किसी काम का नहीं) हैं. एसटीपी की जिम्मेदारी निजी हाथों में दे रखी गई है. उत्तर प्रदेश में एसटीपी के संचालन की जिम्मेदारी अडानी ग्रुप की कंपनी को दी गई है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना के तहत नगर के सभी नालों को एक साथ जोड़कर गन्दे पानी को प्लांट में इकट्ठा किया जाता है. फिर इस प्लांट के जरिये इकट्ठे गन्दे पानी को शुद्ध कर गंडक नदी में प्रवाहित किया जाना है. इससे शहर के नालियों से बहने वाला पानी भी एक जगह से सही पानी के रूप में परिवर्तित होकर गंडक नदी के माध्यम से निकल सकेगा. जिससे शहर को पानी के जमाव की समस्या से मुक्ति तो मिलेगी ही, नदी का जल और जलस्तर भी ठीक रहेगा. सुनवाई के दौरान यह बात भी ज़ाहिर हुई कि गंगा किनारे प्रदेश में 26 शहर है और अधिकांश‌ में एसटीपी नहीं है. सैकड़ों उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है. कानपुर के चमड़ा उद्योग और गजरौला के चीनी उद्योग की गंदगी बगैर शोधित गंगा में डाली जा रही है. शीशा पोटेशियम व अन्य रेडियो एक्टिव चीजें भी गंगा में बहाई जा रही हैं. और उस पर एसटीपी (STP) का काम नहीं करने पर कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए एसटीपी द्वारा की जा रही मोनिटरिंग की रिपोर्ट मांगी है.


विदित हो कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के करार में यह निहित है कि किसी भी वक़्त प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आने पर उनको शोधित करने की जवाबदेही कम्पनी की नहीं होगी. इस पर टिपण्णी करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे करार से तो गंगा साफ होने से रही. कोर्ट ने कहा है कि ऐसी योजना बन रही है, जिससे दूसरों को लाभ पहुंचाया जा सके और जवाबदेही किसी की न हो.

इस मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होनी है जिसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जांच और कार्रवाई से संबंधित पूरी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करेगें.