डिजिटल इंडिया में महिलाओं की हिस्सेदारी
महिलाओं के डिजिटल इंमपावरमेंट में सरकारी मंत्रालय, मशीनरी और सरकार का योगदान.
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शुक्रवार, 3 फरवरी को नेत्री समिट (NETRI SUMMIT) का आयोजन हो रहा था. इस समिट में मौका था एक विशेष सत्र का, जिसका विषय था ‘डिजिटल गवर्नेंस और जेंडर’ (Digital governance and gender).
इस सत्र के प्रमुख वक्ता के रूप में मंच पर मौजूद थे भारतीय जनता पार्टी के सहयोग सेल के प्रमुख नवीन सिन्हा, बीजू जनता दल पार्टी से राज्यसभा सदस्य अमर पटनायक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लोकसदभा सदस्य प्रद्युत बारदलोई और बीजेपी की नेशनल पेनलिस्ट चारु प्रज्ञा. सत्र का संचालन कर रहे थे योर स्टोरी के लैंग्वेजेज हेड गिरिराज किराडू.
जैसाकि सत्र के नाम से जाहिर है, बातचीत का मजमून नए डिजिटल इंडिया में महिलाओं की भागीदारी पर केंद्रित था और सरकारी विभाग, मंत्रालय, मशीनरी और सरकार से जुड़े लोग इस काम में किस तरह सहयोगी हो सकते हैं.
सत्र की शुरुआत करते हुए गिरिराज किराडू कहा कि टेक्नोलॉजी और गवर्नेंस को लेकर कई तरह की डिबेट होती रहती हैं. यूपीआई का इस्तेमाल बढ़ रहा है, स्मार्ट फोन्स इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है, ई-कॉमर्स की दुनिया बहुत तेजी के साथ विकसित हो रही है. लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस नई डिजिटल दुनिया में महिलाओं की हिस्सेदारी कितनी है.
इस विषय पर बोलते हुए सबसे पहले बीजेपी की नेशनल पेनलिस्ट चारु प्रज्ञा ने कहा हमारी पार्टी ने इसकी शुरुआत महिलाओं के अपने जनधन अकाउंट से की. हम यूपीआई की बात तो तब करेंगे, जब महिलाओं के पास अपना बैंक अकाउंट हो.
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसकी आलोचना यह कहकर होती है कि आपने खाते तो खुलवा दिए, लेकिन उसमें बैलेंस जीरो है. मैं समझती हूं कि स्थितियां अभी बहुत आदर्श नहीं हैं. लेकिन हम लगातार इसे बेहतर करने की दिशा में बढ़ रहे हैं.
जिन महिलाओं के पास पहले अपना खुद का बैंक अकाउंट भी नहीं था, आन उनके पास बैंक खाता है. खाता होगा तो पैसे भी आएंगे और फिर धीरे-धीरे वो उसका इस्तेमाल करना भी सीखेंगी. यह सारे बदलाव धीरे धीरे ही होंगे.
चारु प्रज्ञा ने कहा कि आज जमीनी स्तर पर चीजें काफी तेजी से बदल रही हैं. अपने स्मार्ट फोन की मदद से महिलाएं इंस्टाग्राम पर अकाउंट बनाकर छोटे-छोटे बिजनेस चला रही हैं. वो यूट्यूब पर अपना चैनल बनाकर अचार, पापड़ बनाना, सिलाई सिखाना जैसी चीजें कर रही हैं और इसके जरिए पैसे भी कमा रही हैं.
वहीं बीजेपी के सहयोग सेल के हेड नवीन सिन्हा का कहना था कि भारत के गांवों में स्थितियां काफी तेजी के साथ बदल रही हैं. उन्होंने उत्तर भारत के गांवों का अपना निजी अनुभव बयां करते हुए कहा कि पहले यूरिया खरीदने के लिए भी आदमी साथ जाता था क्योंकि पैसे उसी के पास होते थे. लेकिन अब गांवों में भी महिलाएं स्मार्ट फोन का इस्तेमाल कर रही हैं और यूपीआई के जरिए खुद पेमेंट करके यूरिया खरीदकर ला रही हैं.
नवीन सिन्हा ने कहा कि महिलाएं अपने प्राकृतिक स्वभाव में ही मल्टी टास्कर होती हैं. वह घर से लेकर बाहर तक सभी मोर्चे एक साथ संभाल सकती हैं और आज इस काम में टेक्नोलॉजी उनकी मदद कर रही है.
हालांकि कांग्रेस के लोकसदभा सदस्य प्रद्युत बारदलोई इस बात से पूरी तरह सहमत नजर नहीं आए. उन्होंने डिजिटल इंडिया की बात करते हुए उस डिवाइड की बात की, जो कोविड के दौरान और उसके बाद और ज्यादा बढ़ गया है. उन्होंने असम का अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि कोविड महामारी के दौरान जब स्कूल बंद हो गए थे और सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा देने का फैसला किया तो गरीब घरों के बच्चे उस शिक्षा से पूरी तरह वंचित हो गए. शहरी बच्चों की शिक्षा पर तो इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि उनके पास इंटरनेट, स्मार्ट फोन और लैपटॉप की सुविधा थी. लेकिन गरीब लोग अपने बच्चों को यह सारी सुविधाएं मुहैया नहीं करा पाए. उन्होंने कहा कि इसका सबसे बुरा प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ा.
इसके जवाब में चारु प्रज्ञा ने कहा कि इन वास्तविक स्थितियों से इनकार नहीं है. लेकिन मैं आधे खाली गिलास की जगह आधा भरा गिलास देखने की कोशिश करती हूं.
BJD के राज्यसभा सदस्य अमर पटनायक ने कहा कि जेंडर डिवाइड हर जगह है और सिर्फ डिजिटल वर्ल्ड में ही नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों में यह जेंडर डिवाइड खत्म होना चाहिए. इस विषय पर बोलते हुए उन्होंने स्टीरियोटाइपिंग की ओर ध्यान खींचा. उन्होंने कहा कि महिलाओं को सशक्त बनाने की बात आते ही उन्होंने सिलाई सिखाने, मोमबत्ती बनाने जैसी घरेलू चीजों तक सीमित कर दिया जाता है. जबकि आज लड़कियों के सपने, उनकी इच्छाएं और काबिलियत सिर्फ घरेलू चीजों तक सीमित नहीं रह गई है. इसलिए हमें उन्हें हर तरह से इंपावर करना चाहिए ताकि वह अपने फैसले खुद ले सकें और आत्मनिर्भर बन सकें.
Edited by Manisha Pandey